लक्ष्यों पर फोकस ना करें, गर सफल होना चाहते हो तो
सफल होना है तो लक्ष्यों को भूल जाए-


इन सब बातों से प्रेरित हो हमारे द्वारा स्कूल-कॉलेज में ग्रेड के लिए, प्रतियोगी परीक्षाओं में रैंक हेतु,कैरियर में किसी विशिष्ट स्तर को प्राप्त करने , जिम में वजन के लिए या फिर व्यवसाय में लाभ हासिल करने के लक्ष्य निर्धारित किए जाते हैं | इनमें से कुछ में हम सफल होते हैं तो शेष में विफल | जिनमें हम सफल होते हैं, मजे की बात यह है कि वहां प्राप्त किए गए परिणामों से लक्ष्यों का कोई लेना देना नहीं होता है |

जिन चीजों में हम सफल हुए या नतीजे प्राप्त हुए, हमें लक्ष्यों की वजह से नहीं मिले ,यह नतीजे हमें उन "चीजों "पर ध्यान देने से प्राप्त हुए हैं जो परिणामों के लिए जिम्मेदार होते हैं | प्रसिद्ध लेखक एवं वक्ता "जेम्स क्लियर "इन चीजों को "व्यवस्थाओं" का नाम देते हैं | वे कहते हैं-" लक्ष्य एवं व्यवस्थाओं में अंतर है | लक्ष्य,अपेक्षित परिणाम है जबकि ,व्यवस्थाएं वे प्रक्रियाएँ होती है जो नतीजों की ओर ले जाती है | यह भी पढ़े -जीवन से खुशियाँ नहीं, समस्याएँ माँगो

उदाहरण के लिए आप एक पर्वतारोही है और आपका लक्ष्य एवरेस्ट चोटी को फतह करना है | इसके लिए आपका स्टैमिना, नियमित अभ्यास ,ऑक्सीजन आपूर्ति,बर्फ काटने वाले औजार,क्रेम्पोन,बोलार्ड,कुल्हाड़ी,रस्सी इत्यादि आप की "व्यवस्थाएं" होगी जिन पर ध्यान देने से ही आप रिजल्ट प्राप्त करते हैं | ऐसा नहीं है कि आप अपने लक्ष्य यानी कि "एवरेस्ट" की ओर देखते-देखते एवरेस्ट विजय कर ले |

इसी तरह से क्रिकेट में अधिक रन बनाना एक लक्ष्य होता है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि खिलाड़ी स्कोर बोर्ड की ओर देखकर क्रिकेट खेले | खिलाड़ी को फोकस लक्ष्य पर ना कर खेल की प्रक्रियाओं /बारीकियों पर करना होगा तभी नतीजे प्राप्त होंगे |
कई बार यह प्रश्न किया जाता है कि क्या होगा ,यदि हम लक्ष्य निर्धारित ना करें और सिर्फ व्यवस्थाओं पर ही ध्यान दें, तो क्या तब भी हमें परिणाम प्राप्त होंगे, बिल्कुल प्राप्त होंगे | आप लक्ष्य निर्धारित ना भी करें तो भी "व्यवस्थाओं" में सुधारों क़े नतीजे प्राप्त होंगे l यह भी कि यदि आप ज्यादा बेहतर एवं दीर्घकालीन परिणाम चाहते हैं तो लक्ष्य पर फोकस ना करें ,प्रक्रियाओं पर ध्यान दें | लक्ष्य हमेशा काम नहीं करते हैं, बेहतरी के लिए रोजाना किए जाने वाले छोटे-छोटे प्रयास (व्यवस्था में सुधार ) ही परिणाम लाते हैं | यह भी पढ़े -सफलता पाने का 10000 घंटे का नियम क्या है ?

यहां इसका मतलब यह भी नहीं है कि लक्ष्य बकवास है,इनका कोई रोल नहीं होता है | लक्ष्य,दिशा बताते हैं | लेकिन यह भी कि यदि हम केवल लक्ष्य पर ही विचार करते रहे और व्यवस्थाओं में सुधार ना करें तो परिणाम प्राप्त नहीं होंगे |
लक्ष्य क्यों महत्वपूर्ण नहीं है-
दोस्तों ,केवल लक्ष्यों पर केंद्रित रहने से सफलता नहीं मिलती है | किसी भी क्षेत्र में विजयश्री प्रक्रियाओं में किये जाने वाले छोटे -छोटे एवं नियमित सुधारों से प्राप्त होती है | "जेम्स क्लियर" के अनुसार निम्न कारणों से लक्ष्यों की ज्यादा महत्त्वपूर्ण भूमिका नहीं है -
@ जीतने एवं हारने वालों के लक्ष्य समान होते हैं-

हारने वालों के भी वही लक्ष्य होते हैं जो कि जीतने वालों के | किसी भी खेल में प्रत्येक टीम का एक समान लक्ष्य होता है- मैच जीतना | समान लक्ष्य होते हुए भी वह कौन सी चीज है जो दोनों को अलग करती है ? मेडल वही टीम ले जाती है जिसके द्वारा बेहतर अभ्यास, संसाधन ,रणनीतियां, सहयोग ,मनोबल, खिलाड़ी चयन,फिटनेस सम्बन्धी व्यवस्थाओं पर ध्यान दिया गया है | मतलब साफ है कि परिणाम तभी प्राप्त होंगे जब उन प्रक्रियाओं पर फोकस किया जाएगा जो कि परिणामों के लिए उत्तरदाई होते हैं न कि लक्ष्यों पर |
@ लक्ष्य प्राप्ति से जीवन में अस्थाई परिवर्तन मात्र होते है-

अक्सर हमारे द्वारा किसी समस्या के समाधान के रूप में कुछ लक्ष्य निर्धारित कर उनकी प्राप्ति की कोशिश की जाती है और उन्हें कभी कभार प्राप्त भी कर लिया जाता है | लेकिन कुछ समय पश्चात स्थिति उससे भी ज्यादा बिगड़ जाती है क्योंकि हमने उन समस्याओं के पीछे के मूल कारणों को दूर करने का प्रयास नहीं किया है | माना कि आप सुबह लेट उठने की आदत से परेशान है, समाधान के रूप में आपने घड़ी में अलार्म लगा कर सुबह पाँच बजे जगने का लक्ष्य निर्धारित कर लिया ,सुबह 5:00 बजे जगने का लक्ष्य प्राप्त भी कर लेते हैं | लेकिन आगे क्या आप इसे नियमित कर पाएंगे ? जब तक कि आप अपने लेट जगने के पीछे के मूल कारणों यथा- रात को देर तक जगना ,देर रात तक स्मार्टफोन पर व्यस्त रहना ,पूरी रात सो नहीं पाना आदि में सुधार नहीं करते हैं | तात्पर्य यही है कि परिणाम बदलने से कुछ नहीं होगा जब तक की व्यवस्थाओं (इनपुट्स) में सुधार ना किया जाये |
@ लक्ष्य हमारी खुशियों में बाधा या उन्हें सीमित करते हैं-

लक्ष्यों के बारे में सामान्यतया हमारी मानसिकता यह होती है कि -"एक बार लक्ष्य प्राप्त हो जाये तो मैं खुश हो जाऊंगा | "यह मानसिकता अक्सर हमें हमारे अगले लक्ष्य की प्राप्ति तक खुशियों को हमसे दूर ही रखती है | ऐसे में ख़ुशी हमेशा भविष्य की बात बनकर रह जाती है | लक्ष्यों के सम्बन्ध में सफलता या विफलता दोनों ही सम्भावनाएं होती है | विफलता ,निराशा लाती है | खुशियों को लक्ष्य आधारित कर हम स्वयं उन्हें ग्रहण लगा लेते है | यह गलत है | लक्ष्यों के बजाय हम उन प्रक्रियाओं एवं चीजों से प्यार करना सीखें जो हमें बेहतर बनाते है ,तब हम हमेशा खुश रह सकेंगे क्योंकि यह अनवरत रूप से चलती रहती है | साथ ही इसके परिणाम हमें किसी भी रूप में प्राप्त हो सकते हैं, जरूरी नहीं है कि वे वैसे हो जैसा कि हमने सोचा था | यह भी पढ़े -जब कुछ समझ ना आये तो इंतजार न करे,बस शुरू कर दे।

@ लक्ष्य ,हमारी दीर्घकालीन प्रगति में अवरोधक होते हैं -

अक्सर लक्ष्य को निर्धारित करने का मकसद किसी परिणाम,उपलब्धि को प्राप्त करना या किसी खेल को जीतना होता है और आपका सारा प्रयास उसे हासिल करने के लिए होता है, लेकिन उसे हासिल करने के बाद आपके पास क्या रह जाता है ? इसी कारण कई बार लोग लक्ष्य प्राप्ति के बाद अवसाद में चले जाते हैं |
लक्ष्य ,हमारी दीर्घकालीन प्रगति में अवरोधक होते हैं | जबकि किसी भी चीज (व्यवस्था) में निरंतर सुधार या सकारात्मक परिवर्तन करते रहना खेल को खेलते रहना जैसा होता है ,जो कि विकास की एक लंबी सोच एवं सुधार का अंतहीन चक्र है |
तो दोस्तों, गर वास्तविक परिणाम चाहते हैं तो आज से ही लक्ष्यों को भूल जाएं और उन प्रक्रियाओं में सतत सुधार करने पर ध्यान दें जो कि नतीजे देते हैं | withrbansal
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