आत्मलोक में पुनर्जन्म हेतु नवीन जीवन एवं देह का चयन किस प्रकार किया जाता है
आत्मलोक से भूलोक पर हमारी वापसी कैसे होती है ?
withrbansal ,दोस्तों,यह सुनिश्चित है कि हम सब जन्म,मृत्यु,स्थान एवं समय की सीमा से परे है,मृत्यु नाम की कोई चीज नहीं है, हम सभी सदा से थे और आगे भी रहेंगे | "गीता" में भी कहा गया है- जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्याग कर नए वस्त्रों को ग्रहण करता है,वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीर को त्याग कर नया शरीर धारण करता है | यह पृथ्वी हमारा वास्तविक घर नहीं है | भौतिक शरीर को त्यागने के पश्चात हम अपने असली घर यानी आत्मलोक जाते हैं एवं कुछ समय वहां विश्राम कर अपनी उर्जा को पुनः नवीनीकृत कर वापस इस भूलोक पर सबक सीखने,परीक्षाएं देने एवं विकास करने हेतु आ जाते हैं | आने-जाने के इस निरंतर चलते रहने वाले क्रम को ही " पुनर्जन्म ( Reincarnation )" कहा जाता है |
पिछले लेख में हमने आत्मलोक क्या है एवं भौतिक शरीर को छोड़ने के पश्चात आत्माएं किस प्रकार से आत्मलोक की यात्रा प्रारंभ करती है, के बारे में विस्तृत रूप से चर्चा की थी | इस लेख में हम यह जानेंगे कि आत्मलोक में पुनर्जन्म की प्रक्रिया किस प्रकार होती है,आत्माओं के द्वारा किन आधारों पर नए जीवन एवं नई देह (शरीर ) इत्यादि का चुनाव किया जाता है | इस प्रक्रिया में किन लोगों के द्वारा आत्माओं की मदद की जाती है |
इस सम्बन्ध में पश्चिम के कई विद्वानों यथा डॉ ब्रायन वीज,डॉ स्पेंसर,डॉ माइकल न्यूटन,डॉ इयान स्टीवेंसन,डॉ रेमंड मूडी इत्यादि द्वारा वर्षो वैज्ञानिक रूप से अध्ययन कर निष्कर्ष प्रतिपादित किये गए है | यहाँ बड़ी बात यह है कि ये सभी वो लोग है जिनका धर्म एवं संस्कृति पुनर्जन्म ( reincarnation ) को मान्यता तक नहीं देती है |
नवीन जीवन का चुनाव-
जैसा कि हमने पिछले लेख में पढ़ा है कि भूलोक पर भौतिक जीवन व्यतीत कर आत्मलोक में पुनः वापस लौटते समय यह आत्माएं इस कदर थकी हुई होती है कि वे पुनः भूलोक पर वापस जाने के विचार मात्र से ही घबरा जाती है ,खासकर तब जब वेअपने भौतिक जीवन के अंत में अपने लक्ष्यों के पास भी नहीं पहुंच पाती है | भूलोक पर परिवारजनों,मित्रगणों के होने के बावजूद आत्माएं, आत्मलोक के आपसी समझ, प्रेम एवं मैत्रीभाव से भरे आध्यात्मिक वातावरण को छोड़कर पृथ्वीलोक के प्रतिस्पर्धी,आक्रामक एवं अनिश्चिततायुक्त माहौल में जाने की आशंका मात्र से ही भयभीत रहती है |
लेकिन अंततः अपने "आत्मिक सलाहकारों " एवं "आत्मिक समूह "( soul group ) के साथीगणों के सहायता एवं सलाह पर एक बार पुनः भूलोक पर जाने हेतु तैयार हो जाती है | हालांकि यह भी है कि कुछ आत्माएं तो अपने विकास की गति को तीव्र करने के लिए आत्मलोक में कम से कम रहना चाहती है |
आत्मलोक में आत्मायें इस बात के लिए पूर्णतः स्वतंत्र होती है कि उनके द्वारा कब और कहां तथा किस रूप में भूलोक पर पुनर्जन्म लिया जाएगा | आत्मिक सलाहकारों के द्वारा इस संबंध में सिर्फ सलाह दी जा सकती है,किसी प्रकार का दबाव नहीं होता है,निर्णय स्वयं आत्मा का ही अंतिम माना जाता है |
हालाँकि आत्मा के लिए यह जरूरी होता है कि वह इस संबंध में सारी जानकारी एकत्र करें तथा निम्न उद्देश्य को ध्यान में रखकर कोई निर्णय ले-
1. क्या वह नए जीवन हेतु तैयार है ?
2. यदि तैयार है तो उसे अगले जीवन में आत्म विकास हेतु कौन से विशिष्ट कार्य करने होंगे ?
3. उद्देश्यों को प्राप्त करने हेतु उसे कहां जाना चाहिए और अगले जीवन में क्या बनना चाहिए ?
एक बार जब कोई आत्मा फिर से पुनर्जन्म का निर्णय ले लेती है तो इस प्रक्रिया के अगले चरण में उसे जीवन के चुनाव करने वाले स्थान ( जीवन चयन स्थल ) पर भेजा जाता है | "जीवन चयन स्थल " एक सिनेमाघर जैसा होता है जिसे "नियति का घेरा" भी कहा जाता है,जहां पर आत्माएं स्वयं के भावी जीवन के रूपों तथा विभिन्न वातावरण को देख पाती है |
हालांकि यह सच है कि इस नियति के घेरे में काफी कुछ पूर्व में ही हमारे द्वारा निर्धारित कर दिया जाता है,जिसके कारण भौतिक जीवन में हमारे साथ कभी भी,कुछ भी घटित हो सकता है | लेकिन इसका तात्पर्य यह नहीं है कि हमारा अस्तित्व नियतिवाद के ताले में बंद हो गया है | सब कुछ पूर्व निर्धारित कभी नहीं होता है,यदि ऐसा होता तो फिर "पुनर्जन्म ( reincarnation ) " का कोई अर्थ ही नहीं रह जाता है | "स्वतंत्र इच्छा" ( Free Will ) सदैव हमारे पास उपलब्ध रहती है, जिसका प्रयोग करना ही पुनर्जन्म का उद्देश्य होता है |
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आत्माओं के द्वारा जीवन चयन में घटनाएं,जाति,संस्कृति,परिवार,भौगोलिक क्षेत्र इत्यादि को भी देखा जाता है,लेकिन यह इतने महत्वपूर्ण नहीं होते हैं | कभी-कभी कुछ आत्मायें उसी परिवार में जन्म लेना चाहती है जिसमें उनके द्वारा पिछला जीवन व्यतीत किया गया था | जैसे - जिन बालकों की जन्म के शीघ्र बाद मृत्यु हो जाती है,वे उसी माता-पिता की अगली संतान के रूप में वापस आ जाते हैं | इसी प्रकार यदि किसी भाई-बहन का संबंध बहुत घनिष्ठ है और दोनों में से किसी एक की मृत्यु हो जाए तो मृतक,जीवित व्यक्ति की संतान के रूप में किसी शेष रहे महत्वपूर्ण उद्देश्य की पूर्ति हेतु वापस आ सकता है |
नवीन देह (शरीर )का चुनाव-
नवीन जीवन का चुनाव करने हेतु आत्माएं जब " जीवन चयन स्थल " की ओर प्रस्थान करती है तो उनके मन में नवीन शरीर के बारे में हल्का सा खाका होता है | यदि आत्मा के द्वारा अभी हाल में सरल जीवन बिता कर लौटा गया है तो आत्मा अगले जीवन के लिए ऐसे व्यक्ति या ऐसे शरीर का चयन करती है जिसे हार्दिक पीड़ा के साथ-साथ संभवतः किसी विपत्ति का भी सामना करना पड़ सकता है |
आत्माओं को जन्म लेने से पहले से यह पता होता है कि उनका रंग-रूप कैसा होगा,वह कैसे दिखाई देंगे,क्योंकि यह खुद के द्वारा ही चुना होता है | इसके बावजूद हममें से अधिकांश लोग अपनी शारीरिक बनावट एवं रंग-रूप को लेकर असंतुष्ट पाए जाते हैं |
यदि कोई शारीरिक रूप से विकलांग जन्म लेता है या जन्म लेने के बाद विकलांग हो जाता है तो इसका मतलब यह नहीं है कि उसने पिछले जन्म में किसी को शारीरिक क्षति पहुंचाई थी,इसका हर्जाना उसे इस जीवन में भुगतना पड़ रहा है |
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इसका मतलब सिर्फ इतना है कि यह उस आत्मा की जीवन योजना का एक हिस्सा है जो कि उसके द्वारा एक दूसरे प्रकार के सबक (पाठ ) सीखने के इरादे से स्वेच्छा से अपनाया गया है | क्योंकि शारीरिक विकलांगता से पार पाने के प्रयास,आत्मा के विकास की गति को तेजी से बढ़ा देते हैं |
आत्मलोक में जो आत्माएं एक ही आत्मिक समूह की सदस्य ( Soulmates ) होती है,वे प्राय धरती पर हमारे जीवन में माता-पिता,भाई-बहिन, पति-पत्नी और निकट मित्रों के रुप में सम्मिलित होते हैं | जो एक दूसरे से आत्मिक रूप से जुड़े होते हैं,वे मानव जीवन में प्रेम-घृणा के संबंधों में जुड़ने के लिए पूर्व-अनुबंध (Pre-contract ) के अनुसार आगे बढ़ते हैं | धरती पर इन संबंधों के माध्यम से हम जो कष्ट भोगते हैं या आनंद प्राप्त करते हैं,वे एक आत्मा के रूप में हमारे विकास को तय करते है |
भूलोक प्रस्थान हेतु तैयारी-
अपने "आत्मिक मार्गदर्शकों " एवं समकक्ष आत्माओं से सलाह मशवरा कर "जीवन चयन स्थल" पर नूतन जीवन एवं देह का चुनाव कर लिए जाने पर भूलोक पर प्रस्थान की तैयारियां प्रारंभ हो जाती है | जीवन रूपी रंगमंच पर हम नाटक के अभिनेता \अभिनेत्री की भूमिका में होते हैं | हमारी भूमिका नाटक के गौण पात्रों को प्रभावित करती है एवं प्रभावित होती है | जैसे-जैसे नाटक आगे बढ़ता है,स्वतंत्र इच्छा के कारण पटकथा में परिवर्तन किए जा सकते हैं | इस जीवन रूपी मंच पर हमारे आत्मिक साथी सहयोगी चरित्र के रूप में हम से जुड़ते हैं | "आत्मिक साथी " ( Soulmates ) वे होते हैं जो आपसी उद्देश्य की प्राप्ति में एक दूसरे की सहायता एवं सहयोग करते हैं | यह सहायता एवं सहयोग सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों प्रकार से हो सकता है | मानवीय संबंधों से हमें यह सबक जरूर सीखना चाहिए कि जो व्यक्ति जैसा है उसे उसी रूप में स्वीकार करें और यह उम्मीद कभी ना करें कि हमारी खुशियां पूर्णतः किसी और पर निर्भर करती है | खासकर वैवाहिक संबंधों में अत्यधिक तनाव एवं टूटन जीवन में स्वेच्छा से दी गई परीक्षाएं होती है जो कि अक्सर अपने कठोरतम रूप में होती है |
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भूलोक पर प्रस्थान से पूर्व एक " पहचान कक्षा " ( Identification room ) में जीवन रूपी रंगमंच पर साथ साथ काम करने वाले कलाकार इकट्ठा होते हैं | यह कक्षा एक प्रकार से अंतिम समीक्षा सी होती है,जिसमें पुनर्जन्म लेने वाली आत्माओं के मस्तिष्क में धरती पर उपयोग हेतु संकेत-सूत्रों को अंकित किया जाता है,ताकि वे भौतिक जीवन में इंसानों के रूप में अपनी याद में ताजा कर सकें | संकेत सूत्र एक प्रकार से जीवन-पथ के चिन्ह होते हैं जो जब कोई महत्वपूर्ण बात होने की संभावना होती है तब आत्माओं को जीवन की नई दिशा बताते हैं | जैसे-आप धरती पर अपने किसी ऐसे साथी से मिलते हैं जिनकी आपके जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका होने वाली है तो आपको उन्हें पहचानने के लिए संकेत सूत्र दिए जाते हैं | घंटी की ध्वनि जैसी हँसी, विशिष्ट प्रकार की मुस्कान,जानी पहचानी सुगंध जैसे कोई भी संकेत हो सकते है | पांचों इंद्रियों का प्रयोग इस कार्य में किया जाता है लेकिन आंखें महत्त्वपूर्ण है क्योँकि आँखे,आत्मा की खिड़कियां होती है | यह बात अलग है कि इन संकेतों में से धरती पर आकर कुछ हमें याद रहते हैं,कुछ हम भूल जाते हैं | इन संकेत चिन्ह को भूल जाने के कारण ही अक्सर हम अपने उन जीवन उद्देश्य को पूरा नहीं कर पाते हैं जो आत्मलोक में हमारे लिए तय किए गए थे | भूलोक पर इन संकेतो की पहचान में "ध्यान " (Meditation ) बेहद उपयोगी होता है |
अधिकांश आत्माएं भूलोक पर अंतिम रवानगी से पहले वरिष्ठ आत्माओं की तीन सदस्यीय कमेटी ( counsil of senior souls ) के समक्ष उपस्थित होती है | यह कमेटी नए जीवन में आत्मा के काम करने की संकल्प शक्ति एवं परिणामों का आकलन करती है,साथ ही वे इकरारनामा का सम्मान करने की अपेक्षा भी करते हैं | वे उम्मीद करते हैं कि कैसी भी खराब से खराब परिस्थितियां हो,हम स्वयं पर भरोसा रखें और जीवन योजनाओं को पूर्ण करने का प्रयास करें | यह कमेटी एक प्रकार से सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करने का कार्य करती है |
पुनर्जन्म-
पुनर्जन्म एक गहन अनुभव है, जिसके लिए आत्मलोक में एक विस्तृत आत्मिक योजना बनाई जाती है | ये आत्माएं धरती पर जाने के लिए ऐसे ही तैयार होती है जैसे युद्ध के अनुभवी सिपाही लड़ाई के लिए कमर कसते हैं | यह आत्मा के लिए एक प्रकार से उत्तेजना,डर,भय एवं खुशी आदि के मिश्रित भावों के क्षण होते हैं | अब समय आ गया है आत्मा के भूलोक पर प्रस्थान का |अपने मार्गदर्शक के साथ यात्रा प्रारंभ होती है,लेकिन कुछ दूरी बाद मार्गदर्शक पीछे छूट जाता है और आत्मा अकेली ही तेजी से भूलोक की तरह बढ़ती जाती है | एक लंबी काली-अंधेरी सुरंग को पार कर आत्मा भूलोक पर जीवन में प्रवेश करती है | यह वही मार्ग होता जिससे आत्मा भौतिक शरीर को त्यागने के उपरांत आत्मलोक की यात्रा करती है |
अक्सर लोग यह प्रश्न करते हैं कि मृत्यु या जन्म दोनों में से किस क्षण में शारीरिक आघात या कष्ट अधिक होता है ? प्रसिद्ध मनोविश्लेषक एवं लेखक "डॉ माइकल न्यूटन " के अध्ययन बताते हैं कि जन्म लिए जाने का शारीरिक आघात मृत्यु की तुलना में कहीं अधिक होता है |
आत्माओं का शिशु-भ्रूण से मिलन अर्थात शिशु में प्रवेश करने का कोई एक निश्चित समय तय नहीं होता है | सामान्यतः शिशु के जन्म से चार-पांच माह पूर्व आत्मा शिशु भ्रूण से जुड़ जाती है,हालांकि अपवाद रूप में आत्मा का आगमन प्रसव के अंतिम मिनट में भी होता है |
गर्भ में शिशु से जुड़ने के बाद एवं शिशु जन्म के बाद भी आत्मा अंदर-बाहर होती रहती है | यह समय सामान्यतया आत्माओं के लिए छुट्टियों जैसा होता है | शिशु के मस्तिष्क से एकीकरण के कार्य के अलावा शिशु से बाहर रहने के समय का उपयोग शिशु से दूर जाकर अपने उन मित्रों के साथ आमोद-प्रमोद करने का कार्य करती है जो समान काम कर रहे हैं | अपनी पसंद के उन स्थानों पर घूमने का कार्य भी करती है,जहां वे पिछली जिंदगियों में एक साथ रह चुके हैं | हालांकि ऐसे में भी आत्माएं शिशु से बहुत दूर नहीं जाती है,वे धरती की सतह पर ही रहती है और एक तरंग के माध्यम से शिशु से जुड़ी रहती है | भौतिक रूप से शिशु के साथ कुछ ठीक नहीं हो रहा होता है या किसी प्रकार का खतरा महसूस होता है तो वह तुरंत ही वापस लौट आती है | जब शिशु लगभग 5-6 वर्ष का हो जाता है अर्थात आम तौर पर पूर्ण क्रियाशील हो जाते हैं या स्कूल जाना शुरु कर देते हैं तब आत्मा शिशु को छोड़ना बिल्कुल बंद कर देती है |
इस आयु के पश्चात आत्मा,मृत्यु के क्षण ही शरीर को छोड़ती है | लेकिन सोते समय,गहन ध्यान में,शल्य क्रिया के दौरान एनेस्थीसिया के प्रभाव में ,गंभीर दिमागी चोट और कोमा के मामलों में भी आत्मा शरीर के अंदर एवं बाहर आ-जा सकती है |
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दोस्तों,जब यह स्पष्ट है कि ब्रह्मांड में हमसे भी उच्चतर एक सत्ता है तो यह सवाल उत्पन्न होता है कि फिर इस पृथ्वी पर इतने दुख एवं कष्ट क्यों है ? इसका कारण है कि हमारी आत्माएं उस सृजनहार से जन्मी है जिसने सोच समझकर पूर्ण शांति की अवस्था को हमारी पहुंच से बाहर रखा है ताकि हम उसे पाने के लिए कठोर कर्म करें |
हम अपने स्थाई निवास से दूर इस ग्रह पर टूरिस्ट मात्र नहीं है, यहां हम अपने साथ-साथ दूसरों के विकास की भी जिम्मेदारी का निर्वहन करने आए हैं,हमारी यह यात्रा सामूहिक है | एक ना एक दिन हमारी यह लंबी जीवन यात्रा समाप्त होगी और हम सभी उस चैतन्य अवस्था को प्राप्त करेंगे जहां कोई चीज मुश्किल नहीं होती है,सब कुछ संभव होता है | withrbansal
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