आत्मज्ञान प्राप्ति के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा हमारा मन है |
withrbansal मन से आजादी कैसे प्राप्त करें -
दोस्तों, आत्मज्ञान, ज्ञान-प्राप्ति, Enlightenment जैसे शब्द बड़े भारी भरकम लगते हैं या यूं कहें कि कुछ तथाकथित अध्यात्मवेत्ताओं के द्वारा जानबूझकर इन्हें इतना दुरूह बना दिया गया है ताकि एक सामान्य आदमी इसे कोई अलौकिक या दिव्य उपलब्धि माने और इसे एक ऐसा लक्ष्य माने जिसे पाना उसके लिए संभव ही ना हो | सामान्य व्यक्तियों के द्वारा आत्मज्ञान को अपने काम की चीज न मान कर, ईश्वर की विशेष कृपा प्राप्त व्यक्तियों को ही इसके योग्य माना है |
जबकि " गौतम बुद्ध " के द्वारा आत्मज्ञान की एक सीधी सरल परिभाषा दी है कि "आत्मज्ञान" से तात्पर्य है कि- दुख का अंत हो जाना | बुद्ध द्वारा जानबूझकर अधूरी परिभाषा दी है, उन्होंने केवल यह बताया है कि आत्मज्ञान क्या नहीं है, क्योंकि जब दुख का अंत हो जाता है तो शेष क्या बचता है ? इस प्रश्न पर बुद्ध मौन है, इसका अर्थ यह है कि इसे आपको अपने लिए स्वयं को ही खोजना होगा | आत्मज्ञान पर "एक्हार्ट टॉल " कहते है -आत्मज्ञान का सीधा सच्चा अर्थ है अपने बीइंग (being )के साथ अभिन्नता की अवस्था में होना अर्थात अपने अस्तित्व,आत्मा या अन्तर्रात्मा के साथ जुड़कर रहना | सामान्य रूप में हम यह कह सकते हैं कि आत्मज्ञान वह अवस्था है जब आप अपने नाम व रूप से परे अपने सच्चे वास्तविक स्वरूप को पहचान कर अपने अन्तर्तम में विद्यमान उस शाश्वत ,अमर व चिरस्थाई अंतरआत्मा से जुड़ कर रहते है |
आत्मज्ञान या अंतरात्मा से जुड़ाव में सबसे बड़ी बाधा हमारा मन है | क्योंकि हम अपने मन के साथ इतना घुल-मिल गए हैं या यूं कहें कि हम अपने मन के साथ इतना एकसार या एकजान हो गए हैं कि हम स्वयं को मन ही मान बैठे हैं, हम यह सोचने लगे हैं कि हम मन ही हैं या मन ही हम हैं | और यह मन ही हमारे दुखों का मूल कारण है | यह मन हमेशा भूत और भविष्य में चलायमान रहकर निरंतर हमारे लिए मिथ्या अहम् की रचना करता रहता है और यह मिथ्या अहम् ही हमारे दुखों एवं भय का मूल कारण है | हम अपने मन, रूप एवं नाम के साथ इतने घुलमिल जाते हैं कि हम अपने आपको वही समझने लगते हैं और ऐसे में हमारा वास्तविक स्वरूप कहीं ओझल हो जाता है |
आत्मज्ञान ( Enlightenment ) के लिए आपको अपने मन से अलग होकर देखना होगा | जब आप इस बात को समझ जाएंगे कि आप स्वयं मन नहीं है तथा जो विचार कर रहा है या सोच रहा है वह कोई और है तभी आपको वास्तविक स्वतंत्रता का अनुभव होगा | क्योंकि जिस क्षण आप विचारकर्ता को देखना या अवलोकन करना सीख जाते हैं उसी समय आप जागरूक होना शुरू कर देते हैं | आपने सड़क पर अपने आप से ही बातें करते हुए या बड़बड़ाते हुए पागलों को देखा होगा ,लेकिन उस पागल एवं आप में कोई खास अंतर नहीं है सिवाय इसके कि आप उसकी तरह बाहरी आवाज नहीं करते हैं | सच तो यह है कि हर व्यक्ति अपने मस्तिष्क में हर वक्त कोई ना कोई आवाज, हर समय सुना करता है, यह अपने आप मन में चलने वाली विचार प्रक्रिया है जो कभी टिका-टिप्पणी करती है ,दोषारोपण- शिकायत करती है, निर्णय या निष्कर्ष निकालती है, पसंद या नापसंद करती है इत्यादि | सबसे बड़ी बात तो यह है कि यह विचार प्रक्रिया अपना अधिकांश समय भूत या भविष्य में ही व्यतीत करती है | यह वर्तमान को भी अतीत के चश्मे से ही देख रही होती है | कभी-कभी इसमें मानसिक पिक्चर या दृश्य- कल्पना भी जुड़ जाती है | हमारे मन में चल रहा है यह "मानसिक शोर" ही अंततः चिंता में बदल जाता है |
हमारे विशुद्ध रूप को हम तब तक महसूस नहीं कर पाएंगे जब तक कि हम हमारे अंदर के "मानसिक शोर" को विराम नहीं दे देते | अपने मन से या यूं कहें कि मानसिक शोर से आजादी प्राप्त करने के 2 तरीके मुख्य है | प्रथम तरीका है- अपने विचारों का अवलोकन करना और द्वितीय तरीका है- वर्तमान पर फोकस करना | प्रथम तरीके में जब भी आप मन की आवाज को सुने तो उसे तटस्थ या साक्षी भाव से बिना कोई निर्णय या निष्कर्ष लिए, बिना कोई निंदा या आलोचना किये सुने | इस तरह से जब आप तटस्थ होकर मन की आवाज को सुनेंगे तो आपको ज्ञान होगा कि आप मन नहीं है, आप मन से भी परे हो | इस प्रक्रिया में होता यह है कि जब आप अपना कोई विचार सुनते हैं तो आप न केवल उस विचार के प्रति सजग होते हैं बल्कि उस विचार के साक्षी के रूप में खुद के प्रति भी सजग होते हैं और आप में जागरूकता की मात्रा बढ़ जाती है | आप विचार के पीछे एक चेतन उपस्थिति को अनुभव करते हैं | ऐसे में वह विचार आप पर हावी नहीं हो पाता है ,क्योंकि तब आप मन से अलग होने के कारण उस विचार को ऊर्जा नहीं दे रहे होते हैं | इस प्रकार से जब विचार गायब होने लगते हैं तो विचारों के प्रवाह में अंतराल( विराम )पैदा होता है | हो सकता है यह अंतराल प्रारंभ में पल दो पल के हो ,लेकिन धीरे-धीरे यह लंबे होते जाएंगे और आप अपने भीतर एक तरह का ठहराव या शांति महसूस करोगे | इस स्थिति को ही "ध्यान" कहा जाता है | धीरे-धीरे यह अनुभूति गहन से गहनतर होती जाएगी और तब आप उस असीम आनन्द को महसूस करोगे जिसे आत्मज्ञान या आत्मानुभूति कहा जाता है | पढ़े-मेडिटेशन :शरीर एवं मन की सीमा से परे जाकर जीने का तरीका
इस प्रकार आत्मज्ञान हर सामान्य व्यक्ति के लिए भी प्राप्य है, बस उसे अपने आप को मन से मुक्त करना है | हमारा मन सिर्फ एक उपकरण है इसे कुछ विशेष कार्य (सोचने- विचारने ) के लिए बनाया गया है और जब वह कार्य हो जाए तो उसे आप यथा-स्थान वापस रख दे | ऊपर बताए गए दोनों तरीके मन को यथा-स्थान वापस रखना सिखाते हैं | तरीका कोई भी अपनाये ,जब भी आप अपने मन की चलायमानता में अवरोध (अंतराल )उत्पन्न करते हैं तो आप जागरूक होते जाते हैं व आपको यह एहसास होने लगता है कि आपका अस्तित्व मन पर आधारित नहीं है और आप मन से मुक्त होते जाते है | यह भी पढ़े -मेडिटेशन की एक मजेदार तकनीक
तो दोस्तों, जिस प्रकार सांसारिक संपत्ति के लिए हमें बाहरी ज्ञान की जरूरत होती है उसी प्रकार आत्मिक आनंद के लिए हमें हमारे आंतरिक अस्तित्व का ज्ञान होना आवश्यक है | हमें सांसारिक संपत्ति के साथ-साथ इस जहां की असली दौलत यानी आत्मा का आनंद ,गहरी तथा अविचल शांति भी उतनी ही आवश्यक है क्योंकि इस धरती पर हमारा उद्देश्य भौतिक विकास के साथ-साथ आध्यात्मिक उन्नति करना भी है | withrbansal
दोस्तों, आत्मज्ञान, ज्ञान-प्राप्ति, Enlightenment जैसे शब्द बड़े भारी भरकम लगते हैं या यूं कहें कि कुछ तथाकथित अध्यात्मवेत्ताओं के द्वारा जानबूझकर इन्हें इतना दुरूह बना दिया गया है ताकि एक सामान्य आदमी इसे कोई अलौकिक या दिव्य उपलब्धि माने और इसे एक ऐसा लक्ष्य माने जिसे पाना उसके लिए संभव ही ना हो | सामान्य व्यक्तियों के द्वारा आत्मज्ञान को अपने काम की चीज न मान कर, ईश्वर की विशेष कृपा प्राप्त व्यक्तियों को ही इसके योग्य माना है |
जबकि " गौतम बुद्ध " के द्वारा आत्मज्ञान की एक सीधी सरल परिभाषा दी है कि "आत्मज्ञान" से तात्पर्य है कि- दुख का अंत हो जाना | बुद्ध द्वारा जानबूझकर अधूरी परिभाषा दी है, उन्होंने केवल यह बताया है कि आत्मज्ञान क्या नहीं है, क्योंकि जब दुख का अंत हो जाता है तो शेष क्या बचता है ? इस प्रश्न पर बुद्ध मौन है, इसका अर्थ यह है कि इसे आपको अपने लिए स्वयं को ही खोजना होगा | आत्मज्ञान पर "एक्हार्ट टॉल " कहते है -आत्मज्ञान का सीधा सच्चा अर्थ है अपने बीइंग (being )के साथ अभिन्नता की अवस्था में होना अर्थात अपने अस्तित्व,आत्मा या अन्तर्रात्मा के साथ जुड़कर रहना | सामान्य रूप में हम यह कह सकते हैं कि आत्मज्ञान वह अवस्था है जब आप अपने नाम व रूप से परे अपने सच्चे वास्तविक स्वरूप को पहचान कर अपने अन्तर्तम में विद्यमान उस शाश्वत ,अमर व चिरस्थाई अंतरआत्मा से जुड़ कर रहते है |
आत्मज्ञान ( Enlightenment ) के लिए आपको अपने मन से अलग होकर देखना होगा | जब आप इस बात को समझ जाएंगे कि आप स्वयं मन नहीं है तथा जो विचार कर रहा है या सोच रहा है वह कोई और है तभी आपको वास्तविक स्वतंत्रता का अनुभव होगा | क्योंकि जिस क्षण आप विचारकर्ता को देखना या अवलोकन करना सीख जाते हैं उसी समय आप जागरूक होना शुरू कर देते हैं | आपने सड़क पर अपने आप से ही बातें करते हुए या बड़बड़ाते हुए पागलों को देखा होगा ,लेकिन उस पागल एवं आप में कोई खास अंतर नहीं है सिवाय इसके कि आप उसकी तरह बाहरी आवाज नहीं करते हैं | सच तो यह है कि हर व्यक्ति अपने मस्तिष्क में हर वक्त कोई ना कोई आवाज, हर समय सुना करता है, यह अपने आप मन में चलने वाली विचार प्रक्रिया है जो कभी टिका-टिप्पणी करती है ,दोषारोपण- शिकायत करती है, निर्णय या निष्कर्ष निकालती है, पसंद या नापसंद करती है इत्यादि | सबसे बड़ी बात तो यह है कि यह विचार प्रक्रिया अपना अधिकांश समय भूत या भविष्य में ही व्यतीत करती है | यह वर्तमान को भी अतीत के चश्मे से ही देख रही होती है | कभी-कभी इसमें मानसिक पिक्चर या दृश्य- कल्पना भी जुड़ जाती है | हमारे मन में चल रहा है यह "मानसिक शोर" ही अंततः चिंता में बदल जाता है |
हमारे विशुद्ध रूप को हम तब तक महसूस नहीं कर पाएंगे जब तक कि हम हमारे अंदर के "मानसिक शोर" को विराम नहीं दे देते | अपने मन से या यूं कहें कि मानसिक शोर से आजादी प्राप्त करने के 2 तरीके मुख्य है | प्रथम तरीका है- अपने विचारों का अवलोकन करना और द्वितीय तरीका है- वर्तमान पर फोकस करना | प्रथम तरीके में जब भी आप मन की आवाज को सुने तो उसे तटस्थ या साक्षी भाव से बिना कोई निर्णय या निष्कर्ष लिए, बिना कोई निंदा या आलोचना किये सुने | इस तरह से जब आप तटस्थ होकर मन की आवाज को सुनेंगे तो आपको ज्ञान होगा कि आप मन नहीं है, आप मन से भी परे हो | इस प्रक्रिया में होता यह है कि जब आप अपना कोई विचार सुनते हैं तो आप न केवल उस विचार के प्रति सजग होते हैं बल्कि उस विचार के साक्षी के रूप में खुद के प्रति भी सजग होते हैं और आप में जागरूकता की मात्रा बढ़ जाती है | आप विचार के पीछे एक चेतन उपस्थिति को अनुभव करते हैं | ऐसे में वह विचार आप पर हावी नहीं हो पाता है ,क्योंकि तब आप मन से अलग होने के कारण उस विचार को ऊर्जा नहीं दे रहे होते हैं | इस प्रकार से जब विचार गायब होने लगते हैं तो विचारों के प्रवाह में अंतराल( विराम )पैदा होता है | हो सकता है यह अंतराल प्रारंभ में पल दो पल के हो ,लेकिन धीरे-धीरे यह लंबे होते जाएंगे और आप अपने भीतर एक तरह का ठहराव या शांति महसूस करोगे | इस स्थिति को ही "ध्यान" कहा जाता है | धीरे-धीरे यह अनुभूति गहन से गहनतर होती जाएगी और तब आप उस असीम आनन्द को महसूस करोगे जिसे आत्मज्ञान या आत्मानुभूति कहा जाता है | पढ़े-मेडिटेशन :शरीर एवं मन की सीमा से परे जाकर जीने का तरीका
अपने मन से आजाद होने का दूसरा तरीका यह है कि आप अपने ध्यान एवं अवधान का फोकस "वर्तमान "की ओर मोड़कर अपने मन के निरंतर चलायमान में व्यवधान( अंतराल )उत्पन्न करें | अर्थात वर्तमान के प्रति जागरूक हो जाएं और विचारों के क्रम में ठहराव लाए | इसके लिए आप अपने घर या ऑफिस में दैनिक रूप से आदतन किए जाने वाले कार्यों जैसे -स्नान करना, हाथ धोना, सीढ़ियां चढ़ना- उतरना आदि कार्य पूर्ण ध्यान, अवधान या जागरूकता से करें | जैसे जब आप स्नान कर रहे हो तो इस दौरान होने वाली सभी अनुभूतियों यथा पानी का स्पर्श, पानी की आवाज ,साबुन या शैंपू की सुगंध ,शरीर का संचालन इत्यादि सभी पर पूर्ण जागरूकता से ध्यान दें ,उन्हें अपनी समस्त इंद्रियों से महसूस करें | इसी प्रकार पार्क में प्रातः भ्रमण के पश्चात कुछ पल ठहर कर अपने श्वांस-प्रश्वाँस की गति पर ध्यान दें और वहां अपनी उपस्थिति की नीरव, शांत लेकिन ऊर्जस्वी अनुभूति को महसूस करें | कहने का तातपर्य यह है कि आप अपना हर कार्य पूर्ण जागरूकता से करे | ऐसा करने से आप अपने आप को मन के शोर से बचा सकते हैं |
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