प्रत्येक शारीरिक बीमारी के पीछे कोई ना कोई मानसिक कारण अवश्य होता है
विचार प्रक्रिया में परिवर्तन कर बीमारियों से छुटकारा कैसे पाये -
केन्सर , हृदयआघात , एड्स लीवर, किडनी फेलियर जैसी घातक बीमारियों से लेकर गंजापन, कानों की समस्याओं, बहरापन ,आंखों की समस्याएं, माइग्रेन, साइनस, गर्दन दर्द,गला दर्द ,सिर दर्द जैसे सामान्य रोगों के पीछे कोई ना कोई मानसिक कारण अवश्य होता है और जब तक हम उस बीमारी के पीछे के मानसिक कारण को खोज कर उसे दूर नहीं कर देते हैं तब तक उस बीमारी में स्थाई लाभ प्राप्त नहीं हो सकता है | इस संसार में कोई व्यक्ति ,कोई स्थान और कोई चीज हम से अधिक शक्तिशाली नहीं है क्योंकि अपने मन में सिर्फ हम सोच पाते हैं कोई दूसरा नहीं जो चीज हमारे मन में होती है ,वही हमारे जीवन में होती है | बीमारी पहले हमारे मन में आती है फिर शरीर में | यदि हमारा मन शांत एवं संतुलित होता है तो हमारा जीवन भी वैसा ही होता है | दोस्तों, इस लेख में हम प्रमुख शारीरिक बीमारियों के पीछे के मानसिक कारणों को समझने का प्रयास करेंगे कि हम किस प्रकार से अपने विचार प्रक्रिया को बदलकर एवं नई विचार प्रक्रिया अपनाकर किसी विशिष्ट रोग से मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं | प्रसिद्ध लेखक व हीलर "लुईस एल हे " के द्वारा" यू कैन हील" में इस संबंध में विस्तृत अध्ययन प्रस्तुत किया गया है | कुछ प्रमुख शारीरिक बीमारियों के पीछे के मानसिक कारण निम्नानुसार है -
1 हृदय आघात( heart attack)- हमारा हृदय निरंतर रक्त को पंप कर शरीर के प्रत्येक अंग एवं प्रत्येक कोशिका तक रक्त को पहुंचाने का कार्य करता है | यहाँ हृदय, प्यार का एवं रक्त खुशी का प्रतीक है | अर्थात हमारा दिल प्यार से हमारे शरीर में खुशी भरता रहता है | जब हमारे द्वारा लंबे समय तक खुशी और प्रेम को अपनाने से इंकार कर दिया जाता है ,पैसे या पद के लिए दिल की सारी खुशियों को निचोड़ लिया जाता है तो हमारा दिल सिकुड़ जाता है और ठंडा हो जाता है ,रक्त धीमा हो जाता है और हम एंजाइना व हार्टअटैक की ओर बढ़ने लगते हैं | इसलिए यदि अटैक से बचना है या पूर्व में आ चुका है और चाहते हैं कि दोबारा ना आए तो अपने आसपास मौजूद छोटी-छोटी खुशियों पर ध्यान दें एवं उन्हें अपनाएं | साथ ही नई विचार प्रक्रिया-" मेरा ह्रदय प्रेम की लय पर धड़कता है, मैं सभी के लिए प्रेम अभिव्यक्त करता हूं, मैं प्रेम से खुशी को अपने मन, शरीर तथा अनुभवों में प्रवाहित होने की इजाजत देता हूं | "
2 केन्सर - यह एक ऐसा रोग है जो लंबे समय तक किसी गहरी नाराजगी द्वारा उत्पन्न होता है जब तक कि वह पूरे शरीर को नष्ट नहीं कर देता | जब व्यक्ति किसी गहरे राज या दुःख को लंबे समय तक दबाये रखता है अथवा बचपन में व्यक्ति के किसी विश्वास को ठेस या क्षति पहुंचती है तो वह निराशा ,असहायता एवं आत्मदया की भावना से जीता है एवं दूसरों के साथ स्वस्थ रिश्ते नहीं बना पाता है | ऐसे में व्यक्ति का उपचार हेतु अपने आप से प्रेम करना एवं स्वीकार करना आवश्यक है | नई विचार प्रक्रिया -" मैं अपने आप से प्रेम करता हूं इसलिए अपने आप को जैसा भी हूं वैसा ही स्वीकार करता हूं ,मैं प्रेम से सारे अतीत को माफ करता हूं और छोड़ता हूं | "
3 पेट से संबंधित बीमारियां - पेट से संबंधित बीमारी का मतलब यह है कि हम नए अनुभवों या नए विचारों को पचा नहीं पा रहे हैं या हम नए विचारों से डरते हैं | अल्सर का मुख्य कारण है - पर्याप्त अच्छा नहीं होने का भय |कब्ज का कारण पुरानी रिश्तो या बातों को पकड़ कर रखना है कभी-कभी कंजूसी भी इसका एक कारण होता है | नवीन विचार प्रक्रिया - "मैं सहजता से जीवन को ग्रहण करता हूं, जीवन मेरे सामंजस्य में है ,मैं हर दिन के हर नए क्षण को आत्मसात करता हूं | "
4 गले से संबंधित समस्याएं - इससे सम्बंधित बीमारियाँ गला खराब रहना, थायराइड टॉन्सिलाइटिस आदि है | गला हमारे शरीर में रचनात्मक प्रभाव का प्रतिनिधित्व करता है | इसके द्वारा हमारी रचनात्मकता अभिव्यक्त होती है | जब रचनात्मकता अकड़ जाती है या कुंठित होती है तो गले में समस्याएं होती है | कई बार लोग वह नहीं कर पाते हैं जो वह करना चाहते हैं, थायराइड एवं टॉन्सिलाइटिस समस्याएं केवल कुंठित रचनात्मकता होती है जो अपनी इच्छा अनुसार काम न कर पाने के कारण होती है | गला खराब होना गुस्से का प्रतीक है यदि साथ में सर्दी जुकाम भी है तो यह मानसिक भ्रम का भी द्योतक होता है | गले में ऊर्जा केंद्र का पांचवा चक्र होता है जिसे" विशुद्ध चक्र" कहा जाता है जिसका 16 पंखुड़ियों वाला कमल प्रतीक होता है | यह आत्माभिव्यक्ति एवं संप्रेषण का स्थान होता है, संगीत के 7 सुर भी यहीं से निसृत होते हैं | जब व्यक्ति के द्वारा बदलाव का प्रतिरोध किया जाता है या परिवर्तन करने का प्रयास किया जाता है तो उसके गले में काफी कुछ होता है कभी-कभी खांसी जैसी | ऐसे में नवीन विचार प्रक्रिया -" मैं प्रतिदिन सकारात्मक परिवर्तनशील होता जा रहा हूं और मेरी अभिव्यक्ति हर क्षेत्र में श्रेष्ठता को प्राप्त कर रही है | "
5 गर्दन का दर्द( सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस ) -गर्दन,अपने विचारों में लचीला होने, किसी दूसरे व्यक्ति के पक्ष या दृष्टिकोण को समझने की क्षमता का प्रतिनिधित्व करती है | यदि किसी व्यक्ति द्वारा गर्दन में कॉलर पहनी हुई है तो आप समझ जाइए कि वह व्यक्ति जिद्दी , दंभी एवं हठी है उसमें लचीलापन नहीं है | ऐसे में मन में नवीन विचार प्रक्रिया अपनाएं -" मैं आसानी से समस्या के सभी पक्षों को देख सकता हूं ,चीजों को करने एवं देखने के बहुत सारे तरीके हैं,मैं सुरक्षित हूं | "
6 घुटनों का दर्द- घुटनों का संबंध भी लचीलापन से होता है | जब हम आगे तो बढ़ना चाहते हैं लेकिन झुकना नहीं चाहते हैं या अपने तरीके नहीं बदलना चाहते हैं, हम झुकने से डरते हैं और हम कठोर हो जाते हैं | अहम् और दम्भ के कारण घुटने अकड़ जाते हैं | ऐसे में अपनी जिद छोड़ें, पिछली बातें भूल जाए | जीवन के प्रवाह में सहज लचीलेपन से आगे बढ़े | नई विचार प्रक्रिया अपनाये - "में आसानी से झुकता हूं एवं सहज लचीलापन से प्रवाहित होता हूं | "
7 मोटापा - मोटापा, सुरक्षा की आवश्यकता से संबंध रखता है | जब व्यक्ति स्वयं को दुखों, कमजोरियों आलोचना ,दुर्व्यवहार , सेक्सुअलिटी एवं छेड़छाड़ से असुरक्षित महसूस करता है तो उसका वजन बढ़ जाता है | ऐसे में अपने आप से प्यार करें, स्वयं को स्वीकार करें, जीवन प्रक्रिया पर विश्वास बनाए रखें, नकारात्मक विचारों को छोड़कर स्वयं को सुरक्षित महसूस करें तो वजन अपने आप ठीक हो जाएगा | बचपन में पोषण से वंचित किए जाने पर उत्पन्न क्रोध से पेट पर मोटापा आता है ,ऐसे में आध्यात्मिक भोजन ग्रहण करें | बचपन से माता-पिता पर दबा हुआ क्रोध नितंबों का मोटापा लाता है | विचार प्रक्रिया- "मैं अतीत को भूलना चाहता हूं, मुझे अपने माता-पिता की सीमाओं से आगे जाने में कोई झिझक नहीं है | " पिता पर बचपन का दबा हुआ गुस्सा अक्सर जांघों के मोटापे के रूप में प्रकट होता है | नई विचार प्रक्रिया -" मैं अपने पिता को एक प्रेम विहीन बच्चे के रूप में देखता हूं और मैं उन्हें क्षमा करता हूं | " यह भी पढ़े -शारीरिक एवं मानसिक फिट रहने हेतु 7 गोल्डन हैबिट्स
8 जनन अंगों एवं सेक्सुअल समस्याएं- जितनी भी प्रकार की जनन अंगों से संबंधित समस्याएं हैं ,सामान्यतया अपने जनन अंगों को गंदा ,पापमय मानने, अस्वीकृत करने एवं नकारने से होती है | अधिकांश यौन समस्याएं, सेक्स के संबंध में अपराध बोध की भावना से पैदा होती है | जबकि हमारे शरीर का हर अंग और हमारे शरीर का हर कार्य बिल्कुल सही और सामान्य, प्राकृतिक और खूबसूरत है, उन्हें गंदा एवं पापमय मानकर नकारना पीड़ा और कुंठा उत्पन्न करना है | इसी तरह हमारे यौनांग भी हमें आनंद प्रदान करने के लिए हमारे शरीर के सबसे आनंददायक अंगों के रूप में सृजित किए गए हैं | सेक्स सिर्फ सही ही नहीं बल्कि एक अद्भुत एवं गौरवपूर्ण क्रिया है जो हमारे लिए इतना ही सामान्य है जितना कि सांस लेना या भोजन करना | आज आवश्यकता है कि बच्चों को स्कूल में न केवल सेक्सुअलिटी की क्रिया प्रणाली को समझाया जाये बल्कि उन्हें यह भी बताया जाए कि हमारे शरीर, जननांग एवं सेक्सुअलिटी ख़ुशी का विषय है | उन्हें अपने आप एवं अपने शरीर से प्रेम करना सिखाया जाए |
9 डायबिटीज - इसका संबंध जीवन के सुखों की मिठास से है | जब व्यक्ति को जीवन में जो छूट गए हैं उनकी गहरी चाहत होती है तो वह डायबिटीज के रूप में प्रकट होती है | मुक्त होने के लिए नवीन विचार प्रक्रिया -" यह क्षण खुशी भरा है और मैं आज की मिठास का मजा लेना चाहता हूं | "
10 हाइपरटेंशन - इसका संबंध लंबे समय से जारी किसी भावनात्मक समस्या से है जिसका समाधान अभी तक नहीं हुआ है | कभी-कभी यह बचपन में प्रेम के अभाव एवं नकारात्मकता को भी प्रदर्शित करती है | ऐसे में बार-बार यह दोहराये -" मैं खुशी से अपने अतीत को छोड़ता हूं और मेरा वर्तमान पूर्ण खुशहाल है | " 11 गंजापन - जब व्यक्ति के द्वारा जीवन प्रक्रिया पर विश्वास नहीं कर सब कुछ नियंत्रित करने का प्रयास किया जाता है, तब उस नियंत्रण में प्राप्त असफलता से उत्पन्न भय एवं तनाव ही गंजापन का प्रमुख मानसिक कारण है | ऐसे में व्यक्ति को अपनी मानसिकता बदल कर जीवन प्रक्रिया पर विश्वास करना सीखना चाहिए सबको प्रेम दे एवं प्रेम स्वीकार करें |
12 माइग्रेन - जब व्यक्ति के द्वारा जीवन प्रवाह का प्रतिरोध कर अपने आप को अमान्य किया जाता है, अपनी स्वयं की आलोचना की जाती है अथवा स्वयं को किसी बात के लिए बाध्य किए जाने को नापसंद किया जाता है या किसी प्रकार का यौन भय हो तो वह माइग्रेन के रूप में शरीर में परिलक्षित होता है | पीड़ा से मुक्ति हेतु स्वयं को प्यार एवं स्वीकार करने के साथ-साथ नवीन विचार प्रक्रिया अपनाये -" मुझे जिन चीजों की आवश्यकता है मैं वह आसानी से प्राप्त कर लेता/ लेती हूं | "
13 लिवर समस्या - हमारा लीवर क्रोध, रोष एवं आदिम भावनाओं का स्थल माना जाता है | जब व्यक्ति द्वारा लगातार शिकायतें की जाती है ,बदलने से इनकार किया जाता है, मन में गुस्सा एवं घृणा को लगातार दबाये रखते हैं या किसी चीज छूट जाने का मन में भय हो तो वह लीवर की समस्याओं के रूप में सामने आता है | नवीन विचार प्रक्रिया - "मेरा ह्रदय प्रेम,शांति एवं खुशी से भरा हुआ है, मेरा मन स्वस्थ एवं स्वतंत्र है और मैं अतीत को छोड़कर नवीन में प्रवेश करता हूं | सब कुशल मंगल है | "
14 पीठ संबंधी समस्याएं- पीठ की समस्याओं का संबंध स्वयं को बेसहारा समझने से है | जब व्यक्ति के द्वारा यह माना जाता है कि उसे किसी से भी (पति-पत्नी, प्रेमी ,मित्र ,बॉस से) भावनात्मक सहयोग नहीं मिलता है ,कोई भी उसे नहीं समझता है तो पीठ के ऊपरी हिस्से में दर्द या समस्या उत्पन्न होती है | जब व्यक्ति में किसी भी प्रकार का अपराध बोध होता है तो उसकी पीठ के मध्य भाग में दिक्कतें आती है | पैसे का अभाव या पैसे के प्रति अत्यधिक चिंता पीठ के निचले हिस्से को प्रभावित करती है | विचार प्रक्रिया में यथोचित परिवर्तन कर समस्या से मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं |
15 दुर्घटनाएं - दुर्घटनाओं को हमारे स्वयं के द्वारा मानसिक विचारों के माध्यम से आमंत्रित किया जाता है | दुर्घटनाएं सामान्यता अपने आप एवं दूसरों पर क्रोध एवं अपराध बोध की अभिव्यक्ति है ,कुंठाओ का प्रकटीकरण है | व्यक्ति का दूसरों को चोट पहुंचाने का आशय होता है लेकिन स्वयं चोटिल हो जाता है | दुर्घटनाओं से बचने के लिए अपने आप को स्वीकार या आत्मानुमोदन जरूरी है |
इसी प्रकार फेफङों में समस्याओ का मतलब है कि हम जीवन को अपनाने से डरते है या हम महसूस करते है कि हमें पूर्ण रूप से जीवन जीने का कोई अधिकार नहीं है | नवीन मानसिक विचार - "मुझमे जीवन को पूर्णता से ग्रहण करने की क्षमता है ,मैं जीवन को प्रेम से एवं पूर्णता से जीता हूँ | " पुरुषों में प्रोस्टेट संबंधित समस्याएं आत्मसम्मान की कमी एवं यह मानने से होती है की आयु के अधिक होने के साथ उसके पुरूषत्व में कमी आ रही है | अर्थराइटिस या गठिया बीमारी परफेक्टनिज्म पर ज्यादा आग्रह किए जाने से आती है | फोड़े- फुंसियां, खरोच, जख्म ,सूजन इत्यादि शरीर में क्रोध की अभिव्यक्ति है |
दोस्तों ,उपरोक्त शारीरिक बीमारियों के विश्लेषण करने से एक चीज जो नजर आती है वह यह है कि सभी बीमारियों के पीछे दो मुख्य मानसिक कारण होते है वह है प्रथम भय एवं दूसरा क्रोध क्रोध- नाराजगी,ईर्ष्या, आलोचना,कुंठा एवं कड़वाहट के रूप में प्रकट होता है जबकि भय -किसी प्रकार के तनाव ,चिंता ,बैचेनी ,असुरक्षा ,संदेह ,अविश्वाश एवं अयोग्य महसूस करना होता है | यदि हमें स्थाई रूप से स्वस्थ होना है तो उपचार के रूप में दवाइयों के साथ साथ हमें क्रोध एवंं भय के स्थान पर प्रेम एवं विश्वास को अपनाना होगा | इसके लिए अपनी व दूसरों की आलोचना छोड़ दें, आप जैसे हैं उसी रूप में स्वीकार करें, अपने आप की प्रशंसा करें ,प्यार दे व प्यार प्राप्त करें |
जब भी समय मिले दर्पण के सामने खड़े होकर बोले -" मैं स्वयं से प्यार करता हूं और स्वयं को जैसा हूँ वैसे ही स्वीकार करता हूं | मेरे चारों तरफ प्यार, प्रशंसा एवं सम्मान बिखरा हुआ है और मैं प्यार, प्रशंसा एवं सम्मान पाने एवं देने के योग्य हूं | मेरे जीवन में सब कुछ अच्छा है | " प्रारम्भ में शब्दों पर विश्वास करना कठिन होगा लेकिन धीरे-धीरे अभ्यास करते रहने पर शब्द महसूस होने लगेंगे और जैसे-जैसे महसूस करोगे आपको पूर्ण एवं स्थायी स्वास्थ्य लाभ मिलना शुरू हो जाएगा | withrbansal
withrbansal दोस्तों, जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हमारा जीवन हमारे आंतरिक विचारों, शब्दों, धारणाओं एवं पूर्वाग्रहों का प्रतिबिंब होता है |चूँकि हमारा भौतिक शरीर इस जीवन यात्रा में एक वाहन के रूप में कार्य करता है फलस्वरूप हमारा शरीर भी हमारे जीवन के बाकी पक्षों की ही तरह हमारी आंतरिक विचार प्रक्रिया एवं शब्दों से प्रभावित होकर तदनुसार प्रतिक्रिया व्यक्त करता है | हमारे शरीर की हर कोशिका हमारे विचारों एवं शब्दों के प्रति प्रतिक्रिया व्यक्त करती है | शरीर की 100 ट्रिलियन कोशिकाएं हमारे अधीन कार्य करती हैं जो लगातार हमारे विचारों ,धारणाओं ,भावनाओं, शब्दों एवं मान्यताओं के माध्यम से हमसे आदेश- निर्देश प्राप्त कर उनका पालन करती रहती है | हमारा शरीर उन आदेशों एवं निर्देशों के अनुसार प्रतिक्रिया कर स्वास्थ्य \बीमारी प्रकट कर देता है|
आपने देखा होगा कि कई लोग ऐसे होते हैं जिनकी बहुत ही सुस्त एवं खराब लाइफस्टाइल होती है, बिंदास खाते -पीते हैं फिर भी प्रायः स्वस्थ रहते हैं और कोई गंभीर बीमारी भी उन्हें नहीं होती है | दूसरी और कुछ लोग ऐसे होते हैं जो संपूर्ण स्वास्थ संबंधी नियमों का पालन करते हैं , रोजाना जिम जाते हैं,व्यायाम करते है ,वॉकिंग करते हैं,अच्छा पौष्टिक भोजन लेते हैं, यहां तक कि कोई दुर्व्यवसन भी उनमें नहीं है ,इसके बावजूद वे अक्सर बीमार पाए जाते हैं | ऐसे लोगों के अक्सर बीमार रहने के पीछे उनकी मानसिक विचार प्रक्रिया एक प्रमुख कारण होती है | ऐसे में किसी भी प्रकार की मेडिसिन यथा - एलोपैथिक, आयुर्वेदिक या होम्योपैथिक किसी भी पैथी का असर नहीं होता है, यदि होता भी है तो वह अस्थायी ही होता है | यह भी पढ़े -अनिद्रा(insomnia) में एलोपैथिक दवाइयाँ :स्थायी समाधान नहीं है
केन्सर , हृदयआघात , एड्स लीवर, किडनी फेलियर जैसी घातक बीमारियों से लेकर गंजापन, कानों की समस्याओं, बहरापन ,आंखों की समस्याएं, माइग्रेन, साइनस, गर्दन दर्द,गला दर्द ,सिर दर्द जैसे सामान्य रोगों के पीछे कोई ना कोई मानसिक कारण अवश्य होता है और जब तक हम उस बीमारी के पीछे के मानसिक कारण को खोज कर उसे दूर नहीं कर देते हैं तब तक उस बीमारी में स्थाई लाभ प्राप्त नहीं हो सकता है | इस संसार में कोई व्यक्ति ,कोई स्थान और कोई चीज हम से अधिक शक्तिशाली नहीं है क्योंकि अपने मन में सिर्फ हम सोच पाते हैं कोई दूसरा नहीं जो चीज हमारे मन में होती है ,वही हमारे जीवन में होती है | बीमारी पहले हमारे मन में आती है फिर शरीर में | यदि हमारा मन शांत एवं संतुलित होता है तो हमारा जीवन भी वैसा ही होता है | दोस्तों, इस लेख में हम प्रमुख शारीरिक बीमारियों के पीछे के मानसिक कारणों को समझने का प्रयास करेंगे कि हम किस प्रकार से अपने विचार प्रक्रिया को बदलकर एवं नई विचार प्रक्रिया अपनाकर किसी विशिष्ट रोग से मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं | प्रसिद्ध लेखक व हीलर "लुईस एल हे " के द्वारा" यू कैन हील" में इस संबंध में विस्तृत अध्ययन प्रस्तुत किया गया है | कुछ प्रमुख शारीरिक बीमारियों के पीछे के मानसिक कारण निम्नानुसार है -
1 हृदय आघात( heart attack)- हमारा हृदय निरंतर रक्त को पंप कर शरीर के प्रत्येक अंग एवं प्रत्येक कोशिका तक रक्त को पहुंचाने का कार्य करता है | यहाँ हृदय, प्यार का एवं रक्त खुशी का प्रतीक है | अर्थात हमारा दिल प्यार से हमारे शरीर में खुशी भरता रहता है | जब हमारे द्वारा लंबे समय तक खुशी और प्रेम को अपनाने से इंकार कर दिया जाता है ,पैसे या पद के लिए दिल की सारी खुशियों को निचोड़ लिया जाता है तो हमारा दिल सिकुड़ जाता है और ठंडा हो जाता है ,रक्त धीमा हो जाता है और हम एंजाइना व हार्टअटैक की ओर बढ़ने लगते हैं | इसलिए यदि अटैक से बचना है या पूर्व में आ चुका है और चाहते हैं कि दोबारा ना आए तो अपने आसपास मौजूद छोटी-छोटी खुशियों पर ध्यान दें एवं उन्हें अपनाएं | साथ ही नई विचार प्रक्रिया-" मेरा ह्रदय प्रेम की लय पर धड़कता है, मैं सभी के लिए प्रेम अभिव्यक्त करता हूं, मैं प्रेम से खुशी को अपने मन, शरीर तथा अनुभवों में प्रवाहित होने की इजाजत देता हूं | "
3 पेट से संबंधित बीमारियां - पेट से संबंधित बीमारी का मतलब यह है कि हम नए अनुभवों या नए विचारों को पचा नहीं पा रहे हैं या हम नए विचारों से डरते हैं | अल्सर का मुख्य कारण है - पर्याप्त अच्छा नहीं होने का भय |कब्ज का कारण पुरानी रिश्तो या बातों को पकड़ कर रखना है कभी-कभी कंजूसी भी इसका एक कारण होता है | नवीन विचार प्रक्रिया - "मैं सहजता से जीवन को ग्रहण करता हूं, जीवन मेरे सामंजस्य में है ,मैं हर दिन के हर नए क्षण को आत्मसात करता हूं | "
4 गले से संबंधित समस्याएं - इससे सम्बंधित बीमारियाँ गला खराब रहना, थायराइड टॉन्सिलाइटिस आदि है | गला हमारे शरीर में रचनात्मक प्रभाव का प्रतिनिधित्व करता है | इसके द्वारा हमारी रचनात्मकता अभिव्यक्त होती है | जब रचनात्मकता अकड़ जाती है या कुंठित होती है तो गले में समस्याएं होती है | कई बार लोग वह नहीं कर पाते हैं जो वह करना चाहते हैं, थायराइड एवं टॉन्सिलाइटिस समस्याएं केवल कुंठित रचनात्मकता होती है जो अपनी इच्छा अनुसार काम न कर पाने के कारण होती है | गला खराब होना गुस्से का प्रतीक है यदि साथ में सर्दी जुकाम भी है तो यह मानसिक भ्रम का भी द्योतक होता है | गले में ऊर्जा केंद्र का पांचवा चक्र होता है जिसे" विशुद्ध चक्र" कहा जाता है जिसका 16 पंखुड़ियों वाला कमल प्रतीक होता है | यह आत्माभिव्यक्ति एवं संप्रेषण का स्थान होता है, संगीत के 7 सुर भी यहीं से निसृत होते हैं | जब व्यक्ति के द्वारा बदलाव का प्रतिरोध किया जाता है या परिवर्तन करने का प्रयास किया जाता है तो उसके गले में काफी कुछ होता है कभी-कभी खांसी जैसी | ऐसे में नवीन विचार प्रक्रिया -" मैं प्रतिदिन सकारात्मक परिवर्तनशील होता जा रहा हूं और मेरी अभिव्यक्ति हर क्षेत्र में श्रेष्ठता को प्राप्त कर रही है | "
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6 घुटनों का दर्द- घुटनों का संबंध भी लचीलापन से होता है | जब हम आगे तो बढ़ना चाहते हैं लेकिन झुकना नहीं चाहते हैं या अपने तरीके नहीं बदलना चाहते हैं, हम झुकने से डरते हैं और हम कठोर हो जाते हैं | अहम् और दम्भ के कारण घुटने अकड़ जाते हैं | ऐसे में अपनी जिद छोड़ें, पिछली बातें भूल जाए | जीवन के प्रवाह में सहज लचीलेपन से आगे बढ़े | नई विचार प्रक्रिया अपनाये - "में आसानी से झुकता हूं एवं सहज लचीलापन से प्रवाहित होता हूं | "
10 हाइपरटेंशन - इसका संबंध लंबे समय से जारी किसी भावनात्मक समस्या से है जिसका समाधान अभी तक नहीं हुआ है | कभी-कभी यह बचपन में प्रेम के अभाव एवं नकारात्मकता को भी प्रदर्शित करती है | ऐसे में बार-बार यह दोहराये -" मैं खुशी से अपने अतीत को छोड़ता हूं और मेरा वर्तमान पूर्ण खुशहाल है | " 11 गंजापन - जब व्यक्ति के द्वारा जीवन प्रक्रिया पर विश्वास नहीं कर सब कुछ नियंत्रित करने का प्रयास किया जाता है, तब उस नियंत्रण में प्राप्त असफलता से उत्पन्न भय एवं तनाव ही गंजापन का प्रमुख मानसिक कारण है | ऐसे में व्यक्ति को अपनी मानसिकता बदल कर जीवन प्रक्रिया पर विश्वास करना सीखना चाहिए सबको प्रेम दे एवं प्रेम स्वीकार करें |
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12 माइग्रेन - जब व्यक्ति के द्वारा जीवन प्रवाह का प्रतिरोध कर अपने आप को अमान्य किया जाता है, अपनी स्वयं की आलोचना की जाती है अथवा स्वयं को किसी बात के लिए बाध्य किए जाने को नापसंद किया जाता है या किसी प्रकार का यौन भय हो तो वह माइग्रेन के रूप में शरीर में परिलक्षित होता है | पीड़ा से मुक्ति हेतु स्वयं को प्यार एवं स्वीकार करने के साथ-साथ नवीन विचार प्रक्रिया अपनाये -" मुझे जिन चीजों की आवश्यकता है मैं वह आसानी से प्राप्त कर लेता/ लेती हूं | "
14 पीठ संबंधी समस्याएं- पीठ की समस्याओं का संबंध स्वयं को बेसहारा समझने से है | जब व्यक्ति के द्वारा यह माना जाता है कि उसे किसी से भी (पति-पत्नी, प्रेमी ,मित्र ,बॉस से) भावनात्मक सहयोग नहीं मिलता है ,कोई भी उसे नहीं समझता है तो पीठ के ऊपरी हिस्से में दर्द या समस्या उत्पन्न होती है | जब व्यक्ति में किसी भी प्रकार का अपराध बोध होता है तो उसकी पीठ के मध्य भाग में दिक्कतें आती है | पैसे का अभाव या पैसे के प्रति अत्यधिक चिंता पीठ के निचले हिस्से को प्रभावित करती है | विचार प्रक्रिया में यथोचित परिवर्तन कर समस्या से मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं |
15 दुर्घटनाएं - दुर्घटनाओं को हमारे स्वयं के द्वारा मानसिक विचारों के माध्यम से आमंत्रित किया जाता है | दुर्घटनाएं सामान्यता अपने आप एवं दूसरों पर क्रोध एवं अपराध बोध की अभिव्यक्ति है ,कुंठाओ का प्रकटीकरण है | व्यक्ति का दूसरों को चोट पहुंचाने का आशय होता है लेकिन स्वयं चोटिल हो जाता है | दुर्घटनाओं से बचने के लिए अपने आप को स्वीकार या आत्मानुमोदन जरूरी है |
इसी प्रकार फेफङों में समस्याओ का मतलब है कि हम जीवन को अपनाने से डरते है या हम महसूस करते है कि हमें पूर्ण रूप से जीवन जीने का कोई अधिकार नहीं है | नवीन मानसिक विचार - "मुझमे जीवन को पूर्णता से ग्रहण करने की क्षमता है ,मैं जीवन को प्रेम से एवं पूर्णता से जीता हूँ | " पुरुषों में प्रोस्टेट संबंधित समस्याएं आत्मसम्मान की कमी एवं यह मानने से होती है की आयु के अधिक होने के साथ उसके पुरूषत्व में कमी आ रही है | अर्थराइटिस या गठिया बीमारी परफेक्टनिज्म पर ज्यादा आग्रह किए जाने से आती है | फोड़े- फुंसियां, खरोच, जख्म ,सूजन इत्यादि शरीर में क्रोध की अभिव्यक्ति है |
दोस्तों ,उपरोक्त शारीरिक बीमारियों के विश्लेषण करने से एक चीज जो नजर आती है वह यह है कि सभी बीमारियों के पीछे दो मुख्य मानसिक कारण होते है वह है प्रथम भय एवं दूसरा क्रोध क्रोध- नाराजगी,ईर्ष्या, आलोचना,कुंठा एवं कड़वाहट के रूप में प्रकट होता है जबकि भय -किसी प्रकार के तनाव ,चिंता ,बैचेनी ,असुरक्षा ,संदेह ,अविश्वाश एवं अयोग्य महसूस करना होता है | यदि हमें स्थाई रूप से स्वस्थ होना है तो उपचार के रूप में दवाइयों के साथ साथ हमें क्रोध एवंं भय के स्थान पर प्रेम एवं विश्वास को अपनाना होगा | इसके लिए अपनी व दूसरों की आलोचना छोड़ दें, आप जैसे हैं उसी रूप में स्वीकार करें, अपने आप की प्रशंसा करें ,प्यार दे व प्यार प्राप्त करें |
जब भी समय मिले दर्पण के सामने खड़े होकर बोले -" मैं स्वयं से प्यार करता हूं और स्वयं को जैसा हूँ वैसे ही स्वीकार करता हूं | मेरे चारों तरफ प्यार, प्रशंसा एवं सम्मान बिखरा हुआ है और मैं प्यार, प्रशंसा एवं सम्मान पाने एवं देने के योग्य हूं | मेरे जीवन में सब कुछ अच्छा है | " प्रारम्भ में शब्दों पर विश्वास करना कठिन होगा लेकिन धीरे-धीरे अभ्यास करते रहने पर शब्द महसूस होने लगेंगे और जैसे-जैसे महसूस करोगे आपको पूर्ण एवं स्थायी स्वास्थ्य लाभ मिलना शुरू हो जाएगा | withrbansal
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