आपका दिमाग हर समय कुछ ना कुछ क्यूँ बोलता रहता है ?
दिमागी शौर से मुक्ति कैसे प्राप्त की जाए-
दोस्तों,आपने चाहे ध्यान दिया हो या नहीं,लेकिन आपके दिमाग में एक संवाद चलता रहता है,जो कभी नहीं रुकता है, वह लगातार चलता रहता है | हर व्यक्ति अपने मस्तिष्क में हर वक्त कोई ना कोई आवाज हर समय सुना करता है | यह आवाज कभी टीका-टिप्पणी के रूप में होती है तो कभी दोषारोपण,आलोचना,चेतावनी या शिकायत के रूप में होती है,कभी यह निर्णय-निष्कर्ष निकालती है तो कभी पसंद-नापसंद करती है |
"अरे,मुझे बिजली का बिल जमा कराने हेतु घर से पैसे लेकर आने थे | यह जरूरी है,आज बिल जमा कराने की अंतिम तारीख है,नहीं जमा कराए तो पेनल्टी लग जाएगी | मुझे गाड़ी मोड़ कर वापस घर चलना चाहिए | नहीं,मैं वापस नहीं जा सकता,ऑफिस के लिए लेट हो जाऊंगा | "
आपने देखा,यह आवाज दोनों तरफ से बोलती है,इसे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि वह किसके पक्ष में बोल रही है | जब रात को आप सोने जा रहे हैं तब यही आवाज कहती है- "मैं कितना लापरवाह हूं,मैंने आज बिजली का बिल नहीं भरा,ऑफिस जाते समय याद भी आया था,मुझे गाड़ी वापस मोड़ लेनी थी | लेकिन मुझे अब सोना चाहिए,कल मुझे जल्दी जगना भी है | पर मुझे अभी नींद नहीं आ रही है ........इस तरह से यह आवाज आपको हर पल तंग करती रहती है |
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यह हर उस चीज के बारे में भी कुछ ना कुछ बोलती रहती है जिसे आप देखते हैं | मुझे यह पसंद है,यह पसंद नहीं है,यह अच्छा है,यह बुरा है | आपको सामान्य तौर पर इसका पता भी नहीं रह पाता क्योंकि आप इससे दूर नहीं रहते हैं | आप इसके इतने ज्यादा पास रहते हैं कि आप इस से सम्मोहित होकर इसकी बात सुनने के लिए बाध्य हो जाते हैं |
दोस्तों,एक पल के लिए सोचे कि यदि ये आवाजें बाहर लोगों को सुनाई देने लग जाए तो वह निश्चित रूप से आपको पागल घोषित कर देंगे | आपने कभी सोचा है यह दिमागी आवाज क्यों बोलती है,आप ही बात करते हैं,आप ही उसे सुनते हैं,क्यूँ यह आवाज अपने आप से ही तर्क करती है ?
उदाहरण के लिए- " मुझे अब सरकारी नौकरी छोड़कर कोई बिजनेस आजमाना चाहिए | नहीं,तुम्हारे पास इतने पैसे नहीं है | तुम पछताओगे | लेकिन मुझे बिजनेस पसंद है | यदि यह इतना आसान है तो तुम्हारे दोस्त क्यों नहीं कर रहे है ,उनके पास तो अच्छा खासा बैंक बैलेंस भी है | "
यह आवाज एक क्षण में पाला बदल लेती है,बशर्ते ऐसा करने में उसे कुछ मदद मिल जाए | अगर उसे यह पता लग जाए कि वह गलत है तो भी वह शांत नहीं होती है | यह सिर्फ अपने दृष्टिकोण को बदल लेती है और फिर बोलती रहती है |
जब हम इस दिमागी आवाज का निष्पक्ष विश्लेषण करते हैं तो पता लगता है कि यह आवाज जो कुछ भी बोलती है उनमें से अधिकांश अर्थहीन होता है | यह सिर्फ समय व ऊर्जा का अपव्यय है | वास्तविकता यह है कि हमारे जीवन का अधिकांश भाग इन आवाजों से बेखबर हमारे नियंत्रण से परे की शक्तियों के अनुसार घटता है | आपको क्या चाहिए,आप इस बारे में सोचते रह सकते हैं, लेकिन जीवन तो निरंतर अपनी गति से चलता रहेगा |
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प्रसिद्व आध्यात्मिक लेखक "माइकल ए0 सिंगर" कहते है - "आपके विचारों में से अधिकतर का कोई महत्व नहीं है | इनका आपके अलावा किसी अन्य वस्तु या व्यक्ति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है | अपने अतीत,वर्तमान या भविष्य की घटनाओं के बारे में सिर्फ आपको अच्छा या बुरा महसूस होता है | " आपके विचारों का यह अनवरत प्रवाह ही "मानसिक शौर" है,इसका कोई लाभ नहीं है और हमारी अधिकांश समस्याओं की जड़ है |
आपका दिमाग ये आवाज क्यों करता है-
यदि हमारे दिमाग द्वारा कहीं जा रही इतनी सारी बातें अर्थहीन और बेकार है तो यह बातें दिमाग में उठती ही क्यों है ? इसे समझने के लिए हमें इस बात को समझना पड़ेगा कि यह आवाज क्या कहती है,कब कहती है और क्यों कहती है ?
@ कुछ मामलों में इस आवाज के बोलने एवं कुकर की सीटी की आवाज आने दोनों का कारण एक ही है | अर्थात अंदर उर्जा जमा हो रही है,जिसे बाहर निकलने की जरूरत है | आप देखेंगे कि जब भी आपके भीतर क्रोध,ईर्ष्या घबराहट,डर या इच्छा आधारित ऊर्जाएं जमा होने लगती है तो यह आवाज ज्यादा सक्रिय हो जाती है | जब भीतर ऊर्जा जमा हो जाती है तो आपको अंदर से ठीक महसूस नहीं होता है,आप कुछ करना चाहते हैं,ऐसे में बोलने से वह उर्जा बाहर निकलती है | हालांकि यह भी सच है कि किसी विशेष बात को लेकर परेशान ना हो तब भी आवाज बोलती रहती है |
@ यह आवाज आपको दुनिया का हाल सुनाती रहती है | आप बाहरी संसार में जो भी देखते हैं,उसी को दिमाग में बोलकर दोहराती है | जैसे कि- "उस गुलमोहर के पेड़ को देखो | वाह ! कितना प्यारा है | इसके हरे-हरे पत्तों के बीच सुर्ख लाल फूल कितने सुंदर लग रहे हैं | " आपने कभी सोचा है कि बाहर जो कुछ हो रहा है वह तो आपको भी दिख रहा है, फिर दिमाग उस बात को क्यों दोहराता है | अगर आप ध्यान से अध्ययन करें तो पाएंगे कि बाहरी संसार के किसी ऑब्जेक्ट का मानसिक विवरण आपको उसके प्रति सहज बना देता है और आपको चीजों पर ज्यादा नियंत्रण महसूस होता है |
@ आप आदतन अपने मस्तिष्क में विचारों को पैदा करते हैं और उन्हें बदलते हैं | यह भीतरी दुनिया आपके नियंत्रण में है लेकिन बाहरी दुनिया अपने हिसाब से चलती है | जब आपकी आवाज इस बाहरी संसार का विवरण आपको सुनाती है तो यह विचार आपके अन्य विचारों के साथ मिल जाते हैं और आपको बाहर की कठोर वास्तविकता के बजाय आपके आसपास के संसार के निजी रूप का अनुभव होता है | जैसे- आप सर्दी में किसी काम से जैसे ही घर से बाहर निकलते हैं,आपको सर्दी लगने लगती है,आपका मस्तिष्क कहता है- "बहुत ठंड है " आपको जब पहले से पता है कि बाहर ठंड है और ठंड महसूस भी आप ही कर रहे हैं तो फिर यह आवाज आपको क्यों बता रही है ?
इसका कारण है कि आप अपने संसार (अनुभवों ) को दोबारा निर्मित करें,क्योंकि आप अपने मस्तिष्क को नियंत्रित कर सकते हैं,बाहरी संसार को नहीं | इसलिए आप इस विषय में मन में बात करते हैं और विचार जगत में,बाहरी जगत को नियंत्रित करने का प्रयास करते हैं | जैसे- "बहुत ठंड है" आप ठंड का कुछ नहीं कर सकते हैं,लेकिन मन में आप कह सकते हैं -"कोई नहीं ,थोड़ी देर में घर पहुंच जाएंगे |" इस प्रकार आप बाहरी संसार को अपने भीतर दोबारा निर्मित करते हैं और फिर उसे अपने मस्तिष्क में जीते हैं, जिससे आप बाहरी संसार के प्रति सहज एवं प्रबल महसूस करते हैं |
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@ यदि आप इस प्रकार से बाहरी संसार का दुबारा निर्माण नहीं करने का निर्णय लेते हैं और फैसला करते हैं कि आप कुछ नहीं बोलेंगे,सिर्फ चैतन्य रूप से संसार को देखते रहेंगे तो आप स्वयं को अधिक स्वछन्द एवं निराश्रित महसूस करेंगे | ऐसा इसलिए होता है क्योंकि आपको पता नहीं है कि आगे क्या होगा जबकि आपका दिमाग आपकी मदद करने का आदी है | आपका दिमाग आप के वर्तमान अनुभवों को इस तरह से प्रोसेस करता है कि वे आपके अतीत की मान्यताओं और भविष्य की इच्छाओं के अनुरूप हो जाए | इससे आपको चीजों पर ज्यादा नियंत्रण का एहसास होता है और आप सुरक्षित महसूस करते है |
इस शौर से कैसे मुक्त हो सकते हैं-
@ इस लगातार चल रहे मानसिक शौर से मुक्ति पाने का सबसे अच्छा तरीका है-पीछे हटकर इसे तटस्थ भाव से देखना | प्रसिद्ध आध्यात्मिक चिंतक एवं लेखक "एक्हार्ट टॉल" कहते है -" इस आवाज को तटस्थ या साक्षी भाव से बिना कोई प्रतिक्रिया या तर्क किए,बिना कोई निर्णय या निष्कर्ष लिए ,बिना कोई निंदा या आलोचना किये सुने | "
आप इस बात को जाने कि आप वह नहीं है,जो बोल रहे हैं, आप वह है,जो इस आवाज को सुन रहे हैं | जीवन के वास्तविक विकास के लिए यह एहसास महत्वपूर्ण है कि आप वह आवाज नहीं है बल्कि आप उस आवाज के पीछे एक चेतन उपस्थिति है जो उस आवाज को सुन रही है | यह भी ध्यान रखें कि यह आवाज,जो अनेकों सही-गलत,अच्छी-बुरी,पसंद-नापसंद बातें बोल रही है,आप उनमें से कोई भी नहीं है, इनमें कोई भी आपके व्यक्तित्व का सच्चा रूप नहीं है | इस प्रकार से जब आप इन आवाज को तटस्थ भाव से देखना सीख जाते हैं और इन्हें ऊर्जा प्रदान नहीं करते हैं तो यह आवाज शांत होने लग जाती है |
दोस्तों,इस बात का एहसास होना कि आप उस आवाज को बोलते हुए देख रहे हैं,एक शानदार भीतरी यात्रा की शुरुआत है | यदि ठीक से प्रयोग किया जाए तो यही मानसिक आवाज जो चिंता,बेचैनी का स्रोत है,सच्ची आध्यात्मिक चेतना में रूपांतरित हो सकती है | यदि आपने आवाज सुनने वाले को पहचान लिया तो आप जीवन के महानतम रहस्यों में से एक यानी आप स्वयं को जान जाओगे |
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@ इन आवाज से मुक्ति पाने का एक और अच्छा तरीका इन्हें मस्तिष्क में उत्पन्न होने से रोकना भी है | इसके लिए आप बाहरी संसार के किसी भी ऑब्जेक्ट अर्थात व्यक्ति,वस्तु,परिस्थितियां या वातावरण को जब भी देखे चाहे वह अच्छी हो या बुरी,पसंद हो या नापसंद, बिना मन में किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया व्यक्त किये,गुजरने दे,किसी को भी मन में नहीं रोके | प्रतिदिन थोड़े समय से इसका अभ्यास प्रारम्भ करें,धीरे-धीरे समय बढ़ाते जाए | इसके साथ-साथ प्रतिदिन "ध्यान ( meditation ) "का अभ्यास भी करें | withrbansal
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