मृत्यु क्या है,क्यूँ हम इससे सहज नहीं हो पाते
withrbansal मृत्यु से इतना भय क्यूँ है ?
दोस्तों, मौत या मृत्यु एक ऐसा शब्द है जिसके बारे में कोई व्यक्ति न तो सोचना चाहता है और न हीं बात करना | यदि कभी कोई इस बारे में चर्चा छेड़ भी देता है तो सामने वाला यह कहकर चुप करा देता है- "अरे यार तुम यह मरने -मारने की बातें क्यों कर रहे हो | " इसका कारण है-मृत्यु से अत्यधिक भय | मौत हम सब को डराती है , हम इसके बारे में सोचने से बचते हैं, बात करने से बचते हैंऔर इसे तब तक पहचानते भी नहीं जब तक कि हमारे किसी प्रिय के साथ ऐसा कुछ ना हो जाए | मृत्यु से इतना भय क्यों है ? वह क्या परिणाम है मृत्यु के, जिससे हम बचना चाहते हैं ?
मृत्यु से भय का कारण क्या है - मृत्यु से भय का मुख्य कारण है - मृत्यु को जीवन से पृथक कोई घटना मानना है जबकि मृत्यु तो सदैव जीवन के साथ बनी रहती है | यह तो जीवन में हर पल आपके साथ रहती है | यह अब इस पल में भी आपके साथ हैं और जब आप जीवन यापन के अन्य कार्यों में लगे रहते हैं तब भी | इस जहां में कोई भी मरना नहीं चाहता क्योंकि किसी को अभी अपने व्यवसाय को ऊंचाइयों पर पहुंचाना है, किसी को अपने बेटे-बेटी को सेटल करना है, किसी को अपनी पुस्तक पूरी करनी है, किसी को अभी अपना कोई अधूरा सपना पूरा करना है | कहने का तात्पर्य है कि वे पहले जीवन को समझना चाहते हैं फिर वे मृत्यु को समझने की बात करते हैं | जबकि जीवन मृत्यु दोनों एक ही है और उन्हें अलग-अलग करके नहीं समझा जा सकता है | इसके लिए हमें जीवन को संपूर्णता में देखना होगा और जीवन को समग्रता में आप तभी देख सकते हैं जब आप में प्रेम हो |
दोस्तों, मौत या मृत्यु एक ऐसा शब्द है जिसके बारे में कोई व्यक्ति न तो सोचना चाहता है और न हीं बात करना | यदि कभी कोई इस बारे में चर्चा छेड़ भी देता है तो सामने वाला यह कहकर चुप करा देता है- "अरे यार तुम यह मरने -मारने की बातें क्यों कर रहे हो | " इसका कारण है-मृत्यु से अत्यधिक भय | मौत हम सब को डराती है , हम इसके बारे में सोचने से बचते हैं, बात करने से बचते हैंऔर इसे तब तक पहचानते भी नहीं जब तक कि हमारे किसी प्रिय के साथ ऐसा कुछ ना हो जाए | मृत्यु से इतना भय क्यों है ? वह क्या परिणाम है मृत्यु के, जिससे हम बचना चाहते हैं ?
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मृत्यु से भय का कारण क्या है - मृत्यु से भय का मुख्य कारण है - मृत्यु को जीवन से पृथक कोई घटना मानना है जबकि मृत्यु तो सदैव जीवन के साथ बनी रहती है | यह तो जीवन में हर पल आपके साथ रहती है | यह अब इस पल में भी आपके साथ हैं और जब आप जीवन यापन के अन्य कार्यों में लगे रहते हैं तब भी | इस जहां में कोई भी मरना नहीं चाहता क्योंकि किसी को अभी अपने व्यवसाय को ऊंचाइयों पर पहुंचाना है, किसी को अपने बेटे-बेटी को सेटल करना है, किसी को अपनी पुस्तक पूरी करनी है, किसी को अभी अपना कोई अधूरा सपना पूरा करना है | कहने का तात्पर्य है कि वे पहले जीवन को समझना चाहते हैं फिर वे मृत्यु को समझने की बात करते हैं | जबकि जीवन मृत्यु दोनों एक ही है और उन्हें अलग-अलग करके नहीं समझा जा सकता है | इसके लिए हमें जीवन को संपूर्णता में देखना होगा और जीवन को समग्रता में आप तभी देख सकते हैं जब आप में प्रेम हो |
यह भी पढ़े -मृत्यु के बाद का सत्य !
सुप्रसिद्ध आध्यात्मिक लेखक "जे0 कृष्णमूर्ति" ने जीवन और मृत्यु के इस रहस्य को उद्घाटित करते हुए बताया है कि इंसान के मृत्यु से इतना भयभीत होने के पीछे मुख्य कारण है- निरंतरता के छूट जाने का भय और ज्ञात को खो देने का डर | जब तक हम निरंतरता को चाहते रहेंगे तब तक मृत्यु का भय बना रहेगा निरंतरता से तात्पर्य है- अपने भौतिक शरीर,अपने व्यक्तित्व, अनुभव ,ज्ञान ,अपनी क्रियाओं ,अपनी क्षमताओं,अपनी ख्याति , सौंदर्य अपने किए गए कार्यों के परिणामों की निरंतरता | अर्थात व्यक्ति के अंदर का जो" मैं " है वह बने रहना चाहता है, कभी मरना नहीं चाहता | इस निरंतरता को बनाए रखने हेतु ही मनुष्य पुनर्जन्म जैसी अवधारणाएं गढ़ने लगता है लेकिन फिर भी अनिश्चितता तो बनी ही रहती है | हमे डर है ज्ञात को खो देने का ,ज्ञात के प्रति जितना हमारा मोह होता है मृत्यु का भय उतना ही बढ़ जाता है | ज्ञात चीजें है -हमारी छवियाँ ,हमारा ज्ञान ,हमारा मोह, हमारी भौतिक वस्तुएँ ,निर्णय ,संस्कृति ,विचार ,परिवार ,प्रियजन ,परम्परा ,अनुभव ,साहचर्य ,स्मृति जैसी अनेको चीजों के खो जाने का भय |
जबकि हम सब जानते हैं कि किसी भी चीज की निरंतरता प्रकृति के खिलाफ है, प्रकृति स्वभाव से ही सृजनशील है वह नित्य पुराने का अंत कर नवीन का सृजन करती रहती है | लेकिन मनुष्य इसे स्वीकार नहीं करता है क्योंकि हम निरंतर संचय करने के अभ्यस्त हो चुके हैं | हम अक्सर यह कहते हैं "आज मैंने यह प्राप्त कर लिया ", "मैंने कल यह जीता था" ,क्योंकि हम केवल समय और निरंतरता के तौर तरीकों से सोचते हैं | हम हमेशा भूत या भविष्य में जीते हैं, हम हमेशा आने वाले कल के बारे में ही सोचा करते हैं-मैं यह हूं कल मैं वह बन जाऊंगा, | हम एक भी दिन इस तरह से नहीं जीते हैं कि मानों जीने का वह आखरी दिन हो | यदि हम प्रत्येक दिन को पूरी तरह से जिए और दूसरे दिन को पुनः ऐसे शुरू करें जैसे वह एकदम नया हो ,कोरा हो ,कल का कोई बंधन ना हो तब मृत्यु का कोई भय नहीं होगा |
दोस्तों, मैंने अपने पूर्व लेख में इस तथ्य को रेखांकित किया है कि मौत सबसे अच्छी शिक्षक है यह हमें वह सिखाती है जो संसार का कोई भी गुरु, संत या उपदेशक नहीं सिखा सकता | दूसरे तरीके से इसे देखें तो मौत वह रोशनी है जिसमें जीवन के सारे अर्थों को मापा जा सकता है |
द्वितीय- हमारे जीवन के दो तल होते हैं -प्रथम तल को उन्होंने व्यक्तिगत कहा है जो सोने ,खाने ,पीने ,सेक्स इत्यादि से संबंधित है दूसरा तल वैचारिक मसलों का है जिसमें हमारी पहचान या हम खुद को कैसे देखते हैं जैसे मामले आते हैं | "बेकर" कहते हैं कि किसी एक हद तक हम सब जानते कि हमारा यह भौतिक शरीर नष्ट हो जाएगा और इसके नष्ट होने के साथ-साथ हमारे व्यक्तिगत मसले भी खत्म हो जाएंगे | मौत के इसी डर से उबरने के लिए हम खुद को ऐसी चीजों पर केंद्रित करते हैं जो हमारे हिसाब से अमर हो | इसी कारण से लोग अपना नाम इमारतों में ,मूर्तियों, किताबों पर खुदवाना चाहते हैं | वह चाहते हैं कि वेअपने बच्चों और प्रियजनों की स्मृतियों में जिंदा रहे इसलिए वे अपना ज्यादा समय एवं प्रेम उन्हें देने के लिए मजबूर होते हैं | तात्पर्य यह है कि हम हर कोशिश इस बात के लिए करते हैं कि कैसे हम शरीर छोड़ने के बाद भी इस संसार में जिंदा रहे | बेकर ऐसे प्रयासों को "अमरत्व प्रोजेक्ट" कहते हैं |
वे कहते हैं सारी मानव सभ्यता वास्तव में "अमरत्त्व प्रोजेक्ट "का ही परिणाम है | वर्तमान शहर ,इमारतें ,तकनीकी आविष्कार, प्रशासन, धर्म, राजनीति, खेल, कला इत्यादि हमारे पूर्वजों की इसी सोच का अवशेष है | ईशा ,मोहम्मद, गांधी, नेपोलियन, विवेकानंद, शेक्सपियर जैसे कितने ही नाम है जो आज भी उतने ही शक्तिशाली है जितने कि जब वे जीवित थे | बेकर बाद में अपनी मृत्यु शैया पर एक और परिणाम पर पहुंचे कि लोगों के "अमरत्त्व प्रोजेक्ट" वास्तव में समस्या थी ना कि कोई समाधान | लोगों को मौत के सच को खुले दिल से अपनाना चाहिए,हालाँकि यह कड़वा जरूर है,मौत बुरी है लेकिन इसे टाला नहीं जा सकता, लेकिन हमें इससे नजर भी नहीं फेरनी है बल्कि उसमें से जो भी श्रेष्ठ निकाला जा सकता है उस पर ध्यान देना चाहिए | एक बार जब हम अपनी मौत के साथ सहज हो जाते हैं तो अमर बनने की बेतुकी खोज को छोड़ कर हम अपने आदर्शों का चयन ज्यादा उदारता के साथ कर सकते हैं |
स्विट्जरलैंड में वर्ष 2004 में एक ऐसा कैफ़े खोला गया है जिसमें आप केक ,पेस्ट्री खाते हुए या कॉफी पीते हुए अपनी मौत के बारे में चर्चा कर सकते हैं | कई मनोवैज्ञानिक जिंदगी की सराहना और मुश्किलों में भी विनम्र रहना सिखाने हेतु "एक्सपोजर थ्योरी " के इस्तेमाल की सलाह देते हैं जो इस अवधारणा पर आधारित है कि जिस चीज से डर लगता है यदि उसका बार बार सामना कराया जाए तो डर खत्म हो जाता है | भूटान जो "ग्रॉस नेशनल हैप्पीनेस " में खुशहाल देशों में एक माना जाता है | वहां की संस्कृति में हर आदमी रोज पांच बार अपनी मौत के बारे में सोचता है | क्योंकि अध्ययन में भी यह पाया गया है कि जो मौत के बारे में सोचते हैं वह कहीं ज्यादा पॉजिटिव होते हैं | पश्चिम देशों में लोग यदि दुखी होते हैं तो वे समाधान ढूंढने की कोशिश करते हैं यही वे मौत के बारे में भी करते हैं लेकिन भूटानी लोग इसे स्वीकार करते हैं |
प्रसिद्ध लेखक लिंडा गेमिंग ने" ए फील्ड गाइड टू हप्पीनेस "में मौत के बारे में सोचने पर कहा है कि-" उससे मेरा ध्यान उन चीजों पर जाता है जिनके बारे में मैं आमतौर पर सोच नहीं पाती तथा इससे वर्तमान क्षण के महत्व का पता चलता है | "
इसलिए अपनी नश्वरता की वास्तविकता को स्वीकार करना आवश्यक है क्योंकि यह जिंदगी के दूसरे खोखले ,फालतू और नकली व्यापारों एवं आदर्शों को आप से दूर कर देती है और मौत आपको इन सब से ज्यादा तकलीफदेह और महत्वपूर्ण सवालों से दो-चार होने का मौका देती है कि आप की विरासत क्या है ? तुम संसार को ऐसा क्या देकर जाना चाहोगे जिससे यह और ज्यादा सुंदर और बेहतर बन सके ? जैसा कि बेकर बताते हैं कि यही जिंदगी का सबसे महत्वपूर्ण सवाल होना चाहिए लेकिन हम सब इस मुश्किल एवं भयानक सवाल के बारे में सोचने से ही कतराते हैं क्योंकि हमें नहीं पता कि हम कर क्या रहे हैं | क्योंकि जीवन में कोई चीज निश्चित है तो वह है मौत | अतः इसी कंपास पर हमें अपने आदर्श और फैसलों का निर्धारण किया जाना चाहिए |
सुप्रसिद्ध आध्यात्मिक लेखक "जे0 कृष्णमूर्ति" ने जीवन और मृत्यु के इस रहस्य को उद्घाटित करते हुए बताया है कि इंसान के मृत्यु से इतना भयभीत होने के पीछे मुख्य कारण है- निरंतरता के छूट जाने का भय और ज्ञात को खो देने का डर | जब तक हम निरंतरता को चाहते रहेंगे तब तक मृत्यु का भय बना रहेगा निरंतरता से तात्पर्य है- अपने भौतिक शरीर,अपने व्यक्तित्व, अनुभव ,ज्ञान ,अपनी क्रियाओं ,अपनी क्षमताओं,अपनी ख्याति , सौंदर्य अपने किए गए कार्यों के परिणामों की निरंतरता | अर्थात व्यक्ति के अंदर का जो" मैं " है वह बने रहना चाहता है, कभी मरना नहीं चाहता | इस निरंतरता को बनाए रखने हेतु ही मनुष्य पुनर्जन्म जैसी अवधारणाएं गढ़ने लगता है लेकिन फिर भी अनिश्चितता तो बनी ही रहती है | हमे डर है ज्ञात को खो देने का ,ज्ञात के प्रति जितना हमारा मोह होता है मृत्यु का भय उतना ही बढ़ जाता है | ज्ञात चीजें है -हमारी छवियाँ ,हमारा ज्ञान ,हमारा मोह, हमारी भौतिक वस्तुएँ ,निर्णय ,संस्कृति ,विचार ,परिवार ,प्रियजन ,परम्परा ,अनुभव ,साहचर्य ,स्मृति जैसी अनेको चीजों के खो जाने का भय |
यह भी पढ़े -मृत्यु के समय रह जाने वाले टॉप 5 रिग्रेट्स
जबकि हम सब जानते हैं कि किसी भी चीज की निरंतरता प्रकृति के खिलाफ है, प्रकृति स्वभाव से ही सृजनशील है वह नित्य पुराने का अंत कर नवीन का सृजन करती रहती है | लेकिन मनुष्य इसे स्वीकार नहीं करता है क्योंकि हम निरंतर संचय करने के अभ्यस्त हो चुके हैं | हम अक्सर यह कहते हैं "आज मैंने यह प्राप्त कर लिया ", "मैंने कल यह जीता था" ,क्योंकि हम केवल समय और निरंतरता के तौर तरीकों से सोचते हैं | हम हमेशा भूत या भविष्य में जीते हैं, हम हमेशा आने वाले कल के बारे में ही सोचा करते हैं-मैं यह हूं कल मैं वह बन जाऊंगा, | हम एक भी दिन इस तरह से नहीं जीते हैं कि मानों जीने का वह आखरी दिन हो | यदि हम प्रत्येक दिन को पूरी तरह से जिए और दूसरे दिन को पुनः ऐसे शुरू करें जैसे वह एकदम नया हो ,कोरा हो ,कल का कोई बंधन ना हो तब मृत्यु का कोई भय नहीं होगा |
दोस्तों, मैंने अपने पूर्व लेख में इस तथ्य को रेखांकित किया है कि मौत सबसे अच्छी शिक्षक है यह हमें वह सिखाती है जो संसार का कोई भी गुरु, संत या उपदेशक नहीं सिखा सकता | दूसरे तरीके से इसे देखें तो मौत वह रोशनी है जिसमें जीवन के सारे अर्थों को मापा जा सकता है |
पढ़े - मृत्यु पूर्व अनुभव : आउट ऑफ़ बॉडी एक्सपीरियंस मौत के बिना सब कुछ महत्वहीन हरअनुभव एकतरफा और हर मानदंड शून्य है | मौत की निश्चितता के सामने किसी भी डर या शर्मिंदगी का कोई भी मूल्य नहीं है | प्रसिद्ध मनोविश्लेषक एवं चिंतक"अर्नेस्ट बेकर" द्वारा अपनी पुस्तक" द डिनायल ऑफ डेथ " में मौत के बारे में दो मुख्य बिंदु की तरफ इंगित किया है | प्रथम - इंसान जानवरों से सिर्फ इस मामले में अलग है कि वे अपने बारे में सोच सकते हैं | कुत्ते ,बिल्ली या बंदर अपने कैरियर के बारे में चिंता नहीं करते ,अतीत के बारे में यह चिंता नहीं करते कि उन्होंने कुछ अलग किया होता तो परिणाम कुछ और होता,भविष्य की संभावनाओं पर तर्क नहीं कर सकते, भविष्य की योजनाएं नहीं बना सकते | सिर्फ इंसान ही है जो बिल्कुल काल्पनिक स्थिति में भी खुद की कल्पना कर सकता है, अतीत या भविष्य के बारे में विचार कर सकता है | इस खास मानसिक योग्यता की वजह से ही हम मौत के प्रति सजग होते हैं और हम मौत से बच निकलने की कल्पना कर सकते हैं |
द्वितीय- हमारे जीवन के दो तल होते हैं -प्रथम तल को उन्होंने व्यक्तिगत कहा है जो सोने ,खाने ,पीने ,सेक्स इत्यादि से संबंधित है दूसरा तल वैचारिक मसलों का है जिसमें हमारी पहचान या हम खुद को कैसे देखते हैं जैसे मामले आते हैं | "बेकर" कहते हैं कि किसी एक हद तक हम सब जानते कि हमारा यह भौतिक शरीर नष्ट हो जाएगा और इसके नष्ट होने के साथ-साथ हमारे व्यक्तिगत मसले भी खत्म हो जाएंगे | मौत के इसी डर से उबरने के लिए हम खुद को ऐसी चीजों पर केंद्रित करते हैं जो हमारे हिसाब से अमर हो | इसी कारण से लोग अपना नाम इमारतों में ,मूर्तियों, किताबों पर खुदवाना चाहते हैं | वह चाहते हैं कि वेअपने बच्चों और प्रियजनों की स्मृतियों में जिंदा रहे इसलिए वे अपना ज्यादा समय एवं प्रेम उन्हें देने के लिए मजबूर होते हैं | तात्पर्य यह है कि हम हर कोशिश इस बात के लिए करते हैं कि कैसे हम शरीर छोड़ने के बाद भी इस संसार में जिंदा रहे | बेकर ऐसे प्रयासों को "अमरत्व प्रोजेक्ट" कहते हैं |
वे कहते हैं सारी मानव सभ्यता वास्तव में "अमरत्त्व प्रोजेक्ट "का ही परिणाम है | वर्तमान शहर ,इमारतें ,तकनीकी आविष्कार, प्रशासन, धर्म, राजनीति, खेल, कला इत्यादि हमारे पूर्वजों की इसी सोच का अवशेष है | ईशा ,मोहम्मद, गांधी, नेपोलियन, विवेकानंद, शेक्सपियर जैसे कितने ही नाम है जो आज भी उतने ही शक्तिशाली है जितने कि जब वे जीवित थे | बेकर बाद में अपनी मृत्यु शैया पर एक और परिणाम पर पहुंचे कि लोगों के "अमरत्त्व प्रोजेक्ट" वास्तव में समस्या थी ना कि कोई समाधान | लोगों को मौत के सच को खुले दिल से अपनाना चाहिए,हालाँकि यह कड़वा जरूर है,मौत बुरी है लेकिन इसे टाला नहीं जा सकता, लेकिन हमें इससे नजर भी नहीं फेरनी है बल्कि उसमें से जो भी श्रेष्ठ निकाला जा सकता है उस पर ध्यान देना चाहिए | एक बार जब हम अपनी मौत के साथ सहज हो जाते हैं तो अमर बनने की बेतुकी खोज को छोड़ कर हम अपने आदर्शों का चयन ज्यादा उदारता के साथ कर सकते हैं |
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प्रसिद्ध लेखक लिंडा गेमिंग ने" ए फील्ड गाइड टू हप्पीनेस "में मौत के बारे में सोचने पर कहा है कि-" उससे मेरा ध्यान उन चीजों पर जाता है जिनके बारे में मैं आमतौर पर सोच नहीं पाती तथा इससे वर्तमान क्षण के महत्व का पता चलता है | "
इसलिए अपनी नश्वरता की वास्तविकता को स्वीकार करना आवश्यक है क्योंकि यह जिंदगी के दूसरे खोखले ,फालतू और नकली व्यापारों एवं आदर्शों को आप से दूर कर देती है और मौत आपको इन सब से ज्यादा तकलीफदेह और महत्वपूर्ण सवालों से दो-चार होने का मौका देती है कि आप की विरासत क्या है ? तुम संसार को ऐसा क्या देकर जाना चाहोगे जिससे यह और ज्यादा सुंदर और बेहतर बन सके ? जैसा कि बेकर बताते हैं कि यही जिंदगी का सबसे महत्वपूर्ण सवाल होना चाहिए लेकिन हम सब इस मुश्किल एवं भयानक सवाल के बारे में सोचने से ही कतराते हैं क्योंकि हमें नहीं पता कि हम कर क्या रहे हैं | क्योंकि जीवन में कोई चीज निश्चित है तो वह है मौत | अतः इसी कंपास पर हमें अपने आदर्श और फैसलों का निर्धारण किया जाना चाहिए |
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