आपको खुद पर भरोसा क्यूँ नहीं करना चाहिए
आपको खुद पर विश्वास क्यों नहीं करना चाहिए-
withrbansal आपको खुद पर भरोसा नहीं करना चाहिए | यह पढ़ते ही अजीब सा लगता है क्योंकि बचपन से ही हम इसके विपरीत सुनते आए है लेकिन वास्तविकता यही है,वर्तमान अध्ययनों में भी यह साबित हो गया है कि हमें खुद पर विश्वाश नहीं करना चाहिए | दोस्तों, विगत कुछ सदियाँ,"उदारवादी दर्शन" से प्रभावित रही है जिसमें मनुष्य को एक विवेकशील एवं तार्किक प्राणी मानते हुए "व्यैक्तिक सर्वोच्चता" को स्थापित करने पर बल दिया गया है | माननीय स्वतंत्रता,उसकी अनुभूतियों,आकांक्षाओं एवं उसके स्वतंन्त्र चयनों को प्रभुसत्ता का स्रोत माना गया है | इसी उदारवादी दर्शन से प्रेरित हो राजनीतिक क्षेत्र में "मतदाता बेहतर समझता है " की मान्यता ने लोकतंत्र एवं स्वतंत्र मताधिकार को जन्म दिया | आर्थिक क्षेत्र में "ग्राहक हमेशा सही होता है" ने पूंजीवाद की आधारशिला रखी |
इसी प्रकार निजी मामलों में उदारवाद खुद की आवाज को सुनने,खुद पर भरोसा करने,खुद के प्रति सच्चा होने और अपने ह्रदय का अनुसरण करने को प्रोत्साहित करता है | बीसवीं शताब्दी का तो संपूर्ण अभिप्रेरणात्मक साहित्य इस बात से भरा हुआ पड़ा है कि "अपने मन की सुनो" "खुद पर भरोसा रखो" क्योंकि आप ही अपने जीवन के सर्वोत्तम निर्णायक हैं |
जबकि सच तो यह है कि मनुष्य को खुद पर आंख बंद कर भरोसा नहीं करना चाहिए क्योंकि मनुष्य न तो तार्किक है और न हीं विवेकशील | हमारे अधिकांश निर्णय तार्किक विश्लेषणो के बजाय भावनात्मक प्रतिक्रियाओं और अनुमानात्मक शॉर्टकट पर आधारित होते हैं जो कि वर्तमान सिलिकॉन युग में पूर्णतया अनुपयुक्त हो गए है |
विश्व प्रसिद्ध लेखक एवं ब्लॉगर "मार्क मेंशन" ने ऐसे 8 कारण बताएं जिन वजहों से आपको खुद पर भरोसा नहीं करना चाहिए-
1 क्योंकि आप बिना एहसास किये पूर्वाग्रही एवं स्वार्थी है |
सामाजिक मनोविज्ञान में इसे "एक्टर-ऑब्जर्वर वायस " कहा जाता है जिसका मूल भाव यह है कि हम सभी एक अर्थ में गधे हैं | यदि हमारे साथ कुछ गलत होता है या हम कुछ गलत करते हैं तो हमारा ध्यान परिस्थितियों के दोषों पर जाता है और यदि वही दूसरा करता है तो हम उसके कार्य,निर्णय एवं व्यव्हार को दोषी ठहराते हैं | हमारी प्रतिक्रिया इस बात पर निर्भर करती है कि हम उसमें "एक्टर" भूमिका में है या "ऑब्जर्वर" | उदाहरण के लिए जब परीक्षा में हमारा स्कोर कम रहता है तो तुरंत हमारा ध्यान वातावरण पर जाता है जैसे की- परीक्षा हॉल बहुत गर्म एवं उमस युक्त था,शोर भी बहुत था ,जिससे बार-बार ध्यान भंग हो रहा था इत्यादि | लेकिन जैसे ही हम ऑब्जर्वर की भूमिका में आते हैं तो हमारा ध्यान का केंद्र बदल जाता है,हम सामने वाले में असफलता के कारण ढूंढते है कि- वह क्लास में नियमित नहीं रहता है ,कोर्स की पुस्तकें नहीं पढता है ,क्लास में नोटस नहीं लेता है आदि |
2 आपको इस बात का कोई अनुमान नहीं है कि आपको क्या चीज खुश करती है और क्या दुखी |
सामान्यतया हम कोई कार्य या चीज यह अनुमान लगाकर करते हैं या नहीं करते हैं कि वह हमें खुश करेगी या दुखी करेगी | जबकि एक्जेक्टली हमें यह पता नहीं होता है कि वास्तव में ऐसा होगा ही | हावर्ड मनोवैज्ञानिक "डेनियल गिल्बर्ट" अपनी पुस्तक "stumbling on happiness " में कहते हैं - हम अतीत की बुरी एवं अच्छी चीजों को बढ़ा चढ़ाकर महसूस करते हैं ,साथ ही हम भविष्य के लिए भी भरोसा करते हैं कि अच्छी चीजें हमें कैसे खुश करेगी और बुरी चीजें किस तरह से बुरा महसूस कराएगी | जबकि वास्तव में तो हम यह भी नहीं जानते हैं कि वर्तमान समय में हम कैसा महसूस कर रहे हैं |
यह भी पढ़े- जीवन से खुशियाँ नहीं, समस्याएँ माँगो
3 आप आसानी से चालाकियों में फँस कर गलत निर्णय लेते हैं |
आप आसानी से बाजार की चालाकी युक्त योजनाओं यथा- फ्री गिफ्ट,सेल,एक के साथ एक मुफ्त,निवेश की पोंची स्कीमों आदि में उलझ कर बेवकूफ बन जाते है | अर्थात आपको जीवन के हर क्षेत्र में बेहद सूक्ष्म एवं चालाकी पूर्ण तरीकों से गलत निर्णय लेने हेतु आसानी से उत्प्रेरित किया जा सकता है |
4 आप यह नहीं जानते हैं कि आप क्या जानते हैं और क्या नहीं जानते हैं |
व्यक्तिगत रूप में इंसान दुनिया के बारे में बहुत कम जानता है | जैसे-जैसे इतिहास का विकास हुआ है हमारा ज्ञान कम होता गया है | हम समझते हैं कि हम आज ज्यादा जानते हैं जबकि वास्तविकता यह है कि हम व्यक्तियों के रूप में आज पाषाण कालीन भोजनखोजी मानव की तुलना में बहुत कम जानते हैं | "स्टीवेन स्लोमान एवं फिलिप फ़र्नबाख" ने अपने एक अध्ययन में लोगों से पूछा कि वह "जिप " के बारे में क्या जानते हैं ,क्योंकि वह रोज जिप का प्रयोग करते हैं तो उसके बारे में सब कुछ जानने का दावा किया गया ,लेकिन जब उनसे जिप की कार्यप्रणाली के बारे में बताने को कहा गया तो कोई भी जवाब नहीं दे सका | इनके द्वारा इसे "ज्ञान का भ्रम" कहा गया | अर्थात बावजूद इसके कि हम व्यक्तिगत तौर पर बहुत कम जानते हैं तब भी हम सोचते हैं कि हम बहुत कुछ जानते हैं क्योंकि हम दूसरे लोगों के दिमाग में भरे ज्ञान को कुछ इस तरह से मानते हैं जैसे वह हमारा अपना ज्ञान हो | "ज्ञान" एवं "ज्ञान को जानने की भावना " दो अलग-अलग चीजें है | "ज्ञान" के बिना "ज्ञान को जानने की भावना" हो सकती है और "ज्ञान की भावना" के बिना "ज्ञान" हो सकता है |
5 भावनाएं,आपकी धारणाओं को उससे कहीं ज्यादा बदलती है जितना कि आप सोचते हैं |
हमारे अधिकांश निर्णय तार्किक न होकर भावनाओं पर आधारित होते हैं | एक व्यक्ति द्वारा सिर्फ इस कारण से अपनी अच्छी खासी नौकरी से इस्तीफा दे दिया गया कि कार्यस्थल पर साथियों ने उसके दादाजी द्वारा गिफ्ट किये गए प्रिय जूतों का मजाक उड़ाया था | अक्सर बहुत पुरानी भावनाएं भी हमारे वर्तमान निर्णयों के ऊपर प्रभाव डालती है | जबकि भावनाएँ स्वयं जैव-रासायनिक प्रक्रियाओं से जन्म लेती है, जिन पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं होता है | किसी को क्षणिक खुश करने हेतु लिए जाने वाले ऐसे निर्णय जिनसे आपका जीवन गंभीर रूप से प्रभावित होता हो, किसी भी दृष्टि से तार्किक नहीं कहे जा सकते |
6 आपकी याददाश्त भरोसे लायक नहीं है |
मेमोरी,मस्तिष्क की एक प्रमुख बौद्धिक क्षमता है | सीखना,धारण करना,पुनः स्मरण एवं पहचान आदि इसके प्रमुख अंग है | मेमोरी,हमें अतीत के ज्ञान एवं अनुभव के आधार पर हमारे व्यवहार को निर्देशित करती है | मेमोरी का एक और महत्वपूर्ण एवं जटिल कार्य है उसके बारे में शायद ही हम कभी सोचते हैं,मनुष्य के रूप में हमें जटिल सामाजिक स्थितियों को नेविगेट करने के लिए एक पहचान की आवश्यकता होती है कि हम कौन हैं, हमारी मेमोरी हमें अतीत की कहानी देकर हमारी पहचान बनाने में मदद करती है | "युवाल नोआ हरारी" कहते है - "गफलत यह है कि हम अपने इन्हीं विचारों,भावनाओं एवं आकांक्षाओं जैसे जैव-रासायनिक स्पंदनो को ही अपना "स्व (self )" मान बैठते हैं जबकि यह सब काल्पनिक किस्से हैं,जिसको हमारी दिमागी प्रक्रियाये निरंतर गढ़ती रहती है ,नया रूप देती रहती है ,नए सिरे से लिखती रहती है | यह उसी तरह से होता है जिस तरह से सरकारें, झंडों,प्रतीकों एवं परेडों के माध्यम से राष्ट्रीय मिथक गढ़ती है |"
प्रसिद्ध मेमोरी विशेषज्ञ "एलिजाबेथ लोफ्ट्स" पहली ऐसी महिला हैं जिन्होंने यह बताया कि अतीत की घटनाओं के संबंध में हमारी याददाश्त अक्सर आसानी से अतीत के ही किसी अन्य अनुभव या किसी नई सूचना से संशोधित हो जाती है | उनके द्वारा ही सर्वप्रथम यह एहसास कराया गया कि कोर्ट रूम में प्रत्यक्षदर्शी गवाही हमेशा प्रमाणिक साक्ष्य नहीं हो सकते हैं |
7 आप वह नहीं है,जो कि आप सोचते हैं |
आप,अपने आपको फेसबुक या इन जैसे अन्य सोशल मीडिया पर ऑनलाइन जिस प्रकार से अभिव्यक्त करते हैं यह शायद अक्सर उस तरह से नहीं होता है जैसा कि आप ऑफलाइन होते हो | इसी प्रकार आप अपने घर पर अपने ग्रांड पेरेंट्स के आसपास जिस तरह से होते हो,वह आपके दोस्तों के साथ काम करने के तरीकों से बिल्कुल अलग होता है | अर्थात आप अपने घर पर कुछ होते हैं तो ऑफिस में कुछ और,अकेले में आप और ही कुछ होते हो | इसी प्रकार के आपके अन्य कई सेल्फ (चेहरे ) होते हैं जिनका उपयोग आप एक जटिल सामाजिक दुनिया को नेविगेट करने के लिए करते हैं,लेकिन इनमें से कौन सा सही है ?
पिछले कुछ दशकों में तो सामाजिक मनोवैज्ञानिको ने इस कोर सेल्फ या स्थाई-स्व ( मूल आत्म ) संबंधी विचारों की भी धज्जियां उड़ाना शुरू कर दिया है | नए शोध इस बात को उजागर करने में लगे हैं कि हमारा स्व (self ) एक मिथक है जिसे हमारी दिमागी प्रक्रिया निरंतर गढ़ती रहती है | इस धरती पर कुछ भी शाश्वत सत्य नहीं है,उसी प्रकार हमारी पहचान भी क्षणिक एवं भ्रामक है |
8 यहां तक कि आपका इस दुनिया का भौतिक अनुभव भी वास्तविक नहीं है |
आपके पास एक अविश्वसनीय रूप से जटिल तंत्रिका तंत्र है जो लगातार आपके मस्तिष्क को जानकारी भेजता रहता है | एक अनुमान के अनुसार आपकी संवेदी प्रणालियां-दृष्टि,स्पर्श,गंध,श्रवण,स्वाद एवं संतुलन आदि आपके मस्तिष्क में प्रति सेकंड लगभग 11 मिलियन बिट्स की जानकारी भेजती है,जबकि यह इस असीम भौतिक क्षेत्र का मात्र एक छोटा सा टुकड़ा है | इसी प्रकार जो प्रकाश हम देख पाते हैं,वह विद्युत-चुंबकीय स्पेक्ट्रम का एक छोटा सा बैंड है | हमसे ज्यादा तो कुत्ते उन चीजों को सुन या सूंघ सकते हैं जिन्हें हम जानते भी नहीं है, इस पर हमारा दावा यह कि हम दुनियाँ को जानते है |
तो दोस्तों,आपको आँखे बंद कर स्वयं की धारणाओं,अनुभूतियों एवं आंकांक्षाओ पर विश्वास न कर,इस बात को समझना चाहिए कि आप की आकांक्षाएं,आपकी स्वतंत्र इच्छाशक्ति की अभिव्यक्ति नहीं है बल्कि जैव-रासायनिक प्रक्रियाओं की उपज है और यह जैव-रासायनिक प्रक्रियाएं "सांस्कृतिक कारकों" से प्रभावित होती है जिन पर आपका कोई नियंत्रण नहीं है | यहां तक कि आपका,आपके शरीर,आपके ब्लड प्रेशर,आपके मस्तिष्क,आपके स्नायुओं पर ही कोई नियंत्रण नहीं है | इसलिए बजाए आप अपने दिमाग में पैदा होने वाले सारे दिवा-स्वप्नों को साकार करने का प्रयास करें बेहतर है कि आप खुद को,अपने दिमाग को,अपनी आकांक्षाओं को समझें | इन्हें समझने में "ध्यान ( meditation ) " एक मददगार टूल हो सकता है |
withrbansal
@@@@@
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
आपको मेरी यह पोस्ट कैसी लगी ,कृपया सुझाव, शिकायत टिप्पणी बॉक्स में लिखकर बताये