मृत्यु के समय रह जाने वाले टॉप 5 रिग्रेट्स

अंत समय में रह जाते हैं ये अफसोस



 दोस्तों,इस जहां में हर व्यक्ति सफलता के पीछे भाग रहा है, प्रत्येक व्यक्ति येन-केन प्रकारेण जीवन में सफलता प्राप्त करने में लगा हुआ है | यह सामान्य है, इसमें आश्चर्यजनक है तो यह कि सफलता की परिभाषा उसकी खुद की नहीं है,यह उधारी है |                                                                                                                                                                     जब वे सारा जीवन बिना एक पल ठहरे,बिना अपनी अन्तरात्मा को सुनें, तथाकथित सफलता के पीछे संघर्ष एवं भागदौड़ करते हुए जीवन की अंतिम संध्या में पहुँचकर पीछे मुड़कर देखते है तो पता चलता है कि अरे ! यह तो वह जीवन नहीं था,जो मैं जीना चाहता था या यह तो वह सफलता नहीं है जिसे मैं पाना चाहता था और तब उनके जीवन में रह जाता है सिर्फ "काश " |

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ऑस्ट्रेलियाई लेखक एवं पेशे से नर्सिंगकर्मी "ब्रानी वेयर" जिनके द्वारा ब्रिटेन एवं मिडिल ईस्ट के अस्पतालों की पैलिएटिव केयर यूनिट में वर्षो काम किया गया | इन यूनिट में उन लोगों को रखा जाता है जो मृत्यु से जूझ रहे हैं,लाइलाज बीमारी से ग्रस्त है या जो जीवन की अंतिम स्टेज में है |                                                                                                                                    "ब्रानी वेयर" ने इन मृत्यु सन्निकट या मृत्यु का इंतजार कर रहे लोगों की सालों केयर का काम पूर्ण निष्ठा से किया | मृत्यु के मुहाने पर खड़े इन व्यक्तियों से घनिष्ठ संबंध बनाए,इन्हें सांत्वना दी और इनके मन की थाह लेकर यह जानने का प्रयास किया कि जीवन के ऐसे उनके कौन से काश या अफ़सोस (regrets ) है जिनका उन्हें आज जीवन के अंत में पछतावा है | 
                                                   

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कहा जाता कि इंसान मृत्यु के समय झूंठ नहीं बोलता है | जीवन के अंतिम क्षणों में कुछ भी मायने नहीं रखता है,सारी की सारी भौतिक उपलब्धियां बेमानी हो जाती है,तथाकथित सफलता जिसके पीछे हम भागते रहे हैं,निरर्थक हो जाती है | इस समय याद रह जाते है तो सिर्फ अपने कर्म | हमने क्या सही किया या फिर क्या गलत | हम क्या वह नहीं कर पाए जो हमें करना चाहिए था और हमने क्या वह किया जो हमें नहीं करना चाहिए था | 
                                                                      अंत समय में रह जाते हैं कुछअफसोस कि "काश मैंने -------यह किया होता "या "काश मैंने------ यह नहीं किया होता" ,क्योंकि लोग अंत समय में ही जीवन की महत्वपूर्ण चीजों को या जीवन के मकसद को पहचान पाते हैं और तब तक बहुत देर हो चुकी होती है |

मृत्यु के समय रह जाते है ये प्रमुख अफ़सोस
 
इस प्रकार "ब्रानी वेयर" द्वारा मृत्यु का इंतजार कर रहे हैं इन मरीजों की वर्षों काउंसलिंग एवं वार्तालाप से जन्म हुआ बेस्टसेलर पुस्तक "द टॉप फाइव रिग्रेट्स ऑफ़ द डाइंग" जिसमें 5 ऐसे टॉप एवं सामान्य अफ़सोस (regrets ) की पहचान की गई जो कि अधिकांश व्यक्तियों में मृत्यु के समय पाए गए |                                    

bronnie ware top five regrets of dying in hindi

                   तो आइये दोस्तों देखते कि वह कौन से ऐसे "काश"या अफ़सोस है उनके जीवन के,ताकि ये "काश" हमारे ना बन पाये  -

1" काश" मैं अपनी जिंदगी को अपनी तरह से जिया होता ,ना कि उस तरह से जैसा कि दूसरों ने मुझसे उम्मीद की थी | 

 यह लोगों में प्रथम एवं सर्वाधिक सामान्य पाए जाने वाला अफ़सोस था | क्योंकि ज्यादातर व्यक्ति पूरा जीवन अन्य लोगों जिसमें हमारा परिवार,मित्र एवं समाज शामिल है,की अपेक्षाओं एवं उम्मीदों को पूरा करने में लगा देते हैं | वह  कैरियर चुनते हैं जो हमारे माता-पिता चाहते हैं,चाहे वह हमें पसंद हो या नहीं | वर्षो उस नीरस,उबाऊ एवं प्रेरणा रहित जॉब को continue करते हैं,क्योंकि समाज एवं इष्ट मित्रों की नजरों में वह प्रतिष्ठित है |

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                             हम कभी एक पल रूककर अपने अंदर की आवाज को नहीं सुनते हैं , एक रोबोट की तरह वह करते रहते हैं जो लोग कर रहे है या जैसा किये जाने की दुनिया हम से अपेक्षा रखती है |लोग अपने परिवार की उम्मीदों को पूरा करने के लिए जीवन भर उस कार्य को करने में बिता देते हैं जो उनके द्वारा कभी भी पसंद नहीं किया होता है |                                                                                                                                                                           अपने मन का कोई कार्य इसलिए नहीं कर पाते हैं कि "लोग क्या कहेंगे '| अंत समय में आपके बहुत से सपने,इच्छाएँ एवं आकांक्षाएं जो कि आप पूरा कर सकते थे,अधूरी रह जाती है और पीछे रह जाता है -"काश" मैंने थोड़ा साहस दिखाया होता और अपने हिसाब से,अपनी मर्जी से जिंदगी जी होती

 2 "काश" मैंने इतनी ज्यादा मेहनत न की होती | 

 अधिकांश लोग अपने व परिवार को अतिरिक्त सुख-सुविधा,जीवन स्तर एवं भौतिक संसाधन उपलब्ध कराने या फिर अन्य कारणों से वर्कहोलिक हो जाते हैं | वे तब तक अपने रिटायरमेंट को टालते रहते हैं और काम करते रहते हैं जब तक की मौत उनके सामने आकर ना खड़ी हो जाए |

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 लेकिन इस बीच वे खो देते हैं-अपने बच्चों की किलकारियाँ ,बच्चों को बड़े होते देखने का आनंद,अपने पार्टनर की मुस्कान, परिवार के साथ क्वालिटी टाइम व्यतीत करने का सुख,अपने प्रियजनों के सुख-दुख में शामिल होने की संतुष्टि, किसी की मदद कर पाने का अलौकिक एहसास एवं अपना आध्यात्मिक विकास |                                                                                                      फिर अंत में रह जाता है वह अफ़सोस -काश मैंने थोड़ी कम मेहनत की होती,थोड़ा कम पैसा कमाया होता | इसलिए दोस्तों अपने काम से प्यार करने या व्यस्त रहने में कोई बुराई नहीं है लेकिन काम एवं जीवन की अन्य महत्त्वपूर्ण चीजों में संतुलन जरुरी है | साथ ही आपका काम चाहे छोटा हो या बड़ा उसमे उद्देश्य का होना आवश्यक है,क्योंकि हर काम जिसमे उद्देश्य होता है उससे किसी दूसरे को किसी न किसी रूप में फायदा होता है | भारतीय संस्कृति में प्रचलित " सादा जीवन उच्च विचार " को अपनाना इसमें फायदेमंद है |  

 3 "काश"मैंने अपनी भावनाएं जताने की हिम्मत की होती | 

 आमतौर पर सब अपने परिवार,माता-पिता,पत्नी एवं बच्चों से बेहद प्यार करते हैं लेकिन वे जीवन भर उन्हें अपने गले लगा कर अपनी भावनाओं को व्यक्त नहीं कर पाते हैं | उनमें वह मजबूत संबंध विकसित नहीं हो पाते है जो होने चाहिए ,इस बात का अंत समय में बेहद अफ़सोस होता है |

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  संबंधों में चाहत का इजहार नहीं कर पाना भी एक ऐसा ही काश होता है जो व्यक्ति को अंत में गहरी पीड़ा देता है | इसी प्रकार बुरे संबंधों में भी समझौते भरे जीवन से व्यक्ति ताउम्र निराशा,अवसाद एवं अन्य कई मानसिक बीमारियाँ झेलने को मजबूर होता है |                                                                                                                                                              ऐसे में जीवन के अंतिम समय में यह अफसोस बहुत गहरा हो जाता है 'काश " मैंने समय पर अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का साहस किया होता | इसलिए दोस्तों जिस तरह से बच्चे किस सहजता से अपने अहसासों को साझा करते है ,हमें भी समय रहते मजबूती से अपनी अनुभूतियों को व्यक्त करना सीखना होगा क्योंकि कोई भी यहाँ शाश्वत नहीं है ,ना हम,ना ही हमारे अपने |  

 4 "काश"मैंने अपने दोस्तों से संपर्क खत्म नहीं किया होता | 

 जैसे ही व्यक्ति जॉब,शादी आदि के बाद जीवन में व्यवस्थित होने लगता है वह धीरे-धीरे अपने काम की व्यस्तताओं ,प्राथमिकताओं के परिवर्तन,जीवन स्तर में अंतर या अन्य कई कारणों के चलते अपने दोस्तों को समय एवं महत्व देना कम कर देता है और एक समय ऐसा आता है कि वह अपने सभी स्कूल,कॉलेज व संघर्ष के समय के दोस्तों से कट जाता है |
अंत समय में रह जाने वाले टॉप अफ़सोस
                                                                                                                                                                        दोस्त ही हमें खुशी प्रदान करते हैं क्योंकि दोस्त ही हमें जानते कि हम वास्तविकता में क्या है,जो बातें हम अपने परिवार से भी शेयर नहीं कर पाते हैं,अपने दोस्तों से आसानी से कर लेते हैं | जीवन के आखिरी वक्त में बड़ी गहराई से यह एहसास होता है "काश" वे अपने दोस्तों से जुड़े रहे होते | इसलिए दोस्तों ,जो दोस्त आपके लिए अहम है,जो आपको वैसे ही स्वीकार करते है जैसे आप है,जो आपको अच्छी तरह से जानते हो ,उनसे सम्पर्क कभी खत्म मत करो ,उनसे मिलते रहे ,बातचीत करते रहे,आपस में प्यार बांटते रहो | 
                                                                

5 "काश' मैंने अपने आप को खुश रखा होता | 

 इंसान दूसरों को खुश रखने के चक्कर में स्वयं को खुश रखना भूल जाता है | व्यक्ति सोचता है कि जब मैं "वह" बन जाऊंगा तो मैं खुश हो जाऊंगा या "फलाँ" उपलब्धि प्राप्त कर लूंगा तो मुझे खुशी मिलेगी | लेकिन जब वह वहां पहुंचता है तो पता चलता है कि उसमें तो कोई खुशी नहीं है फिर वह खुशी का अपना अगला लक्ष्य बना लेता है और खुशी मृगमरीचिका की तरह उससे दूर होती जाती है |

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  ऐसे में अंत समय में  रह जाता है अफ़सोस "काश "मै अपने आपको खुश होने देता /देती | क्योंकि तभी उसे यह पता चलता है कि खुशी भी एक चयन (choice ) है,आप अपनी मर्जी से कभी भी खुश हो सकते हैं | खुशी,दूसरों या बाहरी चीजों पर निर्भर नहीं होती है,खुशी ना अतीत में है ना भविष्य में ,यह तो अभी और यही (Now ) में है | हम अपने को खुश होने से इसलिए रोक देते है क्योकि हमे लगता है कि हम इसके हक़दार नहीं या हम दूसरों की अपने बारे में राय को स्वीकार कर लेते है | 

 यह भी पढ़े -जीवन के वास्तविक सुखों का उपभोग साधारण व्यक्ति ही करतें है                                                                                                                     
तो दोस्तों इस भागती-दौड़ती जिंदगी में आवश्यक है कि हम एक क्षण ठहरकर गंभीरता से मनन करें कि इनमें से कोई हमारा "काश" तो नहीं बनने जा रहा है |  
तुम देखते जाओ,समय यूं ही एक दिन निकल जाएगा पूरी कर लो अपनी ख़्वाहिशें वक्त के रहते,वरना पछतावा ही रह जाएगा || 
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                                           @@@@@

टिप्पणियाँ

  1. बेहद शानदार 👍👍🙏🙏

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  2. बहुत शानदार प्रेरणादायक तथा खोज परक प्रस्तुति है। साधुवाद।

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