जीवन के वास्तविक सुखों का उपभोग साधारण व्यक्ति ही करतें है |
withrbansal आपको असाधारण या महान बनने की आवश्यकता नहीं है -
दोस्तों, जैसा कि हम जानते हैं कि हर व्यक्ति हर क्षेत्र में विशिष्टता प्राप्त नहीं कर सकता है कोई व्यक्ति किसी एक कार्य में खास है तो हो सकता है वह किसी दूसरे कार्य में औसत या औसत से नीचे हो | यह सब सामान्य है, जिंदगी का स्वभाव है | क्योंकि किसी भी क्षेत्र में खास होने के लिए बहुत सारे समय और ऊर्जा की आवश्यकता होती है जबकि हम सभी के पास सीमित समय व ऊर्जा होती है | आपने देखा होगा कि अक्सर प्रतिभाशाली प्रसिद्ध वैज्ञानिक, खिलाड़ी,राजनेता,सफल बिजनेस टाइकून अपने निजी जीवन में मात खा जाते हैं | अधिकांश सेलिब्रिटीज जो कि शारीरिक रूप से सुंदर होते हैं वे मानसिक रूप से दिशाहीन पाए जाते हैं | हम सब अधिकतर सामान्य ही है और हमने कभी इसके बारे में परवाह भी नहीं की है |
वर्तमान में इंटरनेट, टीवी, गूगल, सोशल मीडिया, यूट्यूब जैसे सूचना एवं प्रचार माध्यमों के अलावा तथाकथित मोटिवेटरों के द्वारा हर दिन, हर व्यक्ति पर जीवन के हर क्षेत्र में असाधारण या महानता प्राप्त करने का दबाव इस तरह से बनाया जा रहा है कि मानों "विशिष्टता" ही अब "सामान्य "है | इनके द्वारा यह किया जा रहा है -बेस्ट में से भी बेस्ट खोज कर, बुरे में से भी बुरा, मजेदार में से भी ज्यादा मजेदार, सुंदरियों में से भीअति सुंदरी, डरों में भी भयानक डर खोज कर |
यह सब एक आम औसत आदमी को असुरक्षा एवं बेचैनी महसूस कराता है, फलस्वरुप हर आदमी येन-केन प्रकारेण किसी भी क्षेत्र में प्रसिद्धि प्राप्त करने की कोशिश करने में लगा है | कोई रातो रात अमीर बनने की योजनाएं बना रहा है तो कोई सोशल मीडिया पर ऊटपटांग हरकतें कर रहा है ,कुछ यह कार्य स्कूल में अवार्ड जीतकर कर रहें है ,अमेरिका- ब्रिटेन जैसे देशों में तो इस वजह से स्कूल में गोलियां चला दी जाती है, लोग पतले होने की दवा खा रहे हैं, कॉस्मेटिक सर्जरी करा रहे हैं | कहने का तात्पर्य यह है कि कोई भी यहां स्वयं पर औसत व्यक्ति का टैग नहीं लगे रहने देना चाहता | मीडिया के द्वारा प्रचारित की गई विशेषज्ञता के प्रति इस दीवानगी ने नई पीढ़ी को उम्मीदों के बोझ तले दबा दिया गया है और वे खुद को हारा हुआ इंसान समझने लगे हैं |
सोशल मीडिआ, मीडिया, फेसबुक, यूट्यूब, गूगल, सेमिनार,लाइव एवं मोटिवेशन कार्यक्रमों में बार-बार एक ही बात को दोहराया जा रहा है कि आपको किसी खास मकसद के लिए बनाया गया है और आप असाधारण या महानता प्राप्त करने के हकदार है और इसे सामाजिक स्वीकृति भी प्राप्त होती जा रही है | जबकि यह अपने आप में ही विवादास्पद कथन है जब सभी असाधारण या महान होंगे तो परिभाषा के अनुसार तो कोई भी असाधारण नहीं होगा | लेकिन सब लोग इस तथ्य की अनदेखी कर महानता की इस मृग मरीचिका को प्राप्त करने की दौड़ में शामिल है, जबकि होना यह चाहिए कि हम यह देखें कि हम किस चीज में अच्छे हैं और किसमें बुरे | सुधार की गुंजाइश हमेशा होती है |
आज कोई भी औसत होना स्वीकार नहीं करता है अर्थात वर्तमान में औसत होना ही असफलता का एक नया मापदंड बन गया है क्योंकि वह सोचता है कि औसत आदमी का जीवन कोई काम का नहीं है ,उसका जीना बेकार है | इसका मतलब यह भी है कि जीवन जब महान या उल्लेखनीय है, तो ही उसका कोई मूल्य है | तात्पर्य यह भी है कि यहां स्वयं सहित अधिकांश लोगों का जीवन बेकार है | जबकि यह एक खतरनाक सोच है जो स्वयं के साथ-साथ दूसरों के लिए भी घातक है | सच तो यह है कि हर आदमी असाधारण हो सकता है या महानता प्राप्त कर सकता है ,यह सब प्रवचन सुनने में अच्छे लगते हैं वास्तविक रूप में यह आपके दिल और दिमाग की राह के रोड़े है | सत्यता तो यह है कि जो कुछ लोग किसी क्षेत्र में महान उपलब्धि प्राप्त करते हैं वे इस कारण से नहीं कि वे खुद को पहले से कुछ खास या महान समझते हैं बल्कि इस वजह से कि उनमे खुद में सुधार लाने की या बेहतरीन करने की भावना घर कर गई थी |
जिस तरह से शारीरिक स्वास्थ्य के लिए सब्जियाँ या पौष्टिक चीजें खानी होती है, उसी तरह से मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी जीवन में कई कड़वे घूंटों को पीना पड़ता है जैसे -जीवन के इस बेस्वाद और सांसारिक सत्य को स्वीकार करना कि आपके काम संसार की नजरों में ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है,आपकी जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा नीरस एवं महत्त्वहीन होगा आदि | इस सम्बन्ध में पुरुषो के मुक़ाबले महिलाएं ,शारीरिक रूप से सामान्य भले ही हो लेकिन मानसिक तौर पर ज्यादा मजबूत होती है और उन्हें बिना महानता के प्रयास किये जीवन जीना अच्छी तरह से आता है |
इसलिए दोस्तों, एक बार आप भी इन्हें स्वीकार कर लेंगे तो आप ज्यादा हल्के हो जाएंगे,आप पर अनावश्यक खुद को साबित करने का दबाव खत्म होगा ,आपको अपनी पसंद का कार्य करने की आजादी प्राप्त होगी, वह भी बिना पूर्वाग्रह या भ्रामक धारणा के |
दोस्तों, जैसा कि हम जानते हैं कि हर व्यक्ति हर क्षेत्र में विशिष्टता प्राप्त नहीं कर सकता है कोई व्यक्ति किसी एक कार्य में खास है तो हो सकता है वह किसी दूसरे कार्य में औसत या औसत से नीचे हो | यह सब सामान्य है, जिंदगी का स्वभाव है | क्योंकि किसी भी क्षेत्र में खास होने के लिए बहुत सारे समय और ऊर्जा की आवश्यकता होती है जबकि हम सभी के पास सीमित समय व ऊर्जा होती है | आपने देखा होगा कि अक्सर प्रतिभाशाली प्रसिद्ध वैज्ञानिक, खिलाड़ी,राजनेता,सफल बिजनेस टाइकून अपने निजी जीवन में मात खा जाते हैं | अधिकांश सेलिब्रिटीज जो कि शारीरिक रूप से सुंदर होते हैं वे मानसिक रूप से दिशाहीन पाए जाते हैं | हम सब अधिकतर सामान्य ही है और हमने कभी इसके बारे में परवाह भी नहीं की है |
वर्तमान में इंटरनेट, टीवी, गूगल, सोशल मीडिया, यूट्यूब जैसे सूचना एवं प्रचार माध्यमों के अलावा तथाकथित मोटिवेटरों के द्वारा हर दिन, हर व्यक्ति पर जीवन के हर क्षेत्र में असाधारण या महानता प्राप्त करने का दबाव इस तरह से बनाया जा रहा है कि मानों "विशिष्टता" ही अब "सामान्य "है | इनके द्वारा यह किया जा रहा है -बेस्ट में से भी बेस्ट खोज कर, बुरे में से भी बुरा, मजेदार में से भी ज्यादा मजेदार, सुंदरियों में से भीअति सुंदरी, डरों में भी भयानक डर खोज कर |
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यह सब एक आम औसत आदमी को असुरक्षा एवं बेचैनी महसूस कराता है, फलस्वरुप हर आदमी येन-केन प्रकारेण किसी भी क्षेत्र में प्रसिद्धि प्राप्त करने की कोशिश करने में लगा है | कोई रातो रात अमीर बनने की योजनाएं बना रहा है तो कोई सोशल मीडिया पर ऊटपटांग हरकतें कर रहा है ,कुछ यह कार्य स्कूल में अवार्ड जीतकर कर रहें है ,अमेरिका- ब्रिटेन जैसे देशों में तो इस वजह से स्कूल में गोलियां चला दी जाती है, लोग पतले होने की दवा खा रहे हैं, कॉस्मेटिक सर्जरी करा रहे हैं | कहने का तात्पर्य यह है कि कोई भी यहां स्वयं पर औसत व्यक्ति का टैग नहीं लगे रहने देना चाहता | मीडिया के द्वारा प्रचारित की गई विशेषज्ञता के प्रति इस दीवानगी ने नई पीढ़ी को उम्मीदों के बोझ तले दबा दिया गया है और वे खुद को हारा हुआ इंसान समझने लगे हैं |
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सोशल मीडिआ, मीडिया, फेसबुक, यूट्यूब, गूगल, सेमिनार,लाइव एवं मोटिवेशन कार्यक्रमों में बार-बार एक ही बात को दोहराया जा रहा है कि आपको किसी खास मकसद के लिए बनाया गया है और आप असाधारण या महानता प्राप्त करने के हकदार है और इसे सामाजिक स्वीकृति भी प्राप्त होती जा रही है | जबकि यह अपने आप में ही विवादास्पद कथन है जब सभी असाधारण या महान होंगे तो परिभाषा के अनुसार तो कोई भी असाधारण नहीं होगा | लेकिन सब लोग इस तथ्य की अनदेखी कर महानता की इस मृग मरीचिका को प्राप्त करने की दौड़ में शामिल है, जबकि होना यह चाहिए कि हम यह देखें कि हम किस चीज में अच्छे हैं और किसमें बुरे | सुधार की गुंजाइश हमेशा होती है |
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जिस तरह से शारीरिक स्वास्थ्य के लिए सब्जियाँ या पौष्टिक चीजें खानी होती है, उसी तरह से मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी जीवन में कई कड़वे घूंटों को पीना पड़ता है जैसे -जीवन के इस बेस्वाद और सांसारिक सत्य को स्वीकार करना कि आपके काम संसार की नजरों में ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है,आपकी जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा नीरस एवं महत्त्वहीन होगा आदि | इस सम्बन्ध में पुरुषो के मुक़ाबले महिलाएं ,शारीरिक रूप से सामान्य भले ही हो लेकिन मानसिक तौर पर ज्यादा मजबूत होती है और उन्हें बिना महानता के प्रयास किये जीवन जीना अच्छी तरह से आता है |
इसलिए दोस्तों, एक बार आप भी इन्हें स्वीकार कर लेंगे तो आप ज्यादा हल्के हो जाएंगे,आप पर अनावश्यक खुद को साबित करने का दबाव खत्म होगा ,आपको अपनी पसंद का कार्य करने की आजादी प्राप्त होगी, वह भी बिना पूर्वाग्रह या भ्रामक धारणा के |
यह भी पढ़े -कभी-कभी हमें बेहद अकेलापन क्यूँ महसूस होता है आप जिंदगी के वास्तविक सुखों को अनुभव कर पाएंगे जैसे- घर की छत पर बारिश में भीगने का मजा, रोड साइड थड़ी पर चाय की चुस्कियां, एक अच्छी दोस्ती का सुख, कोई अच्छी किताब पढ़ना, किसी जरूरतमंद की सहायता करना, किसी अपने के साथ हंसी मजाक करना आदि | यह सब सामान्य बातें हैं लेकिन वास्तविकता में यही वह चीजें हैं जो जीवन में सच में मायने रखती है | withrbansal
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