क्या कहते हैं महर्षि रमण के बारे में पश्चिम विद्वान

महर्षि रमण एवं पश्चिमी विद्वान-



 दोस्तों,अरुणाचल के महर्षि रमण एक विश्व गुरु के रूप में भारत के महान आध्यात्मिक संतो में से माने जाते हैं | वर्ष 1930-1940 के मध्य भगवान श्री महर्षि रमण की "अरुणाचल के महान योगी" के रूप में ख्याति इतनी फैल गई थी कि उनसे मिलने एवं आध्यात्मिक ज्ञान चर्चा हेतु देश-विदेश के अनेकों विद्वान तमिलनाडु के तिरुवन्नामलाई स्थित उनके आश्रम में नियमित रूप से आने लगे | खासकर अमेरिका एवं यूरोप से आए हुए भक्तों से तो उनका आश्रम हमेशा भरा हुआ ही रहता था |
                                                                              
                                                                                                                    
महर्षि रमण से आध्यात्मिक ज्ञान चर्चा कर लाभ लेने वाले प्रमुख पश्चिमी विद्वानों में कुछ निम्नानुसार हैं-

महर्षि रमण अरुणाचल के योगी

💔 महर्षि रमण एवं पॉल ब्रन्टन -

 ब्रिटिश दार्शनिक,विद्वान,लेखक एवं पत्रकार श्री पॉल ब्रंटन जो कि बीसवीं शताब्दी के प्रसिद्ध आध्यात्मिक जिज्ञासु के रूप में जाने जाते हैं,का भगवान श्री महर्षि रमण से विशेष जुड़ाव रहा है
                                                                                             पॉल ब्रंटन पूर्वी जगत की आध्यात्मिक परंपराओं एवं सच्चे योगी की खोज में 1930 के दशक में भारत यात्रा पर आए | इस खोज यात्रा में भारत में ब्रंटन द्वारा कई भारतीय संतो,ऋषियों,तपस्वियों एवं योगियों से मुलाकात की गई |                                                                                                                                                                      मेहर बाबा,अड्यार नदी का सन्यासी उर्फ़ ब्रह्मा,मोनी बाबा,दक्षिण भारत में कुंभकोणम के शंकराचार्य सहित अनेकों छोटे-बड़े संतों एवं योगियों से ज्ञान चर्चा की गई लेकिन इनमें कोई भी उनकी आध्यात्मिक जिज्ञासाओं की क्षुधापूर्ति नहीं कर सका | 
                                 अंत में उनकी यह जीवंत खोज भगवान श्री रमण महर्षि तक पहुंचकर ही समाप्त हो पाती है | 

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भारत यात्रा के दौरान जब पॉल ब्रंटन पूरी तरह से निराश हो गए तो कुंभकोणम के शंकराचार्य द्वारा उन्हें महर्षि से मिलने की सलाह दी गई | पॉल ब्रंटन पहली बार मन में कई प्रश्न,शंकाये एवं संदेह लेकर अरुणाचल स्थित महर्षि आश्रम पहुंचे |
                                                                                                                                          
 महर्षि से उस प्रथम मुलाकात का वर्णन करते हुए पॉल ब्रण्टन लिखते है -
 
"मेरा ध्यान महर्षि द्वारा इस प्रकार आकृष्ट कर लिया गया है जैसे कि लोहे के कणों को एक चुंबक कर लेता है |  मैं उन पर से अपनी दृष्टि नहीं हटा पा रहा हूं , धीरे धीरे मेरे भीतर की आरंभिक दुविधा एवं आश्चर्य पूरी तरह लुप्त हो जाते हैं, जब इसी तरह मौन बैठे-बैठे दूसरा घंटा पूरा होने लगता है तो मुझे अपने भीतर परिवर्तन महसूस होता है, मेरे सारे प्रश्न,शंकाये एवं संदेह एक-एक करके छूटने लगते हैं ,मुझे महसूस हो रहा है कि इन्हें पूछना या न पूछना निरर्थक है , मेरे भीतर असीम शांति प्रवेश कर रही है ,मेरे परेशान मस्तिष्क को आराम मिल रहा है |"

 

महर्षि रमण एवं पॉल ब्रन्टन


पॉल ब्रंटन ने अपने आध्यात्मिकता की खोज संबंधी भारत के इस अभियान का विस्तृत वर्णन अपनी 1931 में प्रकाशित पुस्तक "ए सर्च इन सीक्रेट इंडिया " एवं "द सीक्रेट पाथ"  में किया है |

 इन पुस्तकों के प्रकाशित होते ही पश्चिम में तहलका मच गया | महर्षि रमण की प्रसिद्धि रातों-रात इतनी बढ़ गई कि संपूर्ण यूरोप और अमेरिका के  आध्यात्मिक जगत में महर्षि की चर्चाएं होने लगी 

                                                    महर्षि की टेलीपैथिक उपचार पद्धति के द्वारा आत्मज्ञान प्राप्त करने के अपने अनुभव का वर्णन करते हुए पॉल  ब्रंटन लिखते हैं-
 
" मैं स्पष्ट महसूस कर सकता हूं कि वह अपने मस्तिष्क द्वारा मेरे मस्तिक से संपर्क स्थापित कर रहे हैं, वह मेरे हृदय को शांत अवस्था में ले जा रहे हैं ,इस असाधारण शांति के दौरान मुझे बहुत आनंद एवं हल्कापन महसूस होता है ,समय मानों ठहर गया है ,मेरे हृदय का दुख दूर हो चुका है | अतीत के सब दुख एवं गलतियां मुझसे बहुत दूर हो गए हैं |

 

मेरा मन महर्षि में पूरी तरह डूब चुका है, मेरे भीतर आत्मबोध एवं ज्ञान का उदय हो रहा है | अब मुझे समझ आया कि महर्षि के इतने सारे शिष्य इतने अभावों में इतने वर्षों से महर्षि के साथ कैसे रह रहे हैं क्योंकि उन्हें महर्षि के साथ रहने से गहरा और मौन पुरस्कार मिलता रहता है |"

महर्षि रमण अरुणाचल के योगी (2)

                                               रमण आश्रम द्वारा भी महर्षि रमण एवं पॉल ब्रण्टन के मध्य हुए संवादों को संकलित कर "conscious immortality "  नामक पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया गया है |                                                            

यह भी पढ़े -अकेलेपन के क्या है आध्यात्मिक रहस्य 

 💔श्री महर्षि रमण एवं कार्ल गुस्ताव जुंग -

 कार्ल गुस्ताव जुंग प्रसिद्ध स्विस मनोवैज्ञानिक, प्रभावशाली विचारक एवं विश्लेषणात्मक मनोविज्ञान के संस्थापकों में से एक है | जब उन्होंने पहली बार पॉल ब्रंटन की पुस्तक "ए सर्च इन सीक्रेट इंडिया " को पढ़ा तो यह महर्षि से इतना अधिक प्रभावित हुए कि उन्होंने उसी समय महर्षि के दर्शन का मानस बना लिया |                                                                                                                              संयोगवश 1938 में जब ब्रिटिश सरकार ने उन्हें भारत आने का निमंत्रण दिया तो उन्होंने मौके को तुरंत लपक लिया | हालांकि उनके मन में भी ब्रण्टन की तरह प्रारंभिक शंका थी कि क्या महर्षि उनके वैज्ञानिक एवं तार्किक मन की जिज्ञासाओं को शांत कर पाएंगे ? महर्षि ने मुलाकात में इनके मस्तिष्क को पढ़ लिया |

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 महर्षि द्वारा भारतीय अध्यात्म विद्या को पूर्णतया वैज्ञानिक बताते हुए कहा गया कि इसमें भी विज्ञान के सभी चरणों यथा- शोध समस्या,अनुसंधान एवं प्रयोग, सर्वेक्षण,परीक्षण एवं आकलन के द्वारा निष्कर्ष प्राप्त किए जाते हैं |                                                                                                                      महर्षि द्वारा स्वयं के आध्यात्मिक प्रयोगों के बारे में बताया गया कि उनकी शोध समस्या या आध्यात्मिक जिज्ञासा थी कि "मैं कौन हूं ?" 
                                                                 इसके लिए मनन एवं ध्यान की अनुसंधान विधि द्वारा विरुपाक्षी गुफा (अरुणाचल पर्वत स्थित ) में शरीर एवं मन की प्रयोगशाला में लगातार प्रयोग चलते रहे जिससे अचेतन परिष्कृत होता रहा एवं चेतना विस्तारित | फलतः अहम, आत्मा में एवं आत्मा,परमात्मा में विलीन हो गई |                                                                                                                 



 
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 महर्षि से मुलाकात में कार्ल गुस्ताव जुंग न केवल पूर्णतया संतुष्ट हुए अपितु अध्यात्म के प्रति उनका दृष्टिकोण पूरी तरह बदल गया | 
                          आर्थर ओस्बोर्न की पुस्तक "मैसेजेस ऑफ रमण महर्षि "
की प्रस्तावना में जुंग लिखते हैं- "श्री रमण सही मायनों में भारत भूमि के सच्चे सुपुत्र एवं भारतीय वैज्ञानिक अध्यात्म के वास्तविक दूत है | "
वास्तविकता तो यह है कि तपस्वी महर्षि रमण ने ही उनकी प्रतिभा एवं जीवन को संपूर्णता प्रदान की थी | 

 💔श्री रमण महर्षि एवं डब्ल्यू समरसेट मॉम-


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विख्यात ब्रिटिश उपन्यासकार डब्ल्यू समरसेट मॉम ,पॉल ब्रंटन के मित्र थे | ये भी महर्षि रमण की प्रशंशा सुनकर आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने हेतु भारत पधारे | समरसेट मॉम द्वारा महर्षि रमण से महान भारतीय दार्शनिक एवं संत आदि शंकराचार्य की परंपरा रहे "अद्वैत वेदांत दर्शन" की शिक्षा प्राप्त की गई |                                                                                                                                                         
 महर्षि रमण से इसी  मुलाकात पर आधारित उनकी प्रसिद्ध रचना "द रेजर्स एज (the razor's edge)" सामने आयी |  जिस पर बाद में एक सफल फिल्म का भी निर्माण किया गया | 
                                                     श्री रमण महर्षि को समर्पित यह पुस्तक एक ऐसे नवयुवक की आध्यात्मिक यात्रा के बारे में है जो अंत में एक महान गुरु से मिलता है | 
                                                                                                                              
 

 💔श्री महर्षि रमण एवं आर्थर ओस्बोर्न -

महर्षि रमण एवं आर्थर ओस्बोर्न

 
ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के विद्वान एवं प्रसिद्ध ब्रिटिश आध्यात्मिक लेखक "आर्थर ओस्बोर्न " भी श्री रमण महर्षि के परम शिष्यो में से है | इनके द्वारा महर्षि श्री रमण की बायोग्राफी एवं उनकी संपूर्ण शिक्षाओं का परिचय सरल एवं आसान भाषा शैली में "द टीचिंग्स ऑफ़ रमण महर्षि इन हिज ओन वर्ड्स "में दिया गया है जो कि आध्यात्मिक साहित्य की महान पुस्तकों में एक मानी जाती है | इसकी प्रस्तावना "कार्ल जुंग" द्वारा लिखी गई है | 
                                                                                                                 सच में यूरोपियन विद्वानों की नजर में महर्षि की एक साधारण मानव से एक असाधारण आध्यात्मिक व्यक्तित्व में रूपांतरण की यात्रा अद्वितीय है |                                                       
जैसा कि पॉल ब्रंटन स्वीकार करते है -
" कई बार जब मैं उनके आमने सामने बैठता हूं तो ऐसा लगता है मानो किसी दूसरे ग्रह से आये प्राणी के साथ हूँ या किसी दूसरी प्रजाति के जीव के साथ हूं | 

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