दुःखो से मुक्ति कैसे प्राप्त करें |

मनुष्य के दुःखों का मूल कारण क्या है -

 दोस्तों, दुःख क्या है ? दुःख का अर्थ क्या है ? मनुष्य के दुखों का कारण क्या है ? दुःखो से मुक्ति के उपाय या दुखों से मुक्ति कैसे प्राप्त करें ? यह कुछ ऐसे शाश्वत प्रश्न है जिन पर सदियों से मनीषियों के द्वारा चिंतन किया जाता रहा है | आखिर यह दुःख है क्या ? सामान्यतया दुःख का अर्थ ऐसी अवस्था से है जब हम शारीरिक या मानसिक कष्ट या पीड़ा को महसूस करते हैं |                                                                                                                                                                              दुःख सामान्यता तीन प्रकार के माने गए हैं-आध्यात्मिक,आधिभौतिक एवं आधिदैविक | आध्यात्मिक दुःख  को "दैहिक दुःख" भी कहा जाता है | यह वह दुःख है जो हमें शारीरिक एवं मानसिक पीड़ा देता है | "आधिभौतिक दुख"सांसारिक वस्तुओं से प्राप्त होते हैं जैसे गाड़ी का एक्सीडेंट हो जाना | "आधिदैविक दुख" प्रकृति द्वारा दिए जाते हैं ,जैसे अकाल,भूकंप,बाढ़ इत्यादि |

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 दोस्तों,सुख एवं दुःख ,घनिष्ठता से जुड़े हुए हैं | "द प्रोफेट" में "खलील जिब्रान" द्वारा कहा गया है कि-" सुख एवं दुःख  दोनों में ही कोई भी श्रेष्ठ नहीं है, इन्हें एक दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता है, यह साथ-साथ आते हैं और जब उनमें से एक भोजन के समय तुम्हारे साथ बैठा है तो याद रखो कि दूसरा तुम्हारे बिस्तर पर सो रहा है | "                                                                                                                                                              यह दोनों ही प्राकृतिक नहीं है, यह हमारे अपने बनाए हुए हैं | सुख एवं दुःख,दोनों हमारे मस्तिष्क की जैव-रासायनिक प्रक्रियाओं द्वारा एक साथ ही उत्पन्न किए जाते हैं |                                                                   यह भी पढ़े -क्या रासायनिक द्रव्यों के द्वारा चेतना का विस्तार किया जा सकता है ?

दुःखों से मुक्ति कैसे प्राप्त करें (

 दुःख के संबंध में आज से लगभग 2500 वर्ष पूर्व भगवान बुद्ध द्वारा कहे गए वाक्य आज भी सत्य है और जब तक मनुष्य है तब तक रहेंगे | उन्होनें तो जीवन को ही दुःखमय कहा है | लेकिन कहा है -दुःख के कारण भी है और इन कारणों को दूर कर दुखों से मुक्त हुआ जा सकता है |                                                                                                                                                दुःख कई प्रकार से मानव को पीड़ा पहुंचाते हैं-शारीरिक बीमारी,आर्थिक अभावों का दुख,संबंधों में तकरार का दुख,अकेलापन,प्रियजन को खो देने का दुःख,इच्छापूर्ति न होना,उपलब्धि प्राप्त न होना,असफलता,सामाजिक तिरस्कार व अपमान जैसे अनेकों प्रकार के दुखों का अस्तित्व है | चाहे हम इन दुखों से गुजरे हो या नहीं फिर भी अधिकतर लोग इन दुखों से पलायन करना चाहते हैं |

दुःख का अर्थ क्या है

प्रसिद्ध आध्यात्मिक चिंतक जे0कृष्णमूर्ति कहते हैं कि- " हम दुःख को समझना नहीं चाहते , हम तो उसे देखना तक भी नहीं चाहते , हम तो कभी यह पूछते ही नहीं है कि यह दुख होता क्या है,हम तो बस किसी तरह से इससे दूर रहने की जुगाड़ में लगे रहते हैं | "                                                                                                                                              दुःखो से बचने या पलायन करने के तरीके भी हमने ढूंढ लिए हैं | किसी ने संगठित धर्म,संप्रदाय या विश्वासों का सहारा लिया है,तो कोई किसी प्रतीक,किसी छवि या प्रतिमा का दामन थाम लेता है, कोई पुनर्जन्म की अवधारणा को पकड़ लेता है,तो कोई मनोरंजन या ग्रंथों में डूब जाता है |                                                                                 पलायन करने के लिए हम पार्टिया करने का, लड़ने झगड़ने का, अवसाद ग्रस्त हो जाने का रास्ता भी अपनाते हैं | फलस्वरुप हम कभी यह जानने तक का भी प्रयास नहीं करते कि दुःख का क्या कोई अंत भी है |                                                                                                                             यह भी पढ़े -अनिद्रा(INSOMNIA) कोई रोग नहीं है-      

दुःख का अर्थ क्या है

 क्या दुख जरूरी है-

 दुखों का होना आवश्यक भी है और नहीं भी | यदि आप कोई दुख नहीं झेलते हैं तो आप सुख का अहसास भी नहीं कर पाते हैं,आपका  व्यक्तित्व उथला ही रहता है,आप में गहराई,विनम्रता एवं करुणता भी नहीं होगी | दुःख आपके अहम् के आवरण को तोड़ देता है | इसलिए दुःख आवश्यक है,और तब तक आवश्यक है जब तक कि आपको यह ज्ञान ना हो जाए कि यह अनावश्यक है | 

 दुख कैसे उत्पन्न होते हैं एवं दुःखों से कैसे मुक्त हो सकते है -

दुखों को उत्पन्न होने हेतु एक मन रचित " मैं "(अहम् ) की आवश्यकता होती है | हमारा यह अहम् निरंतर कोई कहानी गढ़ता रहता है और अपनी धारणा वाली कोई भ्रामक पहचान को बनाए रखता है | दुःख के लिए आवश्यकता होती है समय की , अर्थात अतीत या भविष्य की | क्योंकि दुःख हमेशा अतीत या भविष्य में ही रहता है | "वर्तमान" (now ) में दुख टिक नहीं सकता है |                                                                                                                                       यह भी पढ़े - मन से आजादी कैसे प्राप्त करें

मनुष्य के दुःखो का कारण क्या है
 
 वर्तमान पलों में आप में कभी तनाव,उत्तेजना,क्रोध या अरूचि हो सकती है लेकिन यह दुख नहीं है | यह तो एक ऐसी प्रबल ऊर्जा है जिसे हम शरीर में महसूस करते हैं, यदि हम अपने अवधान को इस पर लगा देते हैं तो यह "विचार" में परिवर्तित नहीं होगा, फलस्वरूप दुख भी उत्पन्न नहीं होगा | 
                                                                                     प्रसिद्ध आध्यात्मिक लेखक " एकहार्ट टॉल " कहते हैं- "स्थितियां-परिस्थितियां आपको दुःख नहीं देती है,वे आपको शारीरिक कष्ट दे सकती है ,लेकिन आपको दुख नहीं देती है | बल्कि आपके विचार ही हैं जो आपको दुख देते हैं | स्थितियों- परिस्थितियों के बारे में आप की व्याख्याएँ,आप की कहानियां,आपके विचार जो भी आप रच लिया करते हैं ,वही आपको दुख दिया करते हैं | "
मनुष्य के दुःखो का कारण क्या है
 
मुझे याद है,मेरे कॉलेज समय मेरे एक मित्र जिनकी तत्समय अपने माता-पिता से हल्की अनबन चल रही थी, का अपने छोटे भाई से मामूली झगड़ा हो गया | इस दौरान छोटा भाई अपने बचाव में मेरे मित्र को हल्का सा धक्का देकर घर से भाग गया,जिससे मेरा मित्र जमीन पर गिर गया | मित्र के अहम् ने कहानी बनाई  कि "माता-पिता की शह के कारण छोटा भाई उसे पीट कर चला गया " इस पर उसके अहम् द्वारा इतना दुख एवं पीड़ा उत्पन्न की गई कि उसके द्वारा इतनी छोटी सी बात पर सुसाइड करने का प्रयास किया गया | 
                                                                                इसी प्रकार "उसनें मेरा फोन नहीं उठाया या फोन काट दिया" "उसने मेरी इंसल्ट की " ऐसी न जाने कितनी छोटी-छोटी कहानियां हम अपने बारे में व दूसरों के बारे में गढ़ते एवं सुनाते रहते हैं और दुखी होते रहते है | जैसा कि किसी ने अहम् को कितने सुन्दर शब्दों में परिभाषित किया है .. “बस इतनी सी बात समंदर को खल गई, एक कागज़ की नाव मुझपे कैसे चल गई ”                                                                                                                                                           हम हमारे अहम् को कितना ही तुष्ट करने का प्रयास करें,यह हमेशा खुद के प्रति अपूर्णता एवं अपर्याप्ता का भाव ही पाले रहता है,इसलिए अपने अहम् की संतुष्टि और उसमें वृद्धि करने के लिए हमारे द्वारा ऐसी कहानियां गढ़ ली जाती है जिससे हम खुद को सही एवं दूसरों को गलत साबित कर सके | खुद को सही साबित कर हम स्वयं को एक काल्पनिक श्रेष्ठता के सिंहासन पर बैठाने का प्रयास करते हैं | 

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                                                               मानसिक रूप से निर्णय,निष्कर्ष निकालने एवं भावनात्मक रूप से स्वयं में सिमटे रहने की आदत के कारण ही अक्सर हमारे लोगों एवं घटनाओं के साथ संबंध व्यैक्तिक,प्रतिक्रियात्मक एवं द्वंदात्मक होते हैं | प्रतिक्रिया एवं द्वन्द हमारे अहम् को संतुष्ट करते हैं,और हमें दुखी करते हैं | 
                                                       जे0 कृष्णमूर्ति कहते हैं कि- " दुखों का अवसान संभव है,परंतु यह किसी पद्धति या प्रणाली द्वारा नहीं | "जो है " या "जैसी भी स्थिति है " को यदि आप बिना कहानियों को रचे स्वीकार कर ले या उसे स्पष्ट तौर पर देख ले तो,दुखों का अंत हो जाता है | जो भी तथ्य चाहे वह यह तथ्य क्यों ना हो कि आपके किसी परिजन की मृत्यु हो गई है,उसको जब आप ज्यों का त्यों बिना कोई इसका अर्थ निकाले,बिना कोई अवधारणा बनाए,बिना कोई आदर्श, निर्णय,निष्कर्ष को बीच में लाए,देखते हैं तो दुख नहीं रहता है |
दुःखों से मुक्ति कैसे प्राप्त करें
 
दुःख तब भी पैदा होता है जब हम किसी स्थिति-परिस्थिति को बुरा होना मान लेते हैं और उस पर खिन्न हो जाते हैं |  ऐसे में हम उस स्थिति या परिस्थिति से व्यक्तिगत जुड़ जाते हैं तब हमारा अहम जागृत हो जाता है यदि हम उस स्थिति या परिस्थिति को यथावत स्वीकार कर लेते हैं तो दुख से बच जाते हैं | किसी चीज या घटना को बुरा कहना हमारे अंदर नकारात्मकता पैदा करता है, ऐसे में हम उस ऊर्जा से दूर हो जाते हैं जो उसको स्वीकार करने पर उत्पन्न होती है | 
                     इसलिए स्थिति और परिस्थिति, कोई चीज या घटना कैसी भी हो,उस पर अच्छा या बुरा होने का ठप्पा ना लगाएं, बल्कि उसे स्वीकार कर उस अच्छे या बुरे के पार देखना सीखे, तब इस सृष्टि की ऊर्जा का भी आपको साथ मिलेगा | 
                                         हमारे जीवन में दुःख कई सूक्ष्म एवं अति सूक्ष्म रूप में भी रहता है | लेकिन हम  उसे दुख के रूप में जानते तक नहीं है जबकि यह हमारे अहम् की एक बहुत बड़ी खुराक है |

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                                                                                                 चिड़चिड़ापन,अधीरता,क्रोध,आक्रोश,नाराजगी,शिकायत,ईर्ष्या,कमियां निकालना,किसी चीज या व्यक्ति को मुद्दा बनाना आदि ऐसे ही कुछ दुखो के सूक्ष्म रूप है जिनसे न केवल हम अपने लिए लिए दुःख उत्पन्न करते हैं बल्कि दूसरों को भी क्लेश देते हैं | दुःख के इन सूक्ष्म एवं अति सूक्ष्म रूपों को पहचानना सीखे और इनके प्रति सजग और सचेत रहें |                                                                                                                                                                       यह भी पढ़े -क्यूँ मनुष्य इस पृथ्वी पर इतना अकेला महसूस करता है ?,
              हर वह स्थिति-परिस्थिति,व्यक्ति,चीजें,घटना जो हमें खराब या बुरी प्रतीत हो रही है उसके पीछे गहरे में एक छिपी हुई अच्छाई भी रहा करती है लेकिन वह तब प्रकट होती है जब आप उन्हें अपने अंदर से स्वीकार कर लेते हैं | 
सुख एवं दुःख क्या है

 हालाँकि यह सर्वमान्य सच है कि कोई भी व्यक्ति दुख-दर्द या पीड़ा को नहीं झेलना चाहता लेकिन अगर आप दुख-दर्द को होने दे,उसे स्वीकार कर ले तो आप दर्द से दूरी या अलगाव महसूस कर सकते हैं | दुख-दर्द को होने देने से तात्पर्य है-दुख-दर्द को सजगता से, बिना प्रतिरोध के सहन करना | क्योंकि ऐसी स्थिति में अहम् का नाश हो जाता है,अहम में ही तो प्रतिरोध होता है | 
                           दोस्तों,अंत में अपने दुखों से मुक्ति प्राप्त करने हेतु "एक्हार्ट टॉल" का संदेश ध्यान रखे -"अपने दर्द,अपनी पीड़ा,अपने दुःख सब ईश्वर को सुपुर्द कर दो | "
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