कभी-कभी हमें बेहद अकेलापन क्यूँ महसूस होता है |

अकेलेपन के क्या है आध्यात्मिक रहस्य -

withrbansal

 withrbansal,                           दोस्तों,हम सब अपने जीवन में अकेलापन या सूनापन महसूस करते हैं | यह अकेलापन(Loneliness) कभी-कभी तो हमारे दिमाग पर इतना हावी हो जाता है कि हमें हर समय एक खालीपन का एहसास होने लगता है | हमें समझ नहीं आता है कि हमारे साथ यह क्या हो रहा है और घबराकर हम इस अकेलेपन से दूर भागने के जतन करने में लग जाते हैं |                                                                                                                                                 सिनेमा,संगीत ,शराब ,पार्टी ,यात्रा या इन जैसे कोई अन्य उपाय | लेकिन इन सारे उपायो से भी बात नहीं बनती है, यह सब अस्थायी साबित होते हैं, अकेलापन यूं ही बना रहता है | यह समस्या पश्चिम देशों में तो इस हद तक बढ़ गई है कि ब्रिटेन में तो इसके लिए अलग मंत्रालय का गठन किया गया है | 
                                                                      लेकिन दोस्तों,इससे घबराने की आवश्यकता नहीं है | यह सब सामान्य है | बस इस अकेलेपन को समझने की आवश्यकता है, एक बार जब हम इसके पीछे के रहस्य को समझ लेंगे तो फिर हम इसको न केवल अच्छे से हैंडल कर पाएंगे बल्कि हम अपने जीवन को भी कहीं ज्यादा सार्थक एवं समृद्ध कर पाएंगे | 

 क्या है यह अकेलापन (Lonelyness ) -

withrbansal

 यूँ तो अकेलापन (Lonelyness )का अर्थ एक ऐसी भावनात्मक अवस्था से लिया जाता है जहां व्यक्ति को किसी से भी जुड़ाव महसूस नहीं होता है | किसी भी व्यक्ति या वस्तु में आकर्षण नहीं रह जाता है एक विरक्ति सा भाव हमेशा कायम रहता है | व्यक्ति को अपने जीवन का कोई अर्थ या उद्देश्य समझ नहीं आता है या फिर जो अर्थ उसने संजो रखा था वह किसी वजह से विखंडित हो गया है |                                       यह भी पढ़े -जीवन का अर्थ या उद्देश्य                                                                                                                                                              अगर यह खालीपन कभी-कभी महसूस होता हो तो यह सामान्य है, लेकिन यदि यह लगातार एवं चौबीसों घंटे बना रहे तो सतर्क हो जाने की आवश्यकता है क्योंकि इसकी अगली स्टेज अवसाद की होती है जो कि एक गंभीर मानसिक समस्या में भी बदल सकती है | 

 यह सूनापन शाश्वत एवं सार्वभौमिक है-

withrbansal

 जी हां दोस्तों, यह अकेलापन कोई आज की समस्या नहीं है हजारों सालों से मानवता इसे महसूस करती आ रही है | प्राचीन भोजनखोजी आदिमानव भी किसी कन्दरा में बैठा उतना ही अकेलापन महसूस करता था जितना कि आधुनिक पांच सितारा होटल में बैठा कोई अमीरजादा |                                                                                                          यह सूनापन अमेरिका ब्रिटेन जैसे विकसित देशों में जितनी मात्रा में है उतना ही अफ्रीका के गरीब देशों में भी व्याप्त है | यह बच्चों एवं बूढ़ों दोनों को समान मात्रा में महसूस होता है | 

 सब कुछ होने के बाद भी खालीपन महसूस करते है-

 आपने देखा होगा कि व्यक्ति का भरा पूरा परिवार है,अच्छा खासा व्यवसाय या जॉब है, समाज में पद-प्रतिष्ठा है और जीवन के समस्त सुखों का उपयोग कर रहे हैं, उसके बाद भी जब कभी वह इस दुनिया की भागदौड़ को विराम देता है, एक पल के लिए ठहरता है तो स्वयं को अकेला पाता है | एकअजीब सी उदासी या सूनापन सभी अपने जीवन में महसूस करते है |                                                                                                                   क्या कारण है इस अकेलेपन के ? क्यूँ मनुष्य इस पृथ्वी पर इतना अकेला महसूस करता है ? 

 अकेलेपन के आध्यात्मिक कारण-

withrbansal

 आध्यात्मिक दृष्टि से इस अकेलेपन के दो मुख्य कारण माने जाते हैं-

 प्रथम- पृथ्वी पर आप एक पूर्ण आत्मा नहीं होते हैं

 जैसा कि आप जानते हैं कि आत्मा एक ऊर्जा पुंज है | इस धरती पर जन्म लेते समय हम उर्जा का आंशिक भाग ही  लेकर आते हैं इसका एक भाग आत्मलोक में ही रह जाता है | आप इस पृथ्वी पर पूर्ण आत्मा का केवल एक हिस्सा है और जो अकेलापन हम महसूस करते हैं वह अपने छूटे हुए जुड़वा अंश के लिए होता है |                                                                                                       यह पृथ्वी हमारी पाठशाला है जहां हम अनवरत अपने सबक(पाठ) सीखने एवं परीक्षा देने आते रहते हैं | पृथ्वी पर हमारी परीक्षा यह है कि हमें हमारी जुड़वा आत्मा (छूटे हुए जुड़वा अंश) के बिना पूर्णता के एहसास को हासिल करना है |
 
withrbansal

यह पूर्णता हम तभी प्राप्त कर सकते हैं जब हम इस पृथ्वी पर वह कार्य करते हैं या कर रहे होते हैं जिस उद्देश्य के लिए हमने यहां जन्म लिया है | यह वह कार्य होता है जो कि हमारी आत्मा और ईश्वर के मध्य एक वचन,अनुबंध या शपथ के रूप में पृथ्वी पर आने से पहले निर्धारित किया गया होता है |                                                                                                                              यह अकेलेपन या खालीपन की भावना हमारे मन में इसलिए होती है कि हमारा अवचेतन मन लगातार हमें यह बताता रहता है कि हम धरती पर अपने उन कार्य को नहीं कर रहे हैं जिन्हें करने हेतु हम यहां आए हैं |                                                                                                                                                                  हालाँकि हर व्यक्ति (आत्मा ) के विशिष्ट जीवन उद्देश्य हो सकते हैं लेकिन निम्न तीन सामान्य उद्देश्य हमारे यहाँ इस पृथ्वी पर होने के माने जाते हैं | यह बात अलग है कि धरती पर आकर हममें से अधिकतर अपने उद्देश्य को भूल जाते हैं-                                                                                      यह भी पढ़े -मृत्यु के बाद का सत्य !

 1 अध्यात्मिक विकास करना-

withrbansal

 पृथ्वी पर जन्म लेने का यह हमारा मुख्य उद्देश्य होता है | आध्यात्मिक विकास से तात्पर्य कि हम अपनी कमजोरियों यथा अहंकार, क्रोध, घृणा, ईर्ष्या,झूंठ,चोरी,लालच,हिंसा इत्यादि पर विजय प्राप्त करें और अपने व्यक्तित्व में सत्य ,प्रेम, दया, क्षमा, सद्भाव,सहनशीलता मानवता आदि गुणों का समावेश करें |                                                                                                      जब हम पृथ्वी पर भौतिक प्रगति हेतु अपने उक्त उद्देश्य को भूलकर अनुचित साधनों का प्रयोग कर रहे होते हैं तो हमारा अवचेतन हमें कचोटता है जो कि अकेलेपन के रूप में हमें गंभीरता से महसूस होता है | 

2  कार्मिक ऋणों का भुगतान करना-

धरती पर आने का यह भी एक प्रमुख कारण माना जाता है | "कर्म चक्र सिद्धांत " अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को अपने शुभ एवं अशुभ कर्मों का फल भोगने हेतु पृथ्वी पर आना पड़ता है | अनेक जन्मों में हमारे द्वारा किए गए कर्म अवचेतन में संचित होते रहते हैं और इनसे ही प्रारब्ध बनता है |                                                                                                                            हालांकि इस संबंध में अलग-अलग धर्मों एवं संप्रदायों के विभिन्न मत है लेकिन एक बात निश्चित है कि जब आप पृथ्वी पर निर्धारित कार्मिक ऋणों का भुगतान न कर नए ऋण उत्पन्न कर रहे हो तब हमारा अवचेतन एक उदासी, खालीपन या सुनेपन के रूप में हमें भावनात्मक चेतावनी देता रहता है | 

 3 दूसरों की निस्वार्थ मदद करना-

withrbansal

 जब कोई व्यक्ति (आत्मा), आध्यात्मिक विकास के उच्च स्तर को प्राप्त कर चुकी होती है और पृथ्वी पर उसे किसी प्रकार का लेना-देना बाकी ना रहा हो तब वह दूसरों के विकास एवं भलाई के लिए अथवा अपने किसी प्रियजन या  आत्मिक साथी की मदद करने हेतु पृथ्वी पर जन्म ले सकती है |                                                                                                                                  ऐसे में मानवता की भलाई हेतु ईश्वर द्वारा उसे विशेष उपहारों एवं प्रतिभाओं से नवाजा जाता है | जब व्यक्ति द्वारा अपने सामुदायिक सेवा के ईश्वर प्रदत्त इन विशेष प्रतिभाओं की पहचान न की जा कर अवसर को यूं ही गँवाया जा रहा हो तो वह व्यक्ति अपने मन में हर समय असंतुष्टि का भाव महसूस करता है और यह भाव धीरे-धीरे अकेलेपन का रूप ले लेता है | 
 
withrbansal
 
इसी प्रकार आत्मा के द्वारा अपने किसी प्रियजन या आत्मिक साथी के आध्यात्मिक विकास हेतु भी जन्म लिया जाता है | सामान्यता आत्मा के द्वारा यह सहायता अपने प्रियजनों को किसी भी प्रकार से दर्द देकर की जाती है | क्योंकि हम किसी के द्वारा दिए गए मार्गदर्शन, खुशी, आनंद या आशीर्वाद को तो आसानी से अनदेखा कर देते हैं पर दर्द नहीं भुला पाते हैं | दर्द से ही मनुष्य ज्यादा तेजी से सीखता है |                                                                                                                                                         माता-पिता को अहंकार पर नियंत्रण एवं जीवन का पाठ सिखाने हेतु उनके पुत्र या पुत्री के रूप में जन्म लेकर फिर कम आयु में ही उन्हें छोड़कर चले जाना उसका एक उपयुक्त उदाहरण है | यह दर्द माता-पिता को जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ सिखाता है | यहाँ भी जब वह व्यक्ति अपने परिजन के विकास में योगदान न देकर उल्टा उसे पीछे की और धकेलता है तो असंतोष या खालीपन महसूस होता है | 
           इस प्रकार यदि हमें इस अकेलेपन या खालीपन से मुक्ति प्राप्त करनी है तो हमें अपना निर्धारित जीवन कार्य अवश्य संपन्न कर पूर्णता प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए | 

 द्वितीय- पृथ्वी आपका वास्तविक घर नहीं है | 

withrbansal

 हमारा अवचेतन यह अच्छी तरह से जानता है कि हमारा असली घर आत्मलोक है | वह आत्मलोक एवं उसकी शांतता और सकून ,अपने आत्मिक साथियों एवं प्रियजनों की की संगत के लिए व्याकुल रहता है |                                                                                   आपने देखा होगा कि हमारा अकेलापन सामान्यता सांयकाल में कहीं अधिक घनीभूत जाता है क्योंकि वह घर लौटने का समय होता है | इसीलिए हमारे पूर्वजों के द्वारा सायंकाल  में दीपक ज्योति के सम्मुख बैठकर ईश आराधना का विधान किया गया है |                                                                        यह भी पढ़े -आत्मलोक" क्या है एवं आत्माएँ कैसे यहाँ पहुँचती है   
                                          तो दोस्तों, यह अकेलापन धरती पर हमारी परीक्षा है और इसमें हमें असफल नहीं होना है | जब तक हम पृथ्वी के इस खालीपन से मुक्ति नहीं प्राप्त करेंगे तब तक आत्मलोक में भी हमें शांति प्राप्त नहीं होगी | कृपया कमेन्ट जरूर करे | Withrbansal 
                                                                                             %%%%%  


टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

आपको मेरी यह पोस्ट कैसी लगी ,कृपया सुझाव, शिकायत टिप्पणी बॉक्स में लिखकर बताये

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

टेस्ला कोड या दिव्य नंबर "369" से सफलता कैसे प्राप्त करें

अब्राहम हिक्स की तकनीक से 17 सेकंड में,जो चाहे वह प्राप्त करें |

"अहम् ब्रह्मास्मि" के महान उद्घोषक : श्री निसर्गदत्त महाराज