"आत्मलोक" क्या है एवं आत्माएँ कैसे यहाँ पहुँचती है |

withrbansal   मृत्यु के बाद हम कहाँ जाते है -

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दोस्तों, "आत्मलोक" क्या है एवं आत्माओं के द्वारा किस प्रकार से आत्मलोक की यात्रा तय की जाती है ? यह ऐसे प्रश्न है जो सदियों से मानव समाज के लिए कौतूहल का विषय रहे हैं |                                                                                                          भारतीय दर्शन एवं संस्कृति में आत्मलोक के साथ-साथ कई प्रकार के लोकों यथा देवलोक,पितृलोक, ब्रह्मलोक ,पाताललोक, गोलोक, स्वर्गलोक, नरकलोक आदि की कल्पना की गई है, लेकिन इन सब में आत्मलोक ही एक ऐसा लोक है जिसे पाश्चात्य देशों में भी स्वीकृति प्राप्त होती जा रही है |                                                                         चावार्क के भौतिकवादी दर्शन को छोड़कर सामान्यतया भारतीय दर्शन में यह माना गया है कि हमारा मात्र भौतिक अस्तित्व ही नश्वर है, आंतरिक सत्व या अभौतिक अस्तित्व शाश्वत है जो कि जन्म-मृत्यु से मुक्त है |                                                                                                                                                  "गीता" में भी कहा है- जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रो को त्याग कर नए वस्त्रों को ग्रहण करता है, वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीर को त्याग कर नया शरीर धारण करता है |

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"आत्मलोक" वह लोक हैं जहां जीवात्माएँ निवास करती है और यह,एक जीवात्मा के रूप में हमारा वास्तविक घर भी माना जाता है | भौतिक शरीर को त्यागने के पश्चात हम वापस अपने घर यानी आत्मलोक ही जाते हैं एवं कुछ समय वहां विश्राम कर अपनी उर्जा को पुनःनवीनीकृत कर धरती पर सबक सीखने,कार्मिक ऋणों का चुकारा करने या अपने किसी प्रियजन की सहायतार्थ फिर से आ जाते हैं |                                                        इस प्रकार हमारी यह यात्रा निरंतर जारी रहती है | आने-जाने की इस क्रम को ही पुनर्जन्म (Reincarnation ) कहा जाता है |                                                                                                                                             हालाँकि यहूदी,ईसाइयत एवं इस्लाम में आत्मा,आत्मलोक एवं पुनर्जन्म संबंधी इन धारणाओं को मान्यता नहीं दी जाती है, लेकिन सुकरात, प्लेटो जैसे दार्शनिकों सहित तमाम प्राचीन सभ्यताओं के द्वारा इन्हें स्वीकृत किया गया है |

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 पश्चिम देशों के प्रसिद्ध चिकित्सकों एवं मनोवैज्ञानिक यथा डॉक्टर इयान स्टीवेंसन, डॉक्टर रेमंड मूडी, डॉक्टर माइकल न्यूटन, डॉक्टर ब्रायन वीज आदि द्वारा अपने वैज्ञानिक पद्धति से किए गए अध्ययनों के माध्यम से आत्मा, आत्मलोक एवं पुनर्जन्म के इस चक्र को स्थापित किया गया है |                                                                                                                                "नियर डेथ एक्सपीरियंस "(NDE ) या "मृत्यु निकट अनुभवों" पर डॉक्टर एलिजाबेथ कुबलर, डॉक्टर रॉस और डॉक्टर मूडी के अध्ययनों में भी मृत्यु उपरांत आत्मा के शरीर से बाहर आकर शरीर के ऊपर हवा में तैरना एवं कुछ क्षणों के उपरांत दूर एक सुरंग के पार एक अलौकिक, दिव्य सफेद प्रकाश का दिखाई देना एवं आत्मा का उसकी ओर आकर्षित होना जैसे अनुभव भी इसकी पुष्टि करते हैं |      पढ़े -मृत्यु पूर्व अनुभव : आउट ऑफ़ बॉडी एक्सपीरियंस

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                            एप्पल के फाउंडर "स्टीव जॉब्स" को मृत्यु से कुछ सेकंड पहले" ओह वॉउ ,ओह वॉउ ,ओह वॉउ..... " कहते हुए सुना गया था | यह भी कहीं ना कहीं इसी बात को रेखांकित करता है कि मृत्यु के क्षण उन्हें कोई ना कोई आश्चर्यजनक रूप से सुंदर दृश्य दिखाई पड़ा था और संभावना है कि वह आत्मलोक की ही एक झलक हो |                                                                                                                                                              कोमा से लौटकर वापस आए कई व्यक्तियों के अनुभव भी "मृत्यु पूर्व अनुभवों "के समान ही पाए गए हैं जो कि आत्मा और आत्मलोक के अस्तित्व की ही पुष्टि करते हैं | हालांकि कतिपय लोगों के द्वारा इन अनुभवों को "मनोवैज्ञानिक प्रत्यय" बताते हुए इन्हें दिमाग में होने वाले रासायनिक परिवर्तनों की उपज कहा है |                                                                                                                                                                    लेकिन पश्चिम के प्रसिद्ध चिकित्सा शास्त्री एवं मनोवैज्ञानिक "डॉक्टर माइकल न्यूटन" के द्वारा वर्षों तक किए गए अध्ययनों के द्वारा "आत्मलोक "को एक भव्य,प्रशंसनीय,बेहद अनुशासित एवं निर्देशित स्थान के रूप में स्थापित किया है |

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आत्मा के द्वारा भौतिक शरीर का त्याग-                                                                                                   मृत्यु के समय आत्मा भौतिक शरीर को त्याग कर एक भव्य एवं प्रज्ञावान प्रकाश ऊर्जा के रूप में उसके ऊपर उठ जाती है | यदि हमारी आत्मा परिपक्व है तो वह देह त्यागने से पहले ही समझ जाती है कि अब घर लौटने का समय आ गया है लेकिन आत्मा यदि  युवा या नयी है तो वह थोड़ी भ्रमित सी होती है |                                                                                                                           अधिकांश आत्माएं मृत्यु स्थल से भौतिक शरीर को छोड़ने के तुरंत पश्चात यात्रा के लिए रवाना हो जाती है, लेकिन कुछ आत्माएं ऐसी होती है जो मृत्यु के बाद भी मृत्यु स्थल के पास कुछ समय रहना चाहती है |                                                                                                                                             इसके कई कारण होते हैं, लेकिन मुख्य कारण यह है कि- आत्मा चाहती है कि आत्मलोक  की यात्रा प्रारंभ करने से पूर्व वह अपने पीछे छोड़े गए परिजनों(प्रियजनों ) को सांत्वना या दिलासा दिला जाए |                                                                                                                                                                      किन्तु ऐसे समय प्रियजनों के सदमे एवं शोक के कारण ग्रहणशीलता बहुत कम हो जाती है जिससे आत्मा को अपने प्रिय जनों से मानसिक संपर्क करने के लिए बहुत सी ऊर्जा लगानी पड़ती है | लेकिन फिर भी प्रयाण करती हुई आत्मा परिजनों को सांत्वना देने का कोई ना कोई रास्ता खोज ही लेती है |                                 यह भी पढ़े -मृत्यु के बाद का सत्य !

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सामान्यता ऐसा वह अपनी ऊर्जा की मौजूदगी को अपने प्रियजनों पर किसी भी तरीके से जाहिर करने का प्रयास करती है | वह हर संभव तरीके से यह जताने का प्रयास करती है कि वह अभी भी जीवित है | वह अपनी ऊर्जा की बौछार को अपने प्रियजन पर डालकर उसे मानसिक गर्माहट देने का प्रयास करती है |                                                                                                   कई बार किसी प्रियवस्तु के द्वारा या सपनों में फेरबदल या नवीन सपनों की उत्पत्ति या किसी अन्य ग्रहणशील व्यक्ति जैसे छोटे बच्चे या पालतू जानवर इत्यादि का उपयोग भी आत्माओं के द्वारा दिलासा दिए जाने हेतु मानसिक संपर्क स्थापित करने में किया जाता है |

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सामान्यतया आत्माएं मृत्यु के फौरन बाद मृत्यु स्थल छोड़ने को बेचैन रहती है ,उसका कारण इनका आत्मलोक के सौंदर्य के रसपान के प्रति अत्यधिक अधीर होना है |आत्मा की इस बात में रुचि नहीं होती है कि मृत्यु के बाद उनके निर्जीव शरीर के साथ क्या किया जाता है |                                                                                                                                         लेकिन बहुत सी आत्माएं स्वयं के अंतिम संस्कार के पूरा होने तक मृत्यु स्थल के आस-पास ही मंडराती रहती है | आत्माओं के द्वारा अपने परिवार जनों एवं मित्रों के द्वारा उनके जीवन के प्रति प्रकट की गई श्रद्धांजलि के लिए प्रशंसा की जाती है | भौतिक शरीर को छोड़ने के तुरंत बाद आत्मा स्वयं को शांत एवं स्वतंत्र महसूस करने लगती है |                                                                                                                                                              मृत्यु उपरांत भौतिक शरीर के ऊपर हवा में तैरते हुए उसे एक मटमैली सुरंग में से होकर एक दिव्य अलौकिक प्रकाश दिखाई देता है और वह उस और तीव्र आकर्षण महसूस कर उसकी ओर बढ़ना शुरू कर देती है | यह आत्मिक सुरंग ही "आत्मलोक का प्रवेश द्वार "कहलाता है | आत्मिक सुरंग की और बढ़ते समय आत्माओ को विश्रांतकारी संगीतमय ध्वनियो या तरंगों का अनुभव भी होता है |

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 दिव्य शांति एवं सौंदर्ययुक्त इस आत्मलोक में प्रवेश करने हेतु किसी प्रकार की विशेष योग्यताओं की आवश्यकता नहीं होती है | इसमें प्रवेश देने में अमीरी-गरीबी,वृद्ध-युवा, जाति, धर्म, राष्ट्र ,वर्ण पापी-पुण्यात्मा या अन्य किसी आधार पर भेद नहीं किया जाता है |                                                                                                                                                                 आत्मलोक के प्रवेश द्वार पर हमें प्यार,सुरक्षा एवं सम्मान देने हेतु  हमारे आत्मिक मार्गदर्शक, मित्र, प्रियजन इंतजार करते पाए जाते हैं | आत्मलोक की एक विलक्षण विशेषता यह है कि हमारे लिए जो व्यक्ति महत्वपूर्ण( प्रिय) है वह हमेशा हमें वहां स्वागत में मिलते हैं ,चाहे उनके द्वारा पुनर्जन्म में नया शरीर धारण कर लिया हो |                                                                                                                                                                ऐसा वे अपने सत्व को विभाजित करके करते हैं अर्थात वह अपनी उर्जा का एक अंश आत्मलोक में ही छोड़कर जाते हैं | इसलिए कोई भी आत्मा, आत्मलोक में अपने किसी भी प्रियजन से मिल सकती है |                                                 दोस्तों, अगले लेख में हम आत्मलोक की भव्यता,आत्मिक मार्गदर्शक, आत्मिक समूह,आत्माओं का ओरियंटेशन, पुनर्जन्म की तैयारी आदि के बारे में चर्चा करेंगे | withrbansal

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