रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना है तो अपने आंतरिक शरीर के साथ जुड़े

रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने हेतु अपने आंतरिक शरीर को महसूस करें-





 withrbansal  दोस्तों,वर्तमान में कोरोना महामारी की इस दूसरी लहर के लगातार बढ़ते प्रकोप से प्रत्येक व्यक्ति भय के साए में है,इस मनोवैज्ञानिक डर से व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी विपरीत रूप से प्रभावित हो रही है |  किसी को भी समझ नहीं आ रहा है कि इस चुनौती से कैसे निपटा जाए और साथ ही यह भी कि पता नहीं कि यह दौर कितना लंबा चलेगा |                                                                                                                                                                      ऐसे में हमें लंबे समय तक मानसिक मजबूती एवं अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बनाए रखना अति आवश्यक है | मानसिक संतुलन एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए हम कुछ आध्यात्मिक उपायों का सहारा ले सकते हैं जो कि अन्य सभी तरीकों से कहीं ज्यादा प्रभावी है |

रोग प्रतिरोधकता बढ़ाने हेतु ध्यान विधि-

क्योंकि स्वस्थ रहने के लिए शरीर मन एवं आत्मा इन तीनों का पोषण जरुरी है और यह पोषण अध्यात्म द्वारा ही दिया जाना संभव है | आध्यात्मिक आयाम में मानसिक दृढ़ता एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने हेतु  अपने आंतरिक शरीर का उपयोग किया जाता हैं |                                                                                                                                        आंतरिक शरीर से जुड़कर या उसके प्रति जागरुक होकर रोग प्रतिरोधक क्षमता एवं मानसिक संतुलन में नाटकीय परिवर्तन लाया जा सकता है |
 
 रोग प्रतिरोधक क्षमता एवं आंतरिक शरीर -

 "आंतरिक शरीर " वह नहीं है जिसे हम देख या स्पर्श कर सकते हैं | यह शरीर तो केवल एक बाहरी आवरण है |  "आंतरिक शरीर" हमारे बाहरी आवरण के भीतर एक ऐसी अदृश्य ऊर्जा के रूप में स्थित होता है जो कि हमारे भौतिक शरीर को जीवन प्रदान करता है और जिसे केवल महसूस किया जा सकता है |                                                                                                                   इस आंतरिक शरीर के माध्यम से ही हम उस अव्यक्त एवं अप्रकट परम जीवन (बीइंग ) से अपृथक रूप से जुड़े हुए हैं ,जो न जन्म लेता है ना मरता है और शाश्वत रूप से विद्यमान रहता है |

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 यह "आंतरिक शरीर " ही वह पुल है जो प्रकट (संसार ) और अप्रकट (बीइंग ) को जोड़े हुए है | जब तक हम अपना अवधान अपने आंतरिक शरीर पर नहीं करेंगे तब तक हमारा मन हमें इधर-उधर भटकाता रहेगा और हम अपने उस अदृश्य एवं अविनाशी वास्तविकता का बोध नहीं कर पाएंगे जिसकी शाब्दिक अभिव्यक्ति किया जाना संभव नहीं है |                                                                                                                                             पढ़े -मन से आजादी कैसे प्राप्त करें

रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए

आंतरिक शरीर के साथ जुड़कर न केवल मानसिक दृढ़ता एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि कर सकते हैं बल्कि हम अपने आंतरिक अस्तित्व (being ) से निकलने वाली जीवंत शांति,नीरवता और निश्चलता को भी अनुभव कर सकते हैं | 
                                   हालांकि अधिकांश धर्मों के द्वारा शरीर को नकारते हुए,निंदा करते हुए इसे "पाप का घड़ा" तक कहा गया है और इसे आध्यात्मिक उद्देश्यों की प्राप्ति में बाधा बताया गया है | लेकिन तथ्य यह है कि शरीर को नकार कर,उससे संघर्ष करके या शरीर से बाहर निकलने से (कुछ लोग ऐसा करते है ) कभी किसी को आत्मज्ञान (एनलाइटनमेंट) नहीं हुआ है |                                                                                                                                                बुद्ध के बारे में भी कहा जाता है कि उन्होंने लगभग 6 वर्ष तक उपवास एवं शारीरिक तप के द्वारा शरीर को खूब कष्ट दिए लेकिन उन्हें भी आत्मज्ञान तभी प्राप्त हुआ जब उन्होंने ऐसा करना छोड़ दिया |

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 रूपांतरण शरीर के माध्यम से ही होता है,शरीर से दूर जाकर नहीं | इस भूलोक में शरीर ही वह टूल है जिसके माध्यम से हम सांसारिक एवं आध्यात्मिक दोनों लक्ष्यो को प्राप्त कर सकते हैं | 

 रोग प्रतिरोधकता हेतु आंतरिक शरीर से कैसे जुड़े-

अपने आंतरिक शरीर से जुड़ने या उसे महसूस करने हेतु शांति से आंखें बंद करके बैठ जाएं | अपना पूरा ध्यान,पूरा अवधान अपने शरीर में ले जाएं | अपने शरीर की जीवंतता को अंदर से महसूस करें | अपने हाथों,पैरों,पेट,वक्ष आदि सब अंगों सहित सारे शरीर में उस सूक्ष्म ऊर्जा क्षेत्र को महसूस करें |                                                                                                        शरीर के हर अंग,हर कोषाणु में इस ऊर्जा स्पंदन को महसूस करें | कुछ समय तक अपना फोकस बनाए रखें,जितना अधिक फोकस करेंगे,आप की अनुभूति उतनी ही अधिक प्रबल एवं स्पष्ट होती जाएगी |

रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए
                                                                                                                                                                 ऐसा महसूस होगा कि आपकी प्रत्येक कोशिका अधिक सजीव होती जा रही है | लेकिन ऐसा करने में यह ध्यान रखें कि आप कोई छवि,चित्र या कोई कल्पना ना करें,बस केवल महसूस करने पर ध्यान दें | किसी प्रकार के चित्र,छवि या किसी कल्पना के सहारे आप ज्यादा गहरे में नहीं जा पाएंगे |                                                                                                                                              हो सकता है आप प्रारंभ में ज्यादा कुछ महसूस नहीं कर पाए लेकिन आप अपने इस आंतरिक शरीर के साथ लगातार जुड़े रहे, इससे कभी संपर्क ना तोड़े |                                     यह भी पढ़े -विपस्सना मेडिटेशन-मृत्यु से पहले जीवन को समझना होगा 
                                          एकहार्ट टॉल कहते है -"इस प्रकार से जब आप मानसिक रूप से अपने शरीर में रहने लगते हैं तो यह आपकी रोग प्रतिरोधक प्रणाली को मजबूत बना देता है | आप जितनी अधिक जागरूकता अपने शरीर में लाएंगे,आपकी रोग प्रतिरोधक प्रणाली उतनी ही अधिक मजबूत होती जाएगी | जितनी अधिक तवज्जो आप अपने शरीर को देंगे उतनी ही आपके शरीर की कोशिकाएं प्रफुल्लित होती जाएंगी | "                                                                                        अधिकांश रोग आपके अंदर तब प्रवेश करते हैं जब आप अपने शरीर में उपस्थित नहीं रहते हैं,यह उसी प्रकार से है जैसे जब घर में घर-स्वामी नहीं रहता है तब असामाजिक तत्व उस पर अपना अड्डा जमा लेते हैं | 

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आंतरिक शरीर पर ध्यान देने की इस प्रक्रिया से न केवल शारीरिक रोग प्रतिरोधक प्रणाली मजबूत होती है बल्कि मानसिक रोग प्रतिरोधक प्रणाली भी बेहद मजबूत हो जाती है | 
                                                        "सेल्फ हीलिंग" की इस प्रभावी,सबल तकनीक का प्रयोग रोग के प्रारंभिक लक्षण प्रकट होते ही प्रारंभ कर दे |  पहले से ही मौजूद रोगों में भी यह कारगर है शर्त यह है कि इसे थोड़ी-थोड़ी देर के बाद एवं पूरी शिद्दत से फोकस करके किया जाए | 

 रोग प्रतिरोधकता बढ़ाने हेतु ध्यान विधि-

 ध्यान की इस विधि का प्रयोग रात को सोने से पहले के आखिरी पलों में एवं सुबह जागने पर सबसे पहले वाले पलों  में किया जाना अति लाभकारी होता है | कमर के बल लेटकर अपनी आंखें बंद कर ले |अपने शरीर के विभिन्न अंगों हाथ,पैर,बांहे, छाती,मस्तिष्क आदि पर एक-एक करके अपना अवधान का फोकस करें | इन अंगों के अंदर जीवन ऊर्जा (प्राण) को जितनी अधिक सघनता से आप महसूस कर सकते हैं,उतना करें |
 
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 हर अंग के साथ लगभग 15 सेकंड तक रहे | फिर अपने अवधान को कई बार अपने पूरे शरीर में एक लहर की तरह दौड़ाये | जैसे सिर से पैरों की और, फिर पैरों से वापस सिर की तरफ | ऐसा कुछ मिनट तक करते रहे | इस प्रकार अपने आंतरिक शरीर को उसकी संपूर्णता में,ऊर्जा के एक अखंड क्षेत्र के रूप में महसूस करें |                                                                                हालांकि इस प्रक्रिया में आपका मन,ध्यान को बार-बार भटकायेगा,लेकिन इससे विचलित ना हो और वापस अवधान को मोड़ कर अपने शरीर में ले आए |                                                यह भी पढ़े -हाउ टू कंट्रोल योर माइंड इन हिंदी 
                                                                यह अभ्यास हम कभी भी और कहीं भी कर सकते हैं जैसे- किसी के इंतजार में हो, ट्रैफिक जाम में फंसे हो, किसी कतार में खड़े हो, तब वह समय अपने आंतरिक शरीर को महसूस करने में व्यतीत करें,जिससे यह सब कार्य भी आनंदप्रद बन जाता है | आप इसे अभ्यास द्वारा एक आदत के रूप में अपना लें |

रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए
                                                                                                                                                                     जब भी आपके सामने चुनौतियां आए आप तुरंत अपने अंदर उतर जाएं और अपने शरीर के आंतरिक ऊर्जा क्षेत्र पर यथासंभव अधिकतम फोकस करें | इससे आपके ऊपर कंडीशंड मानसिक-भावनात्मक प्रतिक्रिया हावी नहीं हो पाएगी और आप एकदम शांत,स्थिर एवं प्रजेंट होकर चुनौतियों का मुकाबला कर पाएंगे | 
                                                                          यदि आपको कभी तनाव,व्यग्रता या अन्य कारण से यह लगे कि आप अपने आंतरिक शरीर से संपर्क नहीं कर पा रहे हैं तो ऐसे में सर्वप्रथम अपनी सांसो पर फोकस करें | सांसो पर फोकस करने से तात्पर्य है-सजग रूप से सांस लेना |                                                                                                                                                        आप अपनी सांसो के अंदर एवं बाहर जाने को सजगता से देखें,अंदर जाती सांस के साथ पेट का थोड़ा फूलना और फिर बाहर जाती सांस के साथ उसका सिकुड़ना, इसे महसूस करें,सांसो की पूरी लंबाई को पूर्णतया महसूस करें | यह आपको धीरे-धीरे अपने आंतरिक शरीर के संपर्क में ले आएगा |

रोग प्रतिरोधकता हेतु आंतरिक शरीर से कैसे जुड़े-
 
                                आंतरिक शरीर से आपकी इस संबद्धता से न केवल आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता में अभूतपूर्व वृद्धि होगी,आप मानसिक रूप से कहीं ज्यादा मजबूत हो जायेंगे,आपके  भौतिक शरीर पर बढ़ती आयु का प्रभाव भी कम होगा |                                                                                                                                                                 जब आप अपने आंतरिक शरीर के प्रति चैतन्य होते हैं तो "वर्तमान" में आपकी विद्यमानता बढ़ने से आप अतीत एवं भविष्य के भार से मुक्त होते जाते हैं जिससे भौतिक शरीर में कोशिकाओँ के पुनर्निर्माण करने की क्षमता बढ़ जाती है |                                                                                                                                             आपका भौतिक शरीर अधिक हल्का अधिक निर्मल और अधिक जीवंत होता जाता है | ऐसे में आपके बाहरी शरीर के वृद्ध होने की गति अत्यंत मंद हो जाती है, यदि होती भी है तब आपके आंतरिक स्वत्व का प्रकाश आपके बाह्य शरीर में झलकने के कारण आप अपनी आयु के अनुरूप वृद्ध प्रतीत नहीं होते हैं |यह भी पढ़े -रोग प्रतिरोधकता बढ़ाने हेतु 7 healthy ड्रिंक्स                                                                                                        अंत में दोस्तों,आंतरिक शरीर ही वह द्वार या कड़ी है जो हमारे लोक एवं परलोक दोनों को सुधार देता है इसलिए हमेशा इससे जुड़कर रहे | withrbansal 

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