क्या धूम्रपान करने वाले शानदार होते हैं ?
किशोरों एवं युवाओं में धूम्रपान के प्रति बढ़ता हुआ आकर्षण -world no smoking day

withrbansal दोस्तों, प्रतिवर्ष विश्व स्तर पर मार्च के द्वितीय बुधवार को "नो स्मोकिंग डे" (No Smoking Day ) के रूप में मनाया जाता है | ऐसे में ( इस वर्ष 10 मार्च 2021 को ) इस महत्वपूर्ण अवसर पर धूम्रपान ( smoking ) के बारे में चर्चा प्रासंगिक हो जाती है | वर्तमान में किशोरों एवं युवाओं में धूम्रपान के प्रति बढ़ता हुआ आकर्षण मुख्य चिंता का विषय बना हुआ है | कोई नहीं जानता कि इससे कैसे लड़ा जाए और यह भी कि इस आकर्षण का मुख्य कारण क्या है ? इस बारे में हमारी धारणा सामान्यतया यह रही है कि तंबाकू कंपनियां युवाओं को झूठ बोलकर उकसाती है, धूम्रपान को वास्तविकता से कहीं ज्यादा आकर्षक एवं कम हानिकारक होना दिखाती है |

धूम्रपान नियंत्रण हेतु हमारे द्वारा तंबाकू के विज्ञापनों एवं इसके उपयोग को प्रतिबंधित एवं नियमवद्ध किया गया, सिगरेट के दाम बढ़ाए, अवयस्कों को बिक्री पर प्रतिबंध लगाए, टीवी, रेडियो एवं अन्य प्रचार माध्यमों से इसके खतरों के प्रति आगाह किया,पैकेटो पर चेतावनी लिखना अनिवार्य किया | लेकिन ये सारे तरीके अंततः असफल रहे हैं | क्योंकि युवा वर्ग, धूम्रपान इसलिए नहीं कर रहा है कि इसके खतरों के प्रति वह अनजान है बल्कि वह इसके जोखिम को कहीं ज्यादा मानते हुए भी धूम्रपान कर रहा है |
धूम्रपान के विरुद्ध हमारी लड़ाई फेल होने का मुख्य कारण, धूम्रपान के कारणों का सही तरीके से नहीं समझा जाना है | इसके पीछे के असल कारण कहीं ना कहीं हमारी रहस्यमय एवं जटिल सामाजिक नियमों एवं रस्मों में छुपे हुए हैं | क्योंकि इंसानी व्यवहार एवं निर्णय जटिल एवं हमेशा सोचे समझे नहीं होते हैं |
प्रसिद्ध लेखक एवं मनोवैज्ञानिक "मैलकम ग्लैडवैल"कहते हैं कि -"धूम्रपान विरोधी आंदोलन में तंबाकू कंपनियों के धूम्रपान को आकर्षक दिखाने के खिलाफ आवाज उठाई और युवाओं को यह संदेश देने में जनता का खूब सारा पैसा खर्च किया कि धूम्रपान में कुछ भी शानदार नहीं है ,लेकिन यह सब असफल रहा है क्योंकि बात यह नहीं है कि धूम्रपान शानदार था, बात तो यह कि धूम्रपान करने वाले शिष्ट एवं शानदार थे | "
क्या वाकई में धूम्रपान करने वाले शानदार हैं-

प्रसिद्ध ब्रिटिश मनोवैज्ञानिक "हंसआइजिंक" द्वारा एक अत्यधिक धूम्रपान करने वाले ( चैन स्मोकर ) के सामान्य व्यक्तित्व का परीक्षण करते हुए कहा है कि -"वह सामाजिक है, पार्टियों को पसंद करता है, उसके बहुत से दोस्त होते हैं .....वह रोमांच को तलाशता है ...जोखिम उठाता है ,आमतौर पर आवेगशील व्यक्ति होता है..... वह हमेशा कुछ ना कुछ करते रहना चाहता है ....आक्रामक प्रवृत्ति का होता है...वह शीघ्र आपा खो बैठता है ,वह अपनी भावनाओं को नियंत्रित नहीं रख पाता है | " बाद के अन्य अध्ययनों में यह भी पाया गया कि यह चैन स्मोकर अपने बारे में कहीं अधिक ईमानदार, अधिक यौन संबंधों के आकांक्षी होते हैं और विपरीत लिंग के प्रति इनमे प्रबल आकर्षण होता है |

आधुनिक किशोर एवं युवा इसी बहिर्मुखी व्यक्तित्त्व की खूबियों -बागी एवं अड़ियल, उम्र से पहले सेक्स, इमानदारी आवेगशीलता, दूसरों की राय के प्रति उदासीनता, उत्तेजना की तलाश आदि के प्रति आकर्षित होते हैं | ऐसे में वे इन खूबियों के साथ लिपटी हुई सिगरेट के प्रति भी खिंचते चले जाते हैं |
चैन स्मोकर्स एवं चिपर्स -
हालाँकि निकोटिन को एक ऐसा घातक रसायन माना जाता है जो अपने संपर्क में आने वाले हर व्यक्ति को अपना गुलाम बना लेता है | लेकिन यह सच नहीं है | अध्ययनों में यह पाया गया है कि सिगरेट का अनुभव करने वाले व्यक्तियों में से मात्र एक तिहाई लोग ही इसे आगे चलकर नियमित कर पाते हैं | इनमें भी दो प्रकार के लोग हैं-

प्रथम- चैन स्मोकर्स(अत्यधिक धूम्रपान करने वाले )-
अत्यधिक सिगरेट पीने वाले, जो दिन में दो से ज्यादा पैकेट पी जाते हैं और यह "लती "या चेन स्मोकर की श्रेणी में आते हैं | इन्हें सुबह उठते ही रात में साफ हुए निकोटिन को फिर से भरने के लिए धूम्रपान करना पड़ता है |
द्वितीय - चिपर्स -
शिफमैन के अनुसार -वह व्यक्ति जो एक दिन में 5 से ज्यादा सिगरेट ना पिए ,लेकिन जो सप्ताह में कम से कम 4 दिन धूम्रपान करते हो , बस सोशल ड्रिंकर्स जैसे होते हैं, नियमित धूम्रपान के बावजूद यह इसके आदी नहीं होते हैं ,चिपर्स कहलाते है |

क्या कारण है कि सिगरेट का अनुभव लेने वालों में आगे चलकर एक व्यक्ति पीना बंद कर देता है ,दूसरा नियमित पीने के बावजूद नियंत्रित रहता है और तीसरा चैन स्मोकर बन जाता है ? " मैलकम ग्लैडवैल" इसका कारण आनुवंशिकता (जीन ) को बताते हुए कहते हैं कि निकोटिन के प्रति शरीर की सहनशीलता एवं उससे प्राप्त मादकता ही यह निर्धारित करती है कि कोई व्यक्ति चिपर बनेगा या चैन स्मोकर | जिन लोगों को उनकी प्रारंभिक सिगरेटों से मादकता नहीं मिली और उनका वह अनुभव इतना बुरा रहा कि वह इससे दूर हो गए ,तो ये वो लोग थे जिनका शरीर ज्यादा संवेदनशील होने के कारण निकोटिन की थोड़ी सी भी मात्रा को झेल नहीं पाया | चिपर्स वे लोग हैं जिनके जीन में निकोटिन से आनंद प्राप्त करना तो है ,लेकिन वे इसकी ज्यादा मात्रा सहन नहीं कर पाते हैं | जबकि चैन स्मोकर्स के जीन में यह दोनों चीज होती है, हमें धूम्रपान नियंत्रण हेतु चिपर्स को छोड़कर चैन स्मोकर को ही लक्ष्य करना होगा | यह भी पढ़े -प्रत्येक शारीरिक बीमारी के पीछे कोई ना कोई मानसिक कारण अवश्य होता है

धूम्रपान नियंत्रण पर अब तक हुए सामाजिक- मनोवैज्ञानिक अध्ययन में 2 मुख्य मुद्दे सामने आए हैं-
प्रथम- धूम्रपान के संक्रामक होनें को रोके (युवाओं एवं किशोरों को इसका अनुभव लेने से रोका जाए )अथवा द्वितीय- धूम्रपान को आदत बनने से रोका जाए (सभी को चिपर्स में बदल दिया जाए ) जहाँ तक धूम्रपान के संक्रमण को रोकने का सवाल है, यह कहीं ज्यादा कठिन है क्योंकि वर्तमान एवं भावी दोनों प्रकार के धूम्रपानकर्ताओ को इसके आकर्षण से दूर रखना बहुत ही दुष्कर है | ऐसे में हमारे पास उसे नियंत्रित करने का एक ही तरीका बचता है कि इसे आदत बनने से रोका जाए |


आखिर कैसे लड़े इस महामारी से ? -
@ प्रथम- अध्ययनों में यह ज्ञात हुआ है कि अधिकांश स्मोकर पूर्व में अवसाद के शिकार रहे हैं | अवसाद का कारण कुछ खास दिमागी रसायनों- डोपामाइन, सेरोटोनिन एवं नोरोपिनेफ्रीन के उत्पादन में कमी होना है | यह रसायन मूड़ को नियंत्रित करने के साथ-साथ आत्मविश्वास,श्रेष्ठता तथा आनंद की अनुभूति में योगदान करते हैं | स्मोकर तम्बाकू को अवसाद दूर करने के विकल्प के रूप में उपयोग लाते हैं | निकोटिन इन रसायनों का स्तर बढ़ाकर फीलगुड कराता है | स्मोकर केवल इसलिए ही धूम्रपान नहीं छोड़ पाता कि उसे इसकी लत है अपितु स्मोकिंग छोड़ देने पर उसे वापस मनोरोगों की चपेट में आने का भी खतरा रहता है | ऐसे में स्मोकर्स को निकोटीन के विकल्प के रूप में ऐसी अवसाद रोधी दवा दी जा सकती है जो दिमाग में इन रसायनों के स्तर को बढ़ा दे या परिवर्तित कर दे | साथ ही योग ,ध्यान एवं प्रायाणाम भी इसमें काफी मददगार हो सकते है | पढ़े -शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ एवं फिट रहने के 7 गोल्डन रूल

@ द्वितीय- निकोटिन की लत अचानक से नहीं लगती है, इसे लगने में काफी लंबा अंतराल होता है | चिपर्स प्रतिदिन बिना आदी बने 4 से 5 मिलीग्राम निकोटिन तक ले लेते हैं | ऐसे में यदि तंबाकू कंपनियां सिगरेटों में निकोटिन के स्तर को इतना कम कर दे कि युवाओं में लत के विकास को रोका या सीमित किया जा सके, साथ ही इससे इतना निकोटिन हासिल हो सके जिससे स्वाद एवं इंद्रिय उत्तेजना मिल सके तो यह आदत न बनकर एक सामान्य जुकाम या फ्लू जैसा होगा जो जितना आसानी से पकड़ता है उतना ही आसानी से हार भी जाता है | यह भी पढ़े -विपश्यना मेडिटेशन : एक चमत्कारिक उपकरण

युवावर्ग हमेशा, बहिर्मुखी व्यक्तित्व, पार्टियां, रोमांच, जोखिम एवं प्रयोग करने की ओर आकर्षित होता है | आज का किशोर या युवा हर उस चीज का अनुभव करना चाहता है जिसका निषेध किया गया है ,लेकिन इसका तात्पर्य यह भी नहीं है कि वह हर उस चीज का आदी बन जाएगा जिसका अनुभव वह करता है | कोकीन को आजमाने वाले युवाओं की बड़ी संख्या के बावजूद शोध के आंकड़े बताते हैं कि उनमें से मात्र 1% से भी कम लोगों द्वारा ही इसे नियमित किया है | युवाओं को ये धूम्रपान करने वाले शानदार लोग हमेशा आकर्षित करते रहेंगे | ऐसे में हमें उनके अनुभव या प्रयोग पर ज्यादा फोकस करने के बजाय इन्हें अधिक सुरक्षित बनाने की ओर ध्यान देना होगा ताकि यह आदत में रूपांतरित ना हो सके |
withrbansal
#######
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
आपको मेरी यह पोस्ट कैसी लगी ,कृपया सुझाव, शिकायत टिप्पणी बॉक्स में लिखकर बताये