क्या रासायनिक द्रव्यों के द्वारा चेतना का विस्तार किया जा सकता है ?
क्या मादक पदार्थों के द्वारा चेतना का विस्तार किया जा सकता है -

withrbansal सभ्यता के प्रारंभ से ही मनुष्य चेतना के उच्च स्तर अर्थात मन की सामान्य दशा से ऊपर उठकर असाधारण अनुभूतियों की प्राप्ति हेतु आकांक्षित रहा है | चेतना के विस्तार या चेतना के इन अलौकिक स्तरों की झलक हेतु इंसान द्वारा कतिपय ऐसे रासायनिक पदार्थों(chemicals) की खोज की गई है जिनकी सहायता से वह इन रहस्यमय ऊंचाइयों को प्राप्त कर सके | वैदिक काल का "सोमरस "इसी चाहत का परिणाम है | प्राचीन काल में दिव्य अनुभूतियों के लिए सोमरस पान किया जाता था | भारत में हजारों साल से साधु-महात्मा भांग, गांजा ,अफीम आदि मादक रासायनिक पदार्थों का उपयोग इस हेतु करते रहे हैं | वर्तमान में पश्चिम देशों में चेतना के विस्तार एवं विशिष्ट आध्यात्मिक अनुभूति हेतु एलएसडी,मेस्कलीन एवं मारिजुआना जैसे नशीले ड्रग्स के बढ़ते उपयोग के कारण यह प्रश्न उठता है कि क्या मादक पदार्थों के द्वारा जागरूकता को बढ़ाया जा कर दिव्य अनुभूतियों का रसास्वादन किया जा सकता है ?
इस संबंध में वामपंथी तांत्रिकों के अलावा प्रसिद्ध भारतीय विचारक एवं धर्म गुरु आचार्य रजनीश उर्फ़"ओशो" इस मत के प्रबल समर्थक रहे हैं कि एलएसडी एवं मेस्कलीन जैसे ड्रग्स मनुष्य की संकुचित चेतना को फैलाने एवं उसे नए दर्शन कराने में सफल रूप से प्रयुक्त की जा सकती है | हालांकि उन के द्वारा यह भी स्पष्ट किया गया है कि-" मैं ऐसा नहीं मानता कि इनके द्वारा कोई समाधि को उपलब्ध हो जाएगा लेकिन इससे समाधि की झलक उसे मिल जाएगी और झलक मिल जाए तो समाधि की प्यास पैदा हो जाती है | "

लेकिन ओशो के उपरोक्त सारे तर्क आध्यात्मिक सत्यता से परे है | सत्यता यह है कि यह सारे मादक पदार्थ चेतना को प्रभावित तो करते हैं लेकिन इसके स्तर को ऊंचा नहीं उठाते हैं | यह चेतना या बाह्य सजगता को बाधित कर अर्ध-मूर्क्षा, बेहोशी या अर्द्ध-निद्रा जैसी स्थिति पैदा करते हैं और इनका असर जैसे ही समाप्त होता है आदमी वही का वहीं होता है | स्वयं ओशो के द्वारा यह स्वीकार किया गया है कि रासायनिक द्रव्यों के द्वारा सिर्फ झलक प्राप्त की जा सकती है ना की अवस्था | महावीर, कबीर या बुद्ध के पास जो है वह अवस्था है,झलक नहीं | अवस्था स्थाई होती है, झलक मात्र क्षणभंगुर |
लेकिन इन मादक रसायनों के द्वारा समाधि की झलक प्राप्त करने का तर्क भी खतरनाक रूप से भ्रमित करने वाला है | इसका तात्पर्य इंसान को एक ऐसे गहरे खारे समुद्र में धकेलना है जहां से वह कभी वापसी ना कर सके | हजारों साधक इस झलक के चक्रव्यूह में उलझ कर अपना जीवन बर्बाद कर चुके हैं और कर रहे हैं | यदि आध्यात्मिक अनुभूतियों की प्राप्ति इतने सरल तरीके से की जा सके तो क्यों ऋषि मुनि आदि इतनी भक्ति, तपस्या ,अनुशासन ,शरीर को कष्ट आदि देते हैं | सच तो यह है कि चरित्र ,चिंतन एवं व्यवहार में पवित्रता,शुचिता एवं साधना के द्वारा ही चेतना के उच्चतर आयामों में पहुंचा जा सकता है | यह भी पढ़े -विपश्यना मेडिटेशन : एक चमत्कारिक उपकरण
ये मादक पदार्थ अपने पीछे व्यक्ति में एक ऐसी रिक्तता छोड़ जाते हैं जो आगे जाकर अवसाद में परिवर्तित हो जाती है | प्राचीन सोमरस की तुलना वर्तमान में प्रचलित एलएसडी,मारिजुआना जैसी ड्रग्स से करना भी बचकाना है | सोमरस एक दिव्य औषधि थी | वर्तमान में तो इन दिव्य औषधियों का ज्ञान पूर्णतया विलुप्त हो चुका है | हालांकि यह सत्य है कि इन आधुनिक मादक पदार्थों से व्यक्ति कुछ समय के लिए एक मस्ती या आनंद जैसी अवस्था का अनुभव करता है एवं इसी को भ्रमित होकर चेतना का कोई अन्य आयाम समझ लेता है | जबकि ऐसा अल्प समय के लिए उसके स्नायुओं पर नियंत्रण खो देने के कारण होता है | यह भी पढ़े -मेडिटेशन :शरीर एवं मन की सीमा से परे जाकर जीने का तरीका
मादक पदार्थों पर अब तक किए गए अध्ययनों के निष्कर्ष भी यही कहते है कि यह नशीले पदार्थ अंततः सुस्ती, आलस्य, अवसाद, अकर्मण्यता ,उदासी ही उत्पन्न करते हैं, इनका प्रयोग जीवन की वास्तविकताओ से दूर भागने का एक तरीका है | यह मादक पदार्थ बेहोशी पैदा करते हैं न कि चेतना का विस्तार या कोई विशिष्ट आध्यात्मिक अनुभूति | यदि आप वाकई में इस तरह का अनुभव लेने के बारे में गंभीर हैं तो उसका सिर्फ एक ही तरीका है वह है -आध्यात्मिक अनुशासन | योग,ध्यान,साधना,प्रायाणाम आदि इसके प्रमुख तत्व है | withrbansal
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