जीवन की स्क्रिप्ट : कर्म लिखता है या प्रारब्ध ?
withrbansal
कर्म, भाग्य, प्रारब्ध और नियति: जीवन की अदृश्य डोरियाँ”
दोस्तों , "क्या तुम वह हो, जो तुम्हारा भाग्य कहता है ? या वह, जो हर दिन कर्म से स्वयं को रचता है ?"
मानव जीवन की सबसे पुरानी और रहस्यमयी पहेली है — “मैं कौन हूँ, और मेरा जीवन किसके अधीन है ?”
क्या मैं एक कठपुतली हूँ, जिसकी डोर नियति के हाथों में है ? या मैं वह चुपचाप जीवन पथ पर चलता वह कलाकार हूँ, जो अपने कर्मों से भविष्य की रंगभूमि को तैयार कर रहा है ?
आइए दोस्तों जीवन की इस गूढ पहेली को चार शब्दों - " कर्म, भाग्य, प्रारब्ध, और नियति " में विभाजित कर समझें l
ये शब्द सिर्फ दर्शन नहीं, बल्कि हर व्यक्ति के अंदर चलती सूक्ष्म ऊर्जा की परतें हैं। इन्ही शब्दों पर सम्पूर्ण जीवन का ताना-बाना रचा हुआ है और इन्हें समझे बिना हम इस जीवन रूपी गुत्थी को सुलझा नहीं सकते है |
1 कर्म: गति का बीज-
"कर्म " सिर्फ क्रिया नहीं है, यह स्पंदन है — जो सोच से शुरू होकर व्यवहार में उतरता है और ब्रह्मांड में अपना एक कंपन छोड़ जाता है।
“मनसा, वाचा, कर्मणा” — यानि हमारे विचार, वाणी और कृत्य — तीनों ही कर्म हैं। "कर्म" एक ऐसे उर्जा जाल है जो हर विचार भावना ,संकल्प ,वाणी,प्रतिक्रिया और व्यव्हार से ब्रह्माण्ड में तरंगे भेजते है और ये तरंगे ही लौटकर हमारें जीवन की परिस्थितियां बनाती है | जीवन परिस्थतियाँ यानी-जीवन में आने वाले लोग ,अवसर ,बाधाएँ और,सफलता ,असफलता इत्यादि | हम चाहे भूल जाये पर यह नेटवर्क ऐसा है जो कुछ नहीं भूलता है |
@ कर्म की अदृश्य नेटवर्किंग:
कल्पना कीजिए, आप एक झील में कंकड़ फेंकते हैं। उसकी लहरें दूर तक जाती हैं।
हर कर्म भी वैसा ही है। यह सिर्फ उस क्षण को नहीं प्रभावित करता, बल्कि समय की गहराई में प्रवेश करता है।
आपने अनजाने में किसी को एक प्रेरणास्पद बात कह दी। वर्षों बाद वही बात उसके जीवन की दिशा बदल देती है। आप भूल जाते हैं, लेकिन ब्रह्मांड नहीं भूलता।
@ कर्म की 3 परतें होती है |
संचित कर्म --यह हमारे सभी जन्मों के कर्मों का स्टोरहाउस है |
प्रारब्ध कर्म -- संचित कर्म में से वे कर्म जो इस जीवन में फल देने आये है |
क्रियमाण कर्म -- जो हम अभी कर रहें है ,जो हमारे भविष्य को गढ़ेंगे |
@ कर्म के सार्वभोमिक नियम -
कर्म लौटता है -- हर अच्छा-बुरा कर्म ब्रह्माण्ड में कम्पन छोड़ता है, जो किसी ना किसी रूप में वापस अवश्य आता है |
कर्म टल सकता है ,कट नहीं सकता -- कर्म को बिना भोगे पूरी तरह मुक्त होना संभव नहीं है ,कर्मफल की तीव्रता,रूप या समय में परिवर्तन हो सकता है | यूनिवर्स का कर्मफल सम्बन्धी सॉफ्टवेयरअचूक है पर उसका स्वरूप हमारी जागरूकता से बदल सकता है |
कर्म का फल तुरंत नहीं मिलता लेकिन सटीक मिलता है - कर्म रूपी फल पकने में समय लग सकता है लेकिन मिलता यह सटीक है |
2 भाग्य: कर्मों का समेकित चेहरा-
भाग्य एक जटिल बैंक अकाउंट की तरह है — जिसमें जमा पूँजी आपके हर जन्म के कर्मों से बनी होती है।
यह वह "लाभ और हानि स्टेटमेंट" है, जिसे आत्मा हर जन्म में अपने साथ ले जाती है।
@ भाग्य अंधा नहीं है, वह गणनात्मक है |
बहुत लोग कहते हैं — “भाग्य में था, इसलिए हुआ।”
पर वास्तव में, यह कहना चाहिए — “मेरे कर्मों की समग्र ऊर्जा ने इसे संभव बनाया।” भाग्य किसी भगवान का इनाम या सजा नहीं, यह आपके ही कर्मो की ऊर्जा का फलित परिणाम है। आपके द्वारा किये गये या किये जा रहें प्रत्येक कर्म आपके भाग्य रूपी घड़े में बूंद -बूंद करके जमा हो रहा है l जब आप इसे समझते हैं, तब आप विक्टिम नहीं, क्रिएटर बनते हैं।
@ भाग्य बीज नहीं ,बल्कि वातावरण है |
भाग्य को हम अक्सर बीज मानते है पर असल में वह मिटटी और मौसम है अर्थात वह परिवेश है जो पहले बोये गए कर्मो ने तैयार किया है | कर्म,वह बीज है जो हम आज बोते है | कर्म ( बीज ) समान हो सकता है पर भाग्य यानी वातावरण के अनुसार फल अलग होंगे- पर प्रयास से फिर भाग्य बदला जा सकता है |
उदाहरण - रवि और अरुण दोनों ने इंजीनियरिंग की ( एक जैसे बीज ), रवि को अच्छा गाइड, सहयोगी परिवार एवं सही समय पर अच्छी इंटर्नशिप मिल जाने से वह जल्द ही बढ़िया कंपनी में नौकरी पा गया ( अनुकूल भाग्य ) ,वहीँ अरुण को आर्थिक तंगी ,पारिवारिक दबाब और कमजोर नेटवर्क मिला ( प्रतिकूल भाग्य )
अब रवि सेटल्ड हो गया लेकिन अरुण को संघर्ष करना पड़ा | परन्तु अरुण मेहनत और स्मार्ट वर्क करता रहा ,मिटटी बदलने लगी और कुछ वर्षो में एक सफल स्टार्टअप खड़ा हो गया |
@ भाग्य स्थिर या पत्थर की लकीर नहीं है |
भाग्य को कई लोग स्थिर या नियत मानते है पर यह वास्तव में कर्मो की लगातार बदलती प्रतिक्रिया है | आपका हर नया कर्म ( निर्णय ) चाहे छोटा हो या बड़ा -भाग्य की दिशा को थोडा मोड़ देता है |
उदाहरण - एक कठिन समय में धर्य पूर्वक कार्य करना ,सिर्फ उस पल का ही समाधान नहीं है अपितु वह आपके अगले सौ अवसरों की उर्जा को भी पुनर्निर्देशित कर देता है |
@ भाग्य और कर्म में "कारण और प्रभाव" का सम्बन्ध है |
भाग्य ,कर्म से जन्म लेता है ,और कर्म भाग्य से परिचालित होता है लेकिन इस सर्कल (चक्र ) को विवेक और प्रयास से तोडा जा सकता है | यदि व्यक्ति ध्यान और आत्मनिरीक्षण के सहारे चेतन कर्म करे तो भाग्य के दायरे से बाहर निकल सकता है | इसे ही आध्यात्म में " स्वतंत्र इच्छा " ( free will ) कहा गया है,जहाँ आत्मा अपना भविष्य खुद गढ़ना शुरू करती है |
3 प्रारब्ध: आत्मा की टैग की गई फाइलें-
"प्रारब्ध " वह संचित भाग्य है जिसे इस जन्म में भोगना अनिवार्य है। यह हमारे पूर्वजन्मों या बीते कर्मों का परिणाम है | यह उस डेटा की तरह है, जिसे आप नए डिवाइस में लॉगिन करते ही क्लाउड से डाउनलोड कर लेते हैं — आप चाहें या न चाहें। आपका जन्म स्थान, शरीर, माता-पिता, प्रारंभिक सुख-दुख — ये सब प्रारब्ध के कोड से चलते हैं।
@ लेकिन ये स्क्रिप्ट नहीं, स्केच है |
यहाँ एक बड़ा भ्रम है कि प्रारब्ध तय कर देता है,आप क्या कर सकते हैं।
नहीं, यह सिर्फ पृष्ठभूमि है, न कि पूरी फिल्म। प्रारब्ध वह स्थिति है जिसमे हम जन्म लेते है लेकिन उस स्थिति से कैसे बाहर आएंगे यह हमारे वर्तमान जागरूकता पूर्वक किये गए कर्मों पर निर्भर करता है |
इसे इस प्रकार समझे -आप उस ट्रेन में चढ़े है जिसे किसी और ने पहले से चलानी शुरू की थी ( आपके पूर्व कर्म ), आप उस ट्रेन में बैठे है ( प्रारब्ध ) अब आप ट्रेन से उतरकर या आगे कि दिशा तय करने के लिए क्या करते है - यह वर्तमान कर्म है | यानी प्रारब्ध शुरुआत है , मंजिल नहीं है |
उदाहरण के लिए-
अगर आपका प्रारब्ध है कि आपको कोई रोग हो, तो यह निश्चित है।
पर आप योग, औषधि, आहार और ध्यान से उसे कैसे नियंत्रित करते हैं — यह वर्तमान कर्म तय करता है।
कहने का तात्पर्य यह है कि प्रारब्ध आपको गरीब और ख़राब परिवार में जन्म दे सकता है ,जन्मजात रोगी उत्पन्न कर सकता है,शरीर सम्बन्धी अन्य कोई बाधा दे सकता है लेकिन ये हमारी आत्मा की उडान को नहीं रोक सकते है | प्रारब्ध सिर्फ एक संभावना है उसे "नियत परिणाम" हम अपने कर्मो से बनाते है | प्रारब्ध को बदला नहीं जा सकता लेकिन उसकी प्रतिक्रिया और प्रभाव को कम या बदलना संभव है |
इसे इस प्रकार समझें - मान लो, आपने पूर्व कर्मो के रूप में किसी व्यक्ति का अपमान किया है तो इस कर्म का प्रारब्ध यह बन गया कि आपको भी इस जन्म अपमान सहना है लेकिन इस जन्म के आपके सात्विक आचरण और अच्छे कर्मो का प्रभाव यह हो सकता है कि आपको हलके व्यंग का ही सामना करना पड़े l
4 नियति: आत्मा की अदृश्य पुकार-
नियति वह अंतिम लक्ष्य है, जो हर आत्मा का उद्देश्य है। यह कोई निश्चित घटना नहीं, बल्कि विकास की दिशा है।
हर आत्मा एक बीज है - उसकी नियति है वृक्ष बनना। कोई आम का वृक्ष बनेगा, कोई नीम का — पर हर आत्मा वृक्ष बनेगी, यही नियति है |
नियति = प्रारब्ध + वर्तमान कर्मों की दीर्घकालिक दिशा | अर्थात प्रारब्ध ने जो बीज दिए ,कर्मों ने जो खाद-पानी दिया और आत्मा की चेतना ने जिस दिशा में वह वृक्ष मोड़ा --उसी का नाम है -नियति |
@ तुलसीदास जी की नियति -
तुलसीदासजी बचपन में अनाथ हो गए ( प्रारब्ध ) ,युवा अवस्था में पत्नी प्रेम में अंधे हुए ( तत्कालीन कर्म ) ,पत्नी के एक वाक्य ने भीतर से झकझोर दिया और वे राम भक्ति की और मुड़ गए ( आत्मा ने दिशा बदली ) तो वह बनी उनकी नियति - एक संत ,एक कवि और एक युग निर्माता |
@ नियति का विरोध नहीं, सहयोग करें |
जब हम अपने जीवन को केवल भाग्य या प्रारब्ध की जेल में कैद मान लेते हैं, तो हम नियति से लड़ने लगते हैं।
पर जब हम कर्म के बल पर आगे बढ़ते हैं, तो नियति स्वयं रास्ता बनाती है। नियति संभावनाओं कि वह दिशा है जहाँ आपकी उर्जा लगातार बह रही है |
@ क्या नियति बदली जा सकती है ?
बिलकुल बदला जा सकता है यदि आत्मा सजग है | जब व्यक्ति अपने दुखों को देखकर असहाय नहीं बल्कि उत्तरदायी बनता तभी वह नियति के चक्र से बाहर आता है |
योग वशिष्ठ - "जो जाग गया ,उसने नियति को पीछे छोड़ दिया | "
प्रारब्ध, कर्म, भाग्य एवं नियति इन चारों का संबंध -- एक नदी की कहानी से समझा जा सकता है |
कल्पना कीजिए कि जीवन एक नदी है |
प्रारब्ध है — उस नदी का उद्गम (source)।
कर्म है — उसका बहाव और दिशा।
भाग्य है — नदी के रास्ते में आने वाली भूमि (जिस पर वह बहेगी — सपाट, पथरीली या हरियाली)।
नियति है — सागर, जहाँ अंत में उसे मिलना है।
आप नदी के उद्गम (प्रारब्ध) को नहीं बदल सकते, पर बहाव की ताकत (कर्म) से आप रास्ते के पत्थरों को काट सकते हैं।
और हाँ, चाहे रास्ता कुछ भी हो — अंत में नियति (सागर) तक पहुँचना ही है।
इसीलिए कहा गया है - " प्रारब्ध ने जहाँ छोड़ा ,वहाँ से कर्म ने यात्रा शुरू की,और जहाँ आत्मा ने रौशनी डाली -वही बनी मेरी नियति |"
ऐसे में हमें क्या किया जाना चाहिए -
# प्रारब्ध को स्वीकारें — शिकायत नहीं।
# कर्म पर केंद्रित रहें — आज का कर्म, कल के प्रारब्ध को बदल देगा।
# भाग्य को क्रियाशील बनाएं — निष्क्रिय नहीं।
# नियति को पहचानें — वह आपके जीवन की गहराई में छिपी है। इसके लिए प्रतिदिन ध्यान एवं आत्म निरीक्षण किया जाना आवश्यक है |
यह भी पढ़े -क्या नियति (destiny) को बदला जा सकता है ?
@ आत्मा एक कलाकार है--
हर आत्मा एक कैनवस लेकर आती है — कुछ रंग पहले से भरे होते हैं (प्रारब्ध), कुछ परिस्थितियाँ बनी होती हैं (भाग्य)। पर उस कैनवस पर चित्र क्या बनेगा — यह पूरी तरह से आपके ब्रश (कर्म) पर निर्भर करता है।
"जीवन नियति से शुरू होता है, प्रारब्ध से चलता है, भाग्य में बहता है, और कर्म से नया आकार पाता है।"
दोस्तों , यह सच है हमारे हाथ में सब कुछ नहीं होता, लेकिन सब कुछ खोया हुआ भी नहीं होता है,जो अपने भाग्य को बदलने का साहस करता है वही नियति का निर्माता बनता है | इसलिए अपने कर्मों से मित्रता करो ,क्योकि वही तुम्हे भाग्य से मिलाकर नियति तक ले जायेंगे |
दोस्तों, आपका क्या मानना है कृपया कमैंट्स में बताये 🙏
अंत में यह भी पढ़े -आज ही अपने जीवन की स्क्रिप्ट लिखे : अंत में पछतावा नहीं रहेगा
@@@@
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
आपको मेरी यह पोस्ट कैसी लगी ,कृपया सुझाव, शिकायत टिप्पणी बॉक्स में लिखकर बताये