क्या नियति (destiny) को बदला जा सकता है ?

क्या नियति(Destiny) एवं स्वतंत्र इच्छा(free will) दोनों विपरीत शक्तियां है-

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 withrbansal , दोस्तों, हजारों वर्षों से विभिन्न ग्रंथों,ज्योतिष एवं आध्यात्मिक चर्चाओं में इस प्रश्न पर विचार किया जाता रहा है कि नियति (destiny )क्या है,क्या जीवन में सब कुछ पहले से निर्धारित है या फिर हम खुद अपनी नियति का निर्माण कर सकते हैं ? क्या नियति (destiny ) को बदला जा सकता है ?                                                                                       यहां "नियति"(destiny ) से तात्पर्य उन निश्चित एवं अटल दैवी विधान से है जो कि सामान्यता पूर्व नियत और मनुष्य के ललाट पर लिखे माने जाते है | कुछ लोग नियति यानी भाग्य में विश्वास रखते हैं वहीं कुछ लोग यह मानते हैं कि "स्वतंत्र इच्छा " (free will )और "चयन की स्वतंत्रता" हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है |

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 लेकिन असलियत में जीवन इन दोनों अतियों के बीच में कहीं होता है | "दाजी " नियति को "जेनेटिक्स" की तरह लचीली मानते हैं, जिस तरह से जेनेटिक्स में मानवीय जीनोम द्वारा निर्धारित एक नियत जेनेटिक पैटर्न के साथ-साथ एक परिवर्तनशील "एपीजेनेटिक" भाग भी होता है जहाँ मूल आनुवंशिक सरंचना तो नियत होती है परंतु हमारा वातावरण, विचार और भावनाएं यह सभी हमारे जीन के प्रकट होने के तरीके को प्रभावित करते है, नियति भी इसी तरह होती है |

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 नियति एवं स्वतंत्र इच्छा - 
  आपके जीवन में प्रकट होने वाली सभी चीजें,व्यक्ति,घटनाएं एवं परिस्थितियाँ सब नियति(destiny) है,लेकिन उन सबके प्रति आपके द्वारा व्यक्त प्रतिक्रिया आपकी "स्वतंत्र इच्छा"(free will ) है कि आप इनमें क्या चयन करते हैं और कैसे करते हैं  | विगत हजारों वर्षों के विभिन्न जन्मों में हमारे द्वारा किए गए कर्मों का कुल जोड़ "नियति"है | सभी जिंदगियों में हमें चयन की स्वतंत्रता होती है | इस प्रकार इन विभिन्न जन्मों में हमारे द्वारा स्वतंत्र इच्छा के प्रयोग में किए हुए चुनावों से ही वर्तमान नियति का निर्माण हुआ है | 

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 साथ ही यह भी कि वर्तमान में हमारे द्वारा स्वतंत्रता के प्रयोग में किए गए चयन ही आगे चलकर हमारी नियति में बदल जाते हैं | जीवन यात्राओं में हमारे द्वारा किए गए चुनाव ही हमारी नियति (destiny)  को तय करते हैं | इस प्रकार नियति एवं स्वतंत्र इच्छा (free will )दोनों विपरीत ध्रुव ना होकर रेल की पटरी के समान साथ साथ चलते हैं,साथ ही दोनों एक दूसरे के कारण एवं परिणाम भी है | 
                                   🠞 नियति 🠞 स्वतंत्र इच्छा 🠞 नियति 🠞स्वतंत्र इच्छा 🠞 नियति 🠞 

 नियति (destiny) कैसे तय होती है-


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 जब किसी के जीवन में कुछ बुरा या अशुभ घटित होता है तो सामान्यतया लोगों के द्वारा यह कहकर दिलासा दी जाती है कि "भगवान की यही मर्जी थी "| अरे भगवान को तो परमपिता परमात्मा माना जाता है और कोई भी पिता कैसे अपने बच्चों के साथ बुरा कर सकता है ? तो फिर वह कौन सी शक्ति है जो नियति को तय करती है ?                                                                                         दोस्तों,"कर्म फल का सिद्धांत" वह शाश्वत सिद्धांत है जो हमारी नियति को निश्चित करता है | इसे "कारण और परिणाम का सिद्धांत" ( the law of cause and effect ) भी कहा जाता है |

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 पृथ्वी एक पाठशाला है | भूलोक को आत्माओं के द्वारा एक बहुत ही कठिन विद्यालय माना जाता है, जहां आत्मलोक से हम अपने कार्मिक ऋणों का भुगतान करने,परीक्षा एवं प्रशिक्षण से गुजरने एवं आध्यात्मिक जीवन कार्यों को पूरा करने आते हैं |                                                                                                           यह भी पढ़े -कभी-कभी हमें बेहद अकेलापन क्यूँ महसूस होता है |                                                                                                              भूलोक पर हमारे द्वारा जो भी कर्म किये जाते हैं वह संचयी प्रभाव रखते हैं | अच्छे-बुरे सभी कर्म हमारे "कार्मिक अकाउंट" में जमा होते रहते हैं,और उन कर्मों के परिणाम अगले जन्म में "नियति" के रूप में सामने आते हैं | "कर्मों "से तात्पर्य हमारे द्वारा किए जाने वाले कार्य मात्र से नहीं है इसमें हमारे विचार,भावनाएं एवं आवेग भी सम्मिलित होते हैं | कर्म का मतलब कुछ करना ही नहीं है इसमें "ऐसा करने" का भाव भी शामिल है |

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 इस पृथ्वी पर जीवन के सारे हिसाब-किताब आत्माओं के बीच होते हैं ना कि शरीरों के मध्य | मृत्यु से हमारा स्थूल शरीर समाप्त होता है, हमारे विचार,भावनाएं,अहंकार, कामनाएं,वासनाएँ,इच्छाएं,अनुभव,ज्ञान आदि इन सब का संग्रहित बीज हमारे "सूक्ष्म शरीर" के रुप में साथ ही जाता है | सूक्ष्म शरीर ही हमारे पुनर्जन्म का कारण है |                                                                           विगत जन्मों में आत्माओं के मध्य आपसी रिश्तो एवं व्यवहार में किए गए लेन-देन,छल कपट,फरेब,पीड़ा,दुख दर्द उपकार,प्यार,मदद,सहयोग इत्यादि कर्म सूक्ष्म शरीर के रूप में जन्म जन्मांतर तक साथ चलते हैं जो कि कर्मफल सिद्धांत अनुसार "नियति" बनकर हमारे सामने प्रस्तुत होते हैं |                                                                                                                                            यह भी  पढ़े -मृत्यु के बाद का सत्य !

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 कर्मफल सिद्धांत पूर्व जन्म में की गई गलतियों का एक तरह से प्रायश्चित भी होता है | यदि वह गलती किसी गुण के अभाव के कारण हुई है तो वह गुण हमें इस जन्म में सीखना पड़ेगा | जैसे इमानदारी के गुण के अभाव के कारण यदि चोरी की गई हो तो हमें इस जन्म में न केवल उस व्यक्ति को चोरी का भुगतान करना होगा अपितु आगे बढ़ने के लिए ईमानदारी का गुण भी हमें सीखना होगा | यही बात संबंधों में भी लागू होती है |

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यदि हमारे द्वारा पूर्व जन्म में किसी को पीड़ा पहुंचाई गई है तो उस पीड़ा को महसूस करने के लिए इस जन्म में वही स्थिति नियति द्वारा पुनः सृजित की जाती है,अंतर इतना होता है कि इस बार पीड़ित के स्थान पर हम होते हैं | कभी-कभी हमारे नव विकसित गुणों को आजमाने हेतु परीक्षा भी होती है | कर्म संबंधी ऋण के कारण ही ऐसे व्यक्ति को खोने का अनुभव लेना होता है जिसे वह बहुत प्यार करता था | 

 स्वतंत्र इच्छा (Free Will) का प्रयोग कैसे होता है-

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आत्मलोक में आत्मा के द्वारा पुनर्जन्म का फैसला लेते ही स्वतंत्र इच्छा का नियम प्रभावी हो जाता है | आत्मा स्वयं के द्वारा अपनी इच्छा से अपने शरीर,जीवन, मित्र,संबंधी,परिवार,देश,काल,परिस्थितियों,चुनोतियों इत्यादि का निर्धारण किया जाता है |                                                                                                                                                                    जब आप धरती पर जीवन में आते हैं तो नियति द्वारा आपके सामने कठिनाइयां,चुनौतियां या  समस्याएं प्रस्तुत की जाती है ,ऐसे में आप इन सब का सामना कैसे करते हैं, यह पूरी तरह से आप पर निर्भर करता है | आप इन सब का सामना बहादुरी एवं मुस्कान के साथ करते हैं या दयनीय एवं पीड़ित बनकर शिकायत करते हुए जीवन व्यतीत करते हैं, यह आपकी स्वतंत्र इच्छा के द्वारा किया गया चयन होगा |

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 आप अपनी विकलांगता या बीमारी का रोना रोते हुए दया एवं सहानुभूति की भीख मांगते हुए जीवन काटते हैं या फिर" विटामिन जिंदगी "के  ललित कुमार जैसे राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता रोल मॉडल बनते हैं अथवा स्टीफन हॉकिंग जैसे विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक की हैसियत से "ए ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ टाइम "जैसी कालजयी रचना करते हैं |                                                                                                                                                          अपने इकलौते युवा पुत्र की मृत्यु पर आप जीवनभर अवसाद में रोते हैं या बहादुरी के साथ उसके अधूरे सपनों को पूरा करने का प्रण लेते हैं,यह सब आप का चुनाव है |

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 आप को पद-प्रतिष्ठा, सत्ता-शक्ति अथवा प्रचुर धन-संपत्ति प्राप्त होना आपकी नियति है लेकिन उसका प्रयोग नैतिकता पूर्वक दूसरों की भलाई के लिए करते हैं या अहंकार,लालच एवं प्रलोभन में आकर उसका दुरुपयोग करते हैं,यह आपकी स्वतंत्र इच्छा है |                                                                                                                                                       इसलिए हमें इस स्वतंत्र इच्छा रूपी वरदान का प्रयोग बुद्धिमानी से करना होगा |  क्योंकि" स्वतंत्र इच्छा" में चुनाव की स्वतंत्रता के साथ-साथ बुद्धिमानी से चयन का दायित्व भी जुड़ा हुआ है | 

 क्या नियति को बदला जा सकता है-


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 नियति के संबंध में यह प्रश्न शाश्वत है कि क्या नियत है और क्या बदला जा सकता है ? स्वतंत्र इच्छा का अर्थ यह नहीं है कि मनुष्य वह सब कुछ कर सकता है जो उसे प्रसन्न करता है क्योंकि चयन हमेशा हमारे "स्वभाव" द्वारा प्रतिबंधित होता है जो कि हमारे विगत जन्मों के द्वारा निर्मित है | हमारा संपूर्ण जीवन पूर्व नियत नहीं होता है यदि ऐसा होता तो फिर पुनर्जन्म का कोई अर्थ नहीं रह जाएगा | 
                                                                     "डिजाइनिंग डेस्टिनी" में नियति को बदला जा सकता है या नहीं ,इस प्रश्न का जवाब देते हुए श्री कमलेश पटेल "दाजी" कहते हैं कि हमारे तीन शरीर है- स्थूल,सूक्ष्म एवं कारण शरीर |                                                                                                                                                                 स्थूल यानी भौतिक शरीर को हम अधिकतम सुंदर एवं स्वस्थ बना सकते हैं लेकिन मूल शारीरिक संरचना या आनुवंशिकी को बदलना संभव नहीं है |                                                                                                             "कारण शरीर "आत्मा से संबंधित है जिसे एक मत तो पूर्ण एवं अपरिवर्तित मानता है ,लेकिन दूसरा मत यह भी है कि आत्मा का उद्देश्य विकास करना है |                                                                                                               सूक्ष्म शरीर को हृदय एवं मन से जुड़ा मानते हैं,यही वह क्षेत्र है जहां सब कुछ बदला जा सकता है,यही वह भाग है जिसे हम अपनी नियति के निर्माण हेतु परिष्कृत कर सकते हैं |                                                            यह भी पढ़े -मन से आजादी कैसे प्राप्त करें 

@ नियति के सिद्धांत-

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1  नियति को हम केवल वर्तमान में ही बदल सकते हैं | इसलिए अतीत में उलझे ना रहे क्योंकि यह हमारी बहुमूल्य उर्जा को बर्बाद करता है | 
2  हम अपने विचारों,इच्छाओं एवं पसंद-नापसंद से नियति का निर्माण करते हैं | इसलिए उनके बारे में सतर्क रहें और ध्यान के माध्यम से मन को प्रशिक्षित करें | 
3  हम सभी एक दूसरे से जुड़े होने के कारण न केवल व्यक्तिगत नियति का निर्माण कर रहे हैं बल्कि एक समुदाय के रूप में सामूहिक नियति भी तय कर रहे हैं | अर्थात सम्पूर्ण मानव जाति की नियति निर्माण में भी हम भागीदार है | 
4 दृढ आत्म विश्वाश एवं शुभेच्छा के द्वारा नियति के घेरे को आसानी से तोड़ा जा सकता है | दृढ़ श्रद्धा नियति से अधिक शक्तिशाली होती है |  
                                                                                                                                                                  यह भी पढ़े -पढ़े -मेडिटेशन का एक मजेदार तरीका :इनर साउंड तकनीक

 @ कर्म सिद्धांत की वास्तविकता-

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 " कर्म सिद्धांत " के बारे में लोगों की आम धारणा यह है कि हम इस जन्म में जो भी अच्छा या बुरा कार्य करेंगे उसके अनुसार ही हमें अगले जन्म में फल प्राप्त होंगे या यूं कहें कि इस जन्म में हमारे पास जो भी कुछ अच्छा है वह हमारे पूर्व जीवन के पुण्यों का परिणाम है और जो कुछ अशुभ घटित हो रहा है वह विगत जीवन के पापों का फल है |  लेकिन यह धारणा पूर्णतया सही नहीं है |                                                                                                                                                       जब आत्मलोक में हम अपनी स्वतंत्र इच्छा का प्रयोग कर किसी परिवार या परिस्थिति में जन्म लेने का फैसला करते हैं तो इसका मतलब यह नहीं है कि हमने सभी पीड़ाओं को सहन करने का करार किया है ,इसका मतलब केवल इतना है कि हमारे द्वारा उस परिवार या परिस्थिति में घटित होने वाले सबको एवं घटनाक्रमों में भाग लेने की सहमति प्रदान की गई है |                                                                                                                                       डॉ0 ब्रायन वीज- "स्वतंत्र इच्छा का विकल्प हमेशा उपलब्ध होता है | कोई पाठ किस प्रकार से सीखना है या कोई अनुभव कैसे लेना है ,यह हम तय कर सकते हैं | नियति मानकर किसी दर्द या पीड़ादायक रिश्ते में बने रहना आवश्यक नहीं है | नियतियाँ पूर्व निर्धारित नहीं होती है,वह हमारे द्वारा किए गए चुनावों से लगातार बदलती रहती है | "

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 याद रखें,आप उन सभी समस्याओं से निपटने में सक्षम है जो नियति द्वारा आपके सामने खड़ी की गई है | क्योंकि आत्मलोक में आप के मार्गदर्शको के द्वारा आपकी क्षमता के अनुसार ही आपके लिए कर्म,परीक्षा एवं प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाती है |                                                                                                                                                                 यदि आपको लगता है कि आप चुनौतियों से निपटने में सक्षम नहीं है तो एक बार दोबारा सोचें कि चूक कहां हो रही है | withrbansal 

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