जब ‘चिट्ठी आई है’ से आँखें नम हों और ‘ओम नमः शिवाय’ से आत्मा शांत
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दोस्तों, क्या आपने कभी सोचा है कि “जीवन की गाड़ी” दो पहियों पर चलती है – एक भौतिक (Material) और एक आध्यात्मिक (Spiritual)?
एक तरफ़ है – धन सम्पति, पद प्रतिष्ठा, EMI, प्रोमोशन, सोशल मीडिया पर लाइक गिनती और Society में रुतबा। दूसरी तरफ़ – वो खामोश रातें जब आप छत पर लेटकर सोचते हैं --“क्या सब कुछ होने के बाद भी कुछ छूटा हुआ सा नहीं है ?”
जी हाँ! यही है वो द्वंद्व जो हर मनुष्य के जीवन में चलता है। और यही है इस लेख का धड़कता हुआ दिल – भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति के बीच वो अनदेखा पुल, जिस पर चलते हुए हम या तो गिर जाते हैं -- या जीवन को पा लेते हैं।
और हाँ! इस बार रास्ता थोड़ा फ़िल्मी होगा। क्योंकि अगर ‘ज़िंदगी एक रंगमंच’ है, तो गाने ही उसके संवाद हैं।
भौतिक उन्नति का पहला चेहरा यही है — दौड़, तेज़ी, उपलब्धियाँ, ब्रांडेड कपड़े, SUV गाड़ी, और weekend Maldives की सेल्फ़ी।
आज की पीढ़ी के लिए सफलता का पैमाना - Instagram followers, CTC पैकेज, Destination wedding, बच्चों का इंटरनेशनल स्कूल l लेकिन फिर भी --- Why?
क्योंकि भौतिक सफलता बाहर का श्रृंगार है। भीतर का संतोष नहीं। “तू कर ले बंदे खुद से प्यार...” — आत्मा की आवाज़
🎵 "ओम नमः शिवाय... ओम नमः शिवाय..." (TV Serial Title Song)
जब भीतर की बेचैनी बढ़ती है, तो आत्मा धीरे-धीरे बोलती है "अब बाहर बहुत देख लिया, अब भीतर चलो।" यहीं से शुरू होती है-आध्यात्मिक उन्नति की यात्रा-- जो न कोई Instagram पे दिखती है, न LinkedIn पर अपडेट होती है — पर ये वही यात्रा है जिसमें इंसान को खुद से मुलाकात होती है।
🎵 "ज़रा हलके हलके चलो मोरे साजना..." (Satte Pe Satta)
सफल वो नहीं जो सब कुछ पा गया, बल्कि वो है जिसने घर भी चलाया और भीतर को टटोला भी l जो Zoom मीटिंग के बाद शाम को सत्संग में गया l जिसने EMI भरी, और दादा-दादी के पैर भी दबाए l
श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं-- “योगस्थः कुरु कर्माणि” — अर्थात, योग में स्थित होकर कर्म करो। यह सूत्र आधुनिक जीवन के लिए भी है - Mindfulness से Meetings, Peace से Profit, Meditation से Motivation
🎵 "चलते-चलते मेरे ये गीत याद रखना..."
👉 सुबह का पहला घंटा अपने लिए रखें- जो कि ध्यान, प्रार्थना, हल्का व्यायाम आदि के लिए नियत हो l
👉 काम के समय पूरे मन से काम करें- Alert रहें, Efficient बनें l
👉 परिवार से जुड़ें, टेक्नोलॉजी से कटें - रोज़ 1 घंटा No-screen zone
👉 हर सप्ताह 1 काम सेवा का करें- किसी गरीब को खाना, पेड़ लगाना, वृद्धाश्रम जाना आदि l
👉 प्रेरक पठन या सत्संग को समय दें-- गीता, रामचरितमानस,विवेकानंद, कबीर के दोहे, कोई मोटिवेशन बुक आदि l
🎵 "जीवन चलने का नाम, चलते रहो सुबह शाम..."
1. क्या मुझे सच्ची खुशी मेरी उपलब्धियों से मिलती है या किसी और से ?
2. क्या मैं कभी शांत बैठकर खुद से जुड़ता हूँ ?
3. क्या मेरी आत्मा थकी हुई महसूस करती है ?
4. क्या मेरी दौड़ किसी और को दिखाने के लिए है ?
5. क्या मेरा मन संतोष में है ?
6. क्या मैं सेवा के लिए समय निकालता हूँ ?
7. क्या मैं अपने बच्चों को सिर्फ चीजें दे रहा हूँ या संस्कार भी ?
🎵 "तेरे मेरे होते कौन नहीं... ये रिश्ते हैं रूहानी..."
दोस्तों, भौतिकता और आध्यात्मिकता कोई विरोधी ध्रुव नहीं हैं। वे एक ही नदी की दो धाराएं हैं। जब दोनों बहती हैं, तभी जीवन सुंदर संगीत बनता है।
🎵 "ज़िंदगी हर कदम एक नई जंग है... जीत जाएंगे हम, तू अगर संग है..."
जब ‘चिट्ठी आई है’ से आँखें नम हों और ‘ओम नमः शिवाय’ से आत्मा शांत — तब समझिए, जीवन ने संतुलन पा लिया है।
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जहाँ जीवन फ़िल्म नहीं, पर हर मोड़ पर कोई गाना ज़रूर होता है।
भौतिकता और आध्यात्मिकता - एक ही नदी की दो धाराएँ
दोस्तों, क्या आपने कभी सोचा है कि “जीवन की गाड़ी” दो पहियों पर चलती है – एक भौतिक (Material) और एक आध्यात्मिक (Spiritual)?
एक तरफ़ है – धन सम्पति, पद प्रतिष्ठा, EMI, प्रोमोशन, सोशल मीडिया पर लाइक गिनती और Society में रुतबा। दूसरी तरफ़ – वो खामोश रातें जब आप छत पर लेटकर सोचते हैं --“क्या सब कुछ होने के बाद भी कुछ छूटा हुआ सा नहीं है ?”
जी हाँ! यही है वो द्वंद्व जो हर मनुष्य के जीवन में चलता है। और यही है इस लेख का धड़कता हुआ दिल – भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति के बीच वो अनदेखा पुल, जिस पर चलते हुए हम या तो गिर जाते हैं -- या जीवन को पा लेते हैं।
और हाँ! इस बार रास्ता थोड़ा फ़िल्मी होगा। क्योंकि अगर ‘ज़िंदगी एक रंगमंच’ है, तो गाने ही उसके संवाद हैं।
💚 पैसा ही पैसा होगा...” — लेकिन क्या यही सब कुछ है ?
🎵 "पैसा ही पैसा होगा... हर तरफ़ पैसा ही पैसा होगा..." (कर्ज़, 1980)भौतिक उन्नति का पहला चेहरा यही है — दौड़, तेज़ी, उपलब्धियाँ, ब्रांडेड कपड़े, SUV गाड़ी, और weekend Maldives की सेल्फ़ी।
आज की पीढ़ी के लिए सफलता का पैमाना - Instagram followers, CTC पैकेज, Destination wedding, बच्चों का इंटरनेशनल स्कूल l लेकिन फिर भी --- Why?
क्यों इतने लोगों की आँखों में रात को नमी होती है ? क्यों CEO burnout का शिकार होते हैं? क्यों 5 स्टार होटल में बैठकर भी लोग उदासी का गीत गाते हैं ?
💚 🎵 "ज़िंदगी के सफर में गुजर जाते हैं जो मकाम, वो फिर नहीं आते..." (Aap Ki Kasam)
क्योंकि भौतिक सफलता बाहर का श्रृंगार है। भीतर का संतोष नहीं। “तू कर ले बंदे खुद से प्यार...” — आत्मा की आवाज़
🎵 "ओम नमः शिवाय... ओम नमः शिवाय..." (TV Serial Title Song)
जब भीतर की बेचैनी बढ़ती है, तो आत्मा धीरे-धीरे बोलती है "अब बाहर बहुत देख लिया, अब भीतर चलो।" यहीं से शुरू होती है-आध्यात्मिक उन्नति की यात्रा-- जो न कोई Instagram पे दिखती है, न LinkedIn पर अपडेट होती है — पर ये वही यात्रा है जिसमें इंसान को खुद से मुलाकात होती है।
यहाँ प्रश्न होते हैं -- मैं कौन हूँ? उत्तर मिलते हैं मौन में | जहाँ साधन नहीं, साधना मायने रखती है |
💚 संतुलन: “एक दिल के टुकड़े हज़ार हुए...” से लेकर “आशा है...” तक |
अब ज़रा रुकिए और सोचिए- क्या जीवन केवल दौड़ है या ध्यान भी ? क्या बैंक बैलेंस के साथ आत्मा का संतुलन ज़रूरी नहीं ?
🎵 "ज़रा हलके हलके चलो मोरे साजना..." (Satte Pe Satta)
सफल वो नहीं जो सब कुछ पा गया, बल्कि वो है जिसने घर भी चलाया और भीतर को टटोला भी l जो Zoom मीटिंग के बाद शाम को सत्संग में गया l जिसने EMI भरी, और दादा-दादी के पैर भी दबाए l
यह संतुलन है: 👉 भोग भी, योग भी। 👉 Netflix भी, शिव मंत्र भी |
💚 चार पात्र — चार जीवन मार्ग
1. रणवीर - Startup founder, 100 करोड़ से अधिक का valuation, लेकिन एंटी-डिप्रेसेंट पर। आधी रात को जागकर सोचता है - “अगर सब कुछ पा लिया, तो ये खालीपन क्यों ?”
🎵 "जिंदगी के सफर में... गुजर जाते हैं जो मुकाम..."2. गीता- स्कूल टीचर, सुबह मंदिर में 15 मिनट जप करती हैं। हर Sunday वृद्धाश्रम जाती हैं। जीवन बहुत साधारण, पर चेहरे पर शांति। “जो है, उसमें संतोष है।”
🎵 "हर फिक्र को धुएँ में उड़ाता चला गया..." (Hum Dono)3. रघु -- भजन गायक, आध्यात्मिकता में डूबा, पर घर की जिम्मेदारियाँ नहीं निभा पाया। बच्चों से दूर हो गया। “आत्मिक उन्नति अकेले नहीं चल सकती — परिवार को साथ लिए बिना।”
🎵 "ना तू ज़मीं के लिए है, ना आसमां के लिए..." (Dil Se)4. शालिनी: कॉर्पोरेट में VP, हर दिन सुबह 6 बजे ध्यान, हफ्ते में 2 दिन NGO सेवा, बेटी के साथ रात को रामचरितमानस पढ़ती है। यह है वह संतुलन, जिसकी तलाश सबको है।
🎵 "चलो दिलदार चलो, चाँद के पार चलो..."💚 भगवद्गीता की दृष्टि से--
श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं-- “योगस्थः कुरु कर्माणि” — अर्थात, योग में स्थित होकर कर्म करो। यह सूत्र आधुनिक जीवन के लिए भी है - Mindfulness से Meetings, Peace से Profit, Meditation से Motivation
🎵 "चलते-चलते मेरे ये गीत याद रखना..."
💚आधुनिक जीवन में संतुलन कैसे लाएँ ?
👉 सुबह का पहला घंटा अपने लिए रखें- जो कि ध्यान, प्रार्थना, हल्का व्यायाम आदि के लिए नियत हो l
👉 काम के समय पूरे मन से काम करें- Alert रहें, Efficient बनें l
👉 परिवार से जुड़ें, टेक्नोलॉजी से कटें - रोज़ 1 घंटा No-screen zone
👉 हर सप्ताह 1 काम सेवा का करें- किसी गरीब को खाना, पेड़ लगाना, वृद्धाश्रम जाना आदि l
👉 प्रेरक पठन या सत्संग को समय दें-- गीता, रामचरितमानस,विवेकानंद, कबीर के दोहे, कोई मोटिवेशन बुक आदि l
🎵 "जीवन चलने का नाम, चलते रहो सुबह शाम..."
💚आत्म-परीक्षण — 7 प्रश्न जो जीवन की दिशा बदल सकते हैं |
1. क्या मुझे सच्ची खुशी मेरी उपलब्धियों से मिलती है या किसी और से ?
2. क्या मैं कभी शांत बैठकर खुद से जुड़ता हूँ ?
3. क्या मेरी आत्मा थकी हुई महसूस करती है ?
4. क्या मेरी दौड़ किसी और को दिखाने के लिए है ?
5. क्या मेरा मन संतोष में है ?
6. क्या मैं सेवा के लिए समय निकालता हूँ ?
7. क्या मैं अपने बच्चों को सिर्फ चीजें दे रहा हूँ या संस्कार भी ?
🎵 "तेरे मेरे होते कौन नहीं... ये रिश्ते हैं रूहानी..."
दोस्तों, भौतिकता और आध्यात्मिकता कोई विरोधी ध्रुव नहीं हैं। वे एक ही नदी की दो धाराएं हैं। जब दोनों बहती हैं, तभी जीवन सुंदर संगीत बनता है।
🎵 "ज़िंदगी हर कदम एक नई जंग है... जीत जाएंगे हम, तू अगर संग है..."
जब ‘चिट्ठी आई है’ से आँखें नम हों और ‘ओम नमः शिवाय’ से आत्मा शांत — तब समझिए, जीवन ने संतुलन पा लिया है।
withrbansal.com
जहाँ जीवन फ़िल्म नहीं, पर हर मोड़ पर कोई गाना ज़रूर होता है।
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