जब कुछ समझ ना आये तो इंतजार न करे,बस शुरू कर दे।
सफलता का आसान तरीका-"कुछ करो" का सिद्धांत-

withrbansal दोस्तों, सफलता एवं असफलता दोनों अपने आप में सापेक्षिक अवधारणाएं हैं | यह आप के मानदंडों पर निर्भर करते हैं कि आप क्या सोचते है | भौतिक उपलब्धियां सफलता का कोई ठोस मानदंड नहीं है | आपके पास बहुत सारी धन-संपत्ति होने के बावजूद भी आप दयनीय हो सकते हैं और दूसरी तरफ आप पूरी तरह से टूटने के बावजूद भी खुश हो सकते हैं | ऐसे में सफलता इसी बात पर निर्भर करती है कि आप किसे सफलता मानते हैं | आपके पास बहुत सारा पैसा होना एक भौतिकवादी की नजर में आप को सफल बनाता है तो दूसरी ओर एक आध्यात्मिक व्यक्ति के नजर में आपके द्वारा सारी जिंदगी कंकड़ पत्थर इकट्ठे किये गए है |

हमारी संपूर्ण सामाजिक व्यवस्था का ताना-बाना कुछ इस तरह से बुना गया है कि जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं असफलताओं से बचना सीखने लगते हैं | इसका मुख्य कारण हमारी शैक्षिक प्रणाली है जिसमें बच्चों को परीक्षाओं के माध्यम से जांचा जाता है और फेल होने पर सजा दी जाती है | दूसरी भूमिका अभिभावकों द्वारा निभाई जाती है वह बच्चों को उन्हें अपने लिए कोई नई राहें खोजने हेतु प्रेरित ना करके परंपरावादी बनाए रखने पर जोर देते हैं | हमारा मीडिया जो लगातार सफलता की कहानियां सुनाता रहता है उन सफलताओं के पीछे के संघर्ष को कभी नहीं दिखाता है कि उन सफलताओं से पहले वे कितनी बार टूट कर गिरे थे | हमारा समाज जिसमें असफलता का मजाक बनाया जाता है और इन सब के साथ हमारे स्वयं के सफलता के भ्रामक मानदंड भी हमें असफलता से दूर भागने को प्रेरित करते हैं |
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जबकि सच यह है कि अगर हम फेल होने को तैयार नहीं है तो हम सफल होने को भी तैयार नहीं है | क्योंकि सफलता अक्सर इसी बात पर टिकी होती है कि हम उसके लिए कितनी बार असफल हुए हैं | यदि कोई व्यक्ति आपसे किसी चीज में अच्छा है तो यकीनन आप से कहीं ज्यादा बार फेल हुआ होगा और अगर कोई आपसे उतना अच्छा नहीं है तो यह निश्चित मानो कि उसने अभी तक उन राहों के दर्द को नहीं झेला है जिनसे आप गुजर कर आए हैं | सफलता हमेशा हजारों छोटी-छोटी असफलताओं का कुल जोड़ होता है |

कभी भी जीवन में सफलता के मापदंड या आदर्श किसी संख्या या भौतिक रूप में ना बनाएं जैसे- कार, बंगला, धन-संपत्ति, भौतिक सुख सुविधाएं इत्यादि | क्योंकि यह मापदंड बड़े खोखले होते हैं | इनके पूरा होने के बाद क्या बचेगा आपके पास-खालीपन,रिक्तता,जीवन की व्यर्थता | सफलता के हमारे आदर्श ऐसे होने चाहिए जो आजीवन हमारे साथ चलें ,जिनके आधार पर हम जीवन भर विकसित होते रहे और भौतिक चीजें उन आदर्शों के बाय- प्रोडक्ट के रूप में हमें प्राप्त हो | हम समाज या समाज के किसी विशिष्ट वर्ग जैसे -बुजुर्ग ,महिला या बच्चे जिनके प्रति हम संवेदनशीलता महसूस करते हैं, के जीवन को आसान करने को अपना आदर्श बना सकते हैं या फिर इसी प्रकार का अन्य कोई मानदण्ड | हम सभी को अपने जीवन का "व्यक्तिगत संविधान"(presonal constitution )अवश्य निर्मित करना चाहिए |
"कुछ करो" का सिद्धांत-

जब आप किसी चीज या समस्या पर अटक जाओ तो वहीं बैठ कर उसके बारे में सोचते ना रहे,उस पर काम करना शुरू कर दें,भले ही आपको कुछ भी अंदाजा नहीं है कि आप क्या कर रहे हैं | किसी भी दिशा में एवं कुछ भी एक छोटा सा कदम उठाकर काम की एक बार शुरुआत कर दे | काम करने के इस आसान से कदम से उससे जुड़े हुए सही विचार आपके मन में आ जाएंगे | प्रसिद्ध ब्लॉगर "मार्क मेंशन" ने इसे "कुछ करो (Do Something)" सिद्धांत का नाम दिया है | वे कहते हैं कि- "बैठे मत रहो, कुछ करो,जवाब अपने आप मिल जाएगा | प्रसिद्ध लेखक "टी हार्व एकर" इसे "कॉरिडोर में प्रवेश" का नाम देते हैं | उनके अनुसार आपके पास जो भी हो ,आप जहां भी हो, ज्यादा सोच विचार मत करो, गलियारे में घुस जाओ और खेल में कूद जाओ | कॉरिडोर में प्रवेश करने का मतलब उस क्षेत्र में दाखिल होना है जहां आप भविष्य में रहना चाहते हैं | 

हममें से ज्यादातर लोग कोई काम तभी प्रारंभ करते हैं जब हम उसके प्रति किसी एक खास स्तर की अभिप्रेरणा महसूस करते हैं | उस कार्य को करने के प्रति भावनात्मक रूप से प्रेरित होते हैं,तभी वह प्रेरणा, अभिप्रेरणा में रूपांतरित होकर क्रिया में बदलती है | जबकि काम सिर्फ अभिप्रेरणा का परिणाम नहीं है बल्कि वह उसका कारण भी बन सकता है | क्योंकि अभिप्रेरणा सिर्फ तीन कड़ियों वाली श्रंखला न होकर एक अंतहीन जाल है |
प्रेरणा- अभिप्रेरणा- क्रिया- प्रेरणा- अभिप्रेरणा- क्रिया

यदि आप कोई कार्य करने में पर्याप्त अभिप्रेरणा की कमी महसूस कर रहे हैं तो आप एक बार कुछ भी शुरू कर दो, फिर उसके परिणाम देखो और उन परिणामों का खुद को प्रोत्साहित करने में उपयोग लो | जैसे किसी व्यवसाय की बारीकियां सीखनी है तो उसका सर्वश्रेष्ठ तरीका है उसमें उतर जाएं | यहां उतरने से तात्पर्य जरूरी नहीं कि उस व्यवसाय के मालिक बनो ,उस व्यवसाय में नौकर बन जाए | क्योंकि जब आप खेल के अंदर होते हैं तो आपको उससे कई लाभ मिलते हैं जैसे -उस व्यवसाय के संपर्क सूत्रों का पता चलता है ,व्यवसाय के अंदर की बारीकियों का ज्ञान होता है ,अवसरों के कई अन्य द्वार खुल सकते हैं, हो सकता है कोई अन्य क्षेत्र दिख जाए जिसका अब तक आपको पता ना हो ,साथ ही यह भी पता चल जाता है कि वह व्यवसाय हमें पसंद भी है या नहीं |
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एक प्रसिद्ध लेखक से जब यह पूछा गया था कि उन्हें यूं लगातार लिखने की प्रेरणा कहां से मिलती है उनका जवाब था कि मैं रोज सिर्फ 200 शब्द लिखता हूं जब भी मैं लिखने को प्रेरित नहीं होता हूं तो केवल 200 शब्द लिखता हूं और जब तक मुझे यह एहसास होता है तब तक हजारों शब्द लिख गए होते हैं | "कुछ करो "का यह सिद्धांत टालमटोल से दूर रहने का एक अचूक मंत्र है | तभी तो सफल लोग अक्सर शुरू कर देते हैं क्योंकि उन्हें अपने आप पर भरोसा होता है कि एक बार खेल में उतरने के बाद वे उपयुक्त निर्णय ले सकते हैं, सुधार कर सकते हैं और चलते-चलते अपनी पतवार को संतुलित कर सकते हैं | 

तो दोस्तों ,जिंदगी नहर की तरह सीधे नहीं चलती है बल्कि यह तो एक बलखाती नदी की तरह है जहां हम इसका अगला मोड़ ही देख पाते हैं, वहां पहुंचने पर ही हमें आगे का दृश्य दिखाई देता है इसलिए इंतजार ना करें, जहां भी हो ,जो भी हो, वहीं से शुरू कर दें | चाहो तो प्रारंभ दूसरे के लिए या दूसरों के साथ भी कर सकते हैं | withrbansal
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आपकी यह पोस्ट बहुत ही प्रेरणादायक है मन में चल रही हर प्रश्न का जवाब मिल गया
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